ब्लॉग: नई ऊंचाई पर अंतरिक्ष का निजीकरण
By अभिषेक कुमार सिंह | Updated: September 21, 2024 09:34 IST2024-09-21T09:34:44+5:302024-09-21T09:34:47+5:30
इस उपलब्धि के साथ अमेरिका, कनाडा और दक्षिण अफ्रीका की एक साथ नागरिकता रखने वाले अरबपति एलन मस्क की कंपनी- स्पेसएक्स दुनिया की पहली ऐसी प्राइवेट कंपनी बन गई थी, जो अपने रॉकेट से दो अंतरिक्षयात्रियों को आईएसएस तक सफलतापूर्वक ले गई थी।

ब्लॉग: नई ऊंचाई पर अंतरिक्ष का निजीकरण
अंतरिक्ष यूं तो मानव सभ्यता के आरंभ से ही हरेक इंसान को लुभाता रहा है, रोमन और इंका सभ्यताओं के कई रेखांकन इसकी पुष्टि करते हैं। इस ब्रह्मांड में अकेले होने की पीड़ा से ग्रस्त मनुष्य अंतरिक्ष से किसी संदेश की प्रतीक्षा में है। यही नहीं, वह खुद अंतरिक्ष के आंगन में उतरकर देख लेना चाहता है कि आखिर वहां क्या है। क्या वहां जीवन है, क्या वहां कोई और सभ्यता है। इन सवालों के हल के लिए दशकों तक जो खोजबीन हुई है, वह सरकारी अंतरिक्ष एजेंसियों की बदौलत हुई।
अंतरिक्ष में उनके भेजे अभियानों में उन वैज्ञानिकों और अंतरिक्षयात्रियों को मौका मिला, जो उन्हीं से जुड़े हुए थे। लेकिन हाल के दशक में अंतरिक्ष के सरकारी होने का मिथक टूटा है। स्पेसएक्स, ब्लू ओरिजिन और बोइंग आदि कई कंपनियों ने नासा आदि सरकारी कंपनियों का कई मामलों में सहयोग किया है। साथ ही, इन कंपनियों के भेजे स्पेसक्राफ्ट से आम इंसानों ने अंतरिक्ष की यात्रा की है। ताजा उपलब्धि आम इंसानों की अंतरिक्ष में चहलकदमी या स्पेसवॉक की है।
ऐसा मानव इतिहास में पहली बार हुआ है जब न सिर्फ निजी कंपनियों ने किसी सरकारी अंतरिक्ष कंपनी के स्पेस मिशन में सहयोग किया, बल्कि उस पर भेजे गए आम इंसानों ने अंतरिक्ष में वे प्रयोग और परीक्षण भी किए जो अब से पहले सिर्फ सरकारी अंतरिक्ष कंपनियों के वैज्ञानिक, इंजीनियर या क्रू मेंबर्स कर पाते थे। हाल में, अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने चार आम इंसानों को पांच दिवसीय पोलारिस डॉन मिशन पर अंतरिक्ष में भेजा।
दस सितंबर 2024 को कैनेडी स्पेस सेंटर से रवाना हुए इस मिशन को ट्विटर (एक्स) और टेस्ला के मालिक एलन मस्क और एक अन्य अरबपति जारेड आइसैनमैन ने धन और संसाधन मुहैया कराए थे। मस्क की कंपनी ने अपनी ओर से निजी विमानन कंपनी बोइंग की मदद से स्पेसक्राफ्ट स्टारलाइनर तैयार करवाया था। इस यान से खुद जारेड आइसैकमैन (मिशन कमांडर) के अलावा तीन अन्य आम इंसान- स्कॉट ‘किड’ पोटीट (पायलट), साराह गिलिस और अन्ना मेनन अंतरिक्ष में पहली बार सबसे ज्यादा ऊंचाई – पृथ्वी से 1400 किलोमीटर ऊपर की कक्षा (ऑर्बिट) तक गए थे। सन् 1966 के नासा के मिशन जेमिनी-11 ने अंतरिक्ष में 1373 किमी (853 मील) की ऊंचाई तक जाने का जो कीर्तिमान बनाया था, उसे ताजा पोलारिस डॉन मिशन ने तोड़ दिया।
यह मिशन 1400 किमी की ऊंचाई तक पहुंचा और इसके अंतरिक्ष यात्रियों ने थोड़ा नीचे आकर 12 सितंबर 2024 को 737 किमी की ऊंचाई पर स्पेसक्राफ्ट से बाहर निकलकर अंतरिक्ष में चहलकदमी (स्पेसवॉक) भी की। इस तरह पोलारिस डॉन की उड़ान चांद पर इंसान को ले जाने वाले अपोलो मिशनों के बाद से किसी भी इंसान द्वारा की गई सबसे ऊंची उड़ान साबित हुई है। यही नहीं, इन अंतरिक्षयात्रियों ने 31 अलग-अलग संस्थानों के साथ मिलकर इस दौरान वहां इंसानी सेहत से जुड़े 36 किस्म के शोध और प्रयोग भी किए। इस तरह अंतरिक्ष की एक निजी उड़ान सभ्यता के इतिहास में इस रूप में दर्ज हो गई है कि अंतरिक्ष से जुड़े किसी सरकारी अभियान से बाहर किसी निजी मिशन पर अंतरिक्ष यात्री न सिर्फ स्पेस में सबसे ऊपर तक गए, बल्कि वहां ठीक उसी तरह प्रयोग और परीक्षण किए- जैसे वैज्ञानिक करते हैं।
इस तरह अंतरिक्ष के निजीकरण में एक नया आयाम जुड़ रहा है। इस आयाम में निजी कंपनियां सरकारी अंतरिक्ष एजेंसियों के साथ जटिल अंतरिक्ष अभियानों में अपना सक्रिय योगदान और आर्थिक सहयोग दे रही हैं, बल्कि अंतरिक्ष में आम इंसानों की भागीदारी भी सुनिश्चित कर रही हैं। हालांकि यह सही है कि अभी अंतरिक्ष में जाने वाले आम नागरिक बहुत पैसे वाले हैं, लेकिन जिस तरह से एलन मस्क ने 10 लाख इंसानों को अगले एक दशक में मंगल तक ले जाने का सपना देखा है, उसके मद्देनजर ये अभियान नींव का पत्थर साबित हो सकते हैं।
उल्लेखनीय है कि स्पेसएक्स और बोइंग जैसी कंपनियां अमेरिका की सरकारी अंतरिक्ष एजेंसी- नासा के कई बेहद महत्वपूर्ण अंतरिक्ष अभियानों में भागीदारी कर रही हैं। स्पेसएक्स ने नासा ही नहीं, बल्कि ऑस्ट्रेलिया आदि देशों के निजी उपग्रहों के प्रक्षेपण में भी योगदान दिया है। इसी वर्ष मार्च 2024 में ऑस्ट्रेलिया के स्टार्टअप स्पेस मशीन्स कंपनी के उपग्रह- ऑप्टिमस को स्पेसएक्स के प्रक्षेपण यान फॉल्कन-9 की मदद से अंतरिक्ष में पहुंचाया गया था। इस ऑस्ट्रेलियाई कंपनी के अभियान की पृष्ठभूमि में एक भारतीय उद्यम- अनंत टेक्नोलॉजीज का योगदान भी है क्योंकि इसने ऑस्ट्रेलिया की कंपनी के शोध एवं अनुसंधान का काम यहां किया था। इसका उल्लेख ऑप्टिमस के प्रक्षेपण के बाद ऑस्ट्रेलिया के उच्चायुक्त फिलिप ग्रीन ने भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंधों की उपलब्धि के बखान के रूप में किया था।
विदेशों में, खास तौर से अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा में तो निजी कंपनियों के योगदान का रास्ता काफी पहले खुल चुका है, पर ऐसी ही एक शुरुआत हमारे देश में भी इसरो जैसे प्रतिष्ठित संगठन में भी हो चुकी है। भारत में अंतरिक्षीय कार्यक्रमों के निजीकरण का यह सिलसिला एक मिशन ‘प्रारंभ’ के साथ शुरू हो चुका है। इसके अंतर्गत हैदराबाद का एक अंतरिक्ष स्टार्टअप- स्काईरूट एयरोस्पेस भारत के पहले निजी रॉकेट विक्रम-एस का सफल प्रक्षेपण दो साल पहले 18 नवंबर 2022 को इसरो की सहायता से कर चुका है। इसरो से इतर अन्य सरकारी संगठनों में भी कुछ ऐसी संभावनाएं तलाशने की प्रेरणा जगी है जहां संस्थाओं का खर्च घटाने, कमाई बढ़ाने और निजी संगठनों को सक्रिय भागीदारी करने का मौका मिल सकता है।
जहां तक अंतरिक्ष अनुसंधान और पर्यटन जैसे क्षेत्रों में निजी कंपनियों के योगदान की बात है, तो निजी कंपनियों के प्रयासों से लग रहा है कि अंतरिक्ष एक बार फिर इंसान के सपनों की नई मंजिल बन गया है। एलन मस्क की स्पेसएक्स और जेफ बेजोस की ब्लू ओरिजिन की ओर की जा रही पहलकदमियां नई जरूर हैं, पर इस बारे में ध्यान रखने वाली बात यह है कि अंतरिक्ष की सैर और उसमें निजी कंपनियों की भागीदारी की पहल अरसे से की जा रही है। जैसे, चार साल पहले (30 मई 2020) एक निजी उड़ान की मदद से ही दो अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आईएसएस) पहुंचे थे। इस उपलब्धि के साथ अमेरिका, कनाडा और दक्षिण अफ्रीका की एक साथ नागरिकता रखने वाले अरबपति एलन मस्क की कंपनी- स्पेसएक्स दुनिया की पहली ऐसी प्राइवेट कंपनी बन गई थी, जो अपने रॉकेट से दो अंतरिक्षयात्रियों को आईएसएस तक सफलतापूर्वक ले गई थी।