हेमधर शर्मा का ब्लॉग: विपरीत मौसम और कठोर परिश्रम के बाद ही आता है वसंत

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: February 12, 2025 12:02 IST2025-02-12T11:59:34+5:302025-02-12T12:02:36+5:30

हेमधर शर्मा का ब्लॉग: बदलाव सिर्फ प्रकृति या राजनीति में ही नहीं हो रहा. सुख-समृद्धि की हमारी परिभाषा भी शायद बदल रही है. अब महंगे ब्रांड्‌स अमीरों का स्टेटस सिंबल नहीं बन रहे, क्योंकि उनकी हूबहू सस्ती नकल आम आदमी की पहुंच के भी भीतर है.

Spring comes only after adverse weather and hard work | हेमधर शर्मा का ब्लॉग: विपरीत मौसम और कठोर परिश्रम के बाद ही आता है वसंत

हेमधर शर्मा का ब्लॉग: विपरीत मौसम और कठोर परिश्रम के बाद ही आता है वसंत

वसंत को ऋतुओं का राजा कहा जाता है. लेकिन अब यह सिमट रहा है. आमतौर पर फरवरी और मार्च में वसंत का अहसास होता है लेकिन मौसम विभाग का कहना है कि इस साल फरवरी के उत्तरार्ध से ही तीखी गर्मी का अहसास होने लगेगा. राजनीति में भी वसंत सिमटता महसूस हो रहा है. 

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प अपने पहले कार्यकाल में कदाचित खुलकर नहीं खेल पाए थे. लेकिन दूसरे कार्यकाल में वे आत्मविश्वास से लबालब हैं और कार्यभार संभालने के पहले दिन से ही ताबड़तोड़ आदेश जारी कर रहे हैं. ग्रीनलैंड और पनामा नहर पर कब्जे की धमकी के सदमे से लोग उबरे भी नहीं थे कि उन्होंने गाजा पट्टी पर कब्जे का एटम बम फोड़ दिया. 

अब अवैध प्रवासियों को वे हथकड़ी-बेड़ी लगाकर अमेरिका से निकाल रहे हैं. भारत में भी राजनीति के घटाटोप के बीच वसंत की उम्मीद में ही लोगों ने आम आदमी पार्टी को चुना था. लेकिन जिस तरह से शराब घोटाला और ‘शीशमहल’ जैसे मामले उठे, उसने आम आदमी की उम्मीदों को तोड़ दिया है.  

बदलाव सिर्फ प्रकृति या राजनीति में ही नहीं हो रहा. सुख-समृद्धि की हमारी परिभाषा भी शायद बदल रही है. अब महंगे ब्रांड्‌स अमीरों का स्टेटस सिंबल नहीं बन रहे, क्योंकि उनकी हूबहू सस्ती नकल आम आदमी की पहुंच के भी भीतर है. अमीरी का अब मतलब है ऑफलाइन रहना, खाली समय और प्राइवेसी. 

याद करें, पुराने जमाने में गरीब से गरीब व्यक्ति को भी क्या ये चीजें उपलब्ध नहीं थीं! जिस ज्वार-बाजरे की रोटी को गरीब लोग मजबूरी में खाते थे, उसे खाना अब पौष्टिकता का स्टेटस सिंबल बन रहा है. 

देसी फल, सब्जियां और अनाज अपने रंग-रूप और आकार के कारण बीच के दौर में भले ही उपेक्षित हो गए थे, लेकिन बाहर से सुंदर और सुडौल दिखने वाली हाइब्रिड वस्तुओं की पोल खुलते ही लोग फिर देसी की ओर लौट रहे हैं. 

आधुनिक जीवनशैली से पैदा होने वाले रोग शरीर को इस तरह जर्जर बना रहे हैं कि इससे बचने के लिए डॉक्टर मानसिक के साथ ही शारीरिक मेहनत करने की भी सलाह दे रहे हैं. गरीबों का साधन मानी जाने वाली साइकिल ने विदेशों में इतनी प्रतिष्ठा हासिल कर ली है कि वहां अब सुपर एक्सप्रेस-वे नहीं बल्कि साइकिल लेन बनाने पर ध्यान दिया जा रहा है.

तो क्या इतिहास अपने आप को इसी तरह दोहराता है? जिस ग्लोबलाइजेशन का डंका पूरी दुनिया में पीटा जा रहा था, ट्रम्प का टैरिफ अब उसकी हवा निकाल रहा है. जिस फीचर फोन को बेदखल कर स्मार्टफोन दुनिया में एआई क्रांति लाया, उसी बटन वाले फोन को अब प्राइवेसी के लिहाज से सबसे सुरक्षित माना जा रहा है. 

गांधीजी ने जिस ग्राम स्वराज की अवधारणा सौ साल पहले दी थी, ग्लोबल होने के चक्कर में हम उसे बहुत पीछे छोड़ आए; लेकिन जिन सुख-सुविधाओं के लिए हमने इतना तकनीकी विकास किया, उसके दुष्प्रभाव अब हमें पीछे लौटने पर मजबूर कर रहे हैं. 

मिट्टी के घरों में होने वाली असुविधा से बचने के लिए हमने कांक्रीट का जंगल तो खड़ा कर लिया लेकिन अब महसूस हो रहा है कि उन परेशानियों को दूर करने के साथ हम उसके सुखों से भी दूर हो गए हैं.

प्रकृति में हो या जीवन में, वसंत यूं ही नहीं आता. ग्रीष्म की चिलचिलाती धूप और शरद ऋतु की कंपकंपाती ठंड के बाद ही यह आता है. गर्मी और सर्दी से बचने की कोशिश में हमने वसंत को भी गंवा दिया! 

दिक्कतें जब मजबूरी में झेली जाती हैं तो दु:ख देती हैं लेकिन स्वेच्छा से झेलने पर उनमें भी एक अलग ही आनंद मिलता है. इस साल वसंत भले ही सिमट गया हो लेकिन जीवन और मौसम की विपरीतताओं को स्वेच्छा से झेलते हुए क्या हम अगले वसंत की पूर्वपीठिका बनाने को तैयार हैं?
 

Web Title: Spring comes only after adverse weather and hard work

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