मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) की प्रक्रिया पर सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई के बीच ही बिहार में चुनाव भी हो रहे हैं और चुनाव आयोग ने नौ राज्यों एवं तीन केंद्रशासित क्षेत्र में इसके दूसरे चरण की शुरुआत भी कर दी है. एसआईआर की घोषणा के साथ ही उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, केरल, छत्तीसगढ़, गोवा, पुडुचेरी, लक्षद्वीप और अंडमान-निकोबार में मतदाता सूचियां फ्रीज हो गई हैं. इनके विशेष गहन पुनरीक्षण की प्रक्रिया शुरू होगी, जो सात फरवरी तक चलेगी.
अन्य राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में भी एसआईआर होगा ही. बेशक देश में एसआईआर पहली बार नहीं हो रहा. 1951 से 2004 तक आठ बार हो चुका है, लेकिन याद नहीं पड़ता कि इस जरूरी प्रक्रिया पर कभी इतना राजनीतिक विवाद हुआ हो. विपक्ष एसआईआर को, सत्तारूढ़ भाजपा के हित में मतदाताओं के नाम काटने की साजिश बता रहा है.
बिहार में जिस तरह 65 लाख मतदाताओं के नाम कटे, वह मामला तो सर्वोच्च न्यायालय तक गया. जिस तरह जीवित लोगों के नाम मृत बता कर काटे गए या फिर नाम काटने का कारण बताने और काटे गए नामों का विवरण देने की बाध्यता से चुनाव आयोग ने इनकार करना चाहा, उससे भी संदेह और सवाल गहराए.
बाद में सर्वोच्च अदालत के निर्देश पर चुनाव आयोग ने मतदाताओं की पहचान के लिए मान्य दस्तावेजों की सूची में आधार कार्ड शामिल किया और नाम काटे मतदाताओं का विवरण भी सार्वजनिक किया, लेकिन तब तक उसके और विपक्षी दलों के बीच अविश्वास की खाई चौड़ी हो गई.
इस अविश्वास का भी परिणाम है कि एसआईआर के दूसरे चरण की घोषणा के साथ ही चुनाव आयोग और केंद्र सरकार पर विपक्ष हमलावर है. विपक्ष शासित तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और केरल की सरकारें भी एसआईआर की प्रक्रिया और उसके इरादों पर सवाल उठा रही हैं. बिहार में एसआईआर के विरोध में विपक्ष का सबसे बड़ा तर्क था कि चुनाव से चंद महीने पहले क्यों?
अब दूसरे चरण में जिन नौ राज्यों और तीन केंद्रशासित प्रदेशों में एसआईआर की प्रक्रिया शुरू हुई है, उनमें से पांच में अगले साल चुनाव हैं. विपक्ष की आशंका एसआईआर पर तो है ही, वह अगले साल ही चुनाववाले असम में एसआईआर की घोषणा न करने पर भी आयोग से सवाल पूछ रहा है. सवाल केरल को ले कर भी है, क्योंकि पहले कहा गया था कि जहां स्थानीय निकाय चुनाव होने हैं,
वहां एसआईआर नहीं कराया जाएगा. दोनों सवालों का जवाब भी मुख्य चुनाव आयुक्त ने दिया है. बकौल ज्ञानेश कुमार, असम में एसआईआर के लिए अलग से स्पेशल ऑर्डर जारी किया जाएगा, जबकि केरल में स्थानीय निकाय चुनाव की अधिसूचना अभी तक जारी नहीं की गई है.
इसके बावजूद विपक्ष का संदेह और सवाल बरकरार हैं तो विवाद के मूल में अविश्वास और दलगत राजनीति ही है. बेशक देश और प्रदेशों में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराना चुनाव आयोग का संवैधानिक दायित्व है, पर बहुदलीय लोकतांत्रिक प्रणाली में राजनीतिक दलों के पूर्ण सहयोग और आयोग में विश्वास के बिना यह संभव नहीं.