ब्लॉग: ठेकेदारों को वसूली माफिया से बचाने के लिए कठोर कानून बने
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: February 6, 2024 10:01 AM2024-02-06T10:01:39+5:302024-02-06T10:03:25+5:30
देश के विभिन्न हिस्सों से समय-समय पर ऐसे मामले सामने आते रहते हैं लेकिन जहां मामला राजनीतिक दलों या उनके नेताओं से जुड़ जाता है, पुलिस जांच के नाम पर रस्मअदायगी कर फाइल बंद कर देती है या कुछ छुटभैये गुंडों पर कार्रवाई कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेती है।
महाराष्ट्र में राजनीतिक दलों तथा उसके नेताओं की छवि धूमिल करनेवाली खबर सामने आई है। राज्य के दो सरकारी ठेकेदार संगठनों ने राज्य सरकार से गुहार लगाई है कि राजनीतिक दलों से कथित रूप से जुड़े लोग या स्थानीय राजनीतिक समूह सरकारी परियोजनाओं से जुड़े ठेकेदारों से जबरन वसूली करते हैं। इसके लिए ये हिंसा का सहारा लेने से भी नहीं हिचकते। महाराष्ट्र स्टेट कांट्रैक्टर्स एसोसिएशन तथा स्टेट इंजीनियर्स एसोसिएशन ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और दोनों उपमुख्यमंत्रियों देवेंद्र फडणवीस व अजित पवार के नाम तीन फरवरी को पत्र भेजकर कथित राजनीतिक समूहों पर उनसे जबरन वसूली का आरोप लगाया है और इन तत्वों से ठेकेदारों को बचाने के लिए कानून बनाने की मांग की है। पत्र में इन दोनों संगठनों ने कहा है कि वसूली करने वाले ये तथाकथित राजनीतिक तत्व प्रत्येक जिले में सरकारी कार्यों को रोकने के लिए धमकी तथा बल प्रयोग करते हैं।
ऐसा नहीं है कि जबरन वसूली के मामले सिर्फ महाराष्ट्र में ही होते हैं। देश के विभिन्न हिस्सों से समय-समय पर ऐसे मामले सामने आते रहते हैं लेकिन जहां मामला राजनीतिक दलों या उनके नेताओं से जुड़ जाता है, पुलिस जांच के नाम पर रस्मअदायगी कर फाइल बंद कर देती है या कुछ छुटभैये गुंडों पर कार्रवाई कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेती है। भारतीय राजनीति में बाहुबलियों ने पिछले कुछ दशकों में अपनी पैठ काफी गहरी बना ली है। पहले ये बाहुबली अपने गिरोहों के जरिये हफ्ता वसूली, हत्या, हत्या के प्रयासों व तमाम तरह के अवैध कार्यों के जरिये खूब कमाई करते थे।
राजनीतिक दलों का इन तत्वों को संरक्षण प्राप्त था। बाद में इन असामाजिक तत्वों की राजनीति में सीधी घुसपैठ हो गई। वे अपनी-अपनी हैसियत के हिसाब से पार्षद, जिला परिषद सदस्य, विधायक, सांसद और मंत्री तक बनने लगे। जहां-जहां कोई भी बड़ी खदान हो, बिजलीघर हों या अन्य सरकारी परियोजनाएं चल रही हों, वहां राजनीतिक दलों की आड़ में ठेकेदारों तथा सरकारी अफसरों से जबरन वसूली करने वाला संगठित गिरोह खड़ा हो जाता है। ये लोग आतंक फैलाकर जनता के बड़े वर्ग के बीच वोट को प्रभावित करने की ताकत भी खड़ी कर लेते हैं।
इसके फलस्वरूप इन्हें राजनीतिक दलों का संरक्षण और समर्थन मिल जाता है या विभिन्न पार्टियां इन्हें अपना सदस्य अथवा पदाधिकारी बना लेती हैं। काम जारी रखने के लिए इन तत्वों को हर माह ठेकेदार, व्यापारी, उद्यमी यहां तक कि सरकारी अफसर भी एक तय रकम देते हैं। सितंबर 2017 में ठाणे में जबरन वसूली के एक मामले में जब माफिया डॉन दाऊद इब्राहिम का छोटा भाई इब्राहिम कासकर पकड़ा गया तो उसने वसूली के काम में लिप्त कई स्थानीय राजनेताओं, जिनमें कुछ पार्षद भी थे, के नाम उगले। इस मामले में आक्षेप है कि राजनीतिक दबाव के चलते पुलिस ने अपने कदम ज्यादा आगे नहीं बढ़ाए।
तीन साल पहले म्यूजिक कंपनी टी-सीरीज के मालिक भूषणकुमार से जबरन वसूली के मामले में मुंबई पुलिस ने मल्लिकार्जुन पुजारी नामक छुटभैये राजनेता पर एफआईआर दर्ज की थी लेकिन इस मामले में भी आगे ज्यादा कुछ नहीं हुआ क्योंकि मल्लिकार्जुन की राजनीतिक गलियारों में तगड़ी पहुंच थी। हरिशंकर तिवारी, मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद, राजा भैया, बबलू शुक्ला, सूर्यदेव सिंह, शहाबुद्दीन, बृजेश सिंह, विजय मिश्रा, आनंद मोहन सिंह, श्रीप्रकाश शुक्ल जैसे ढेरों माफिया राजनीति में पकड़ रखते थे या हैं और आगे भी रहेंगे। कर्नाटक के पिछले विधानसभा चुनाव में ठेकेदार संगठनों ने राजनेताओं पर कमीशन मांगने का लिखित रूप से आरोप लगाया था। कर्नाटक विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस ने इस मामले को बड़ा चुनावी हथियार बनाया. म.प्र. के चुनाव में भी राजनीतिक दलों द्वारा कमीशन वसूली का मामला गूंजा था।
महाराष्ट्र में जिन दो संगठनों ने जबरन वसूली का आरोप राजनीतिक तत्वों पर लगाया है, उसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए। जबरन वसूली के खिलाफ भारतीय दंड विधान की धारा 384 में सख्त सजा के प्रावधान हैं लेकिन राजनीतिक तत्वों के प्रभाव के कारण यह धारा निरर्थक बन गई है। महाराष्ट्र के ठेकेदार संगठनों के दर्द को समझकर राज्य सरकार उन्हें पर्याप्त संरक्षण दे और उन्हें परेशान करनेवाले तत्वों के विरुद्ध कठोर कानून बनाए।