ब्लॉग: कोई बहन के सहारे, कोई करे भाऊ के इशारे
By Amitabh Shrivastava | Updated: July 6, 2024 10:48 IST2024-07-06T10:46:39+5:302024-07-06T10:48:21+5:30
मध्य प्रदेश, राजस्थान के बाद अब महाराष्ट्र में भाजपा के गठबंधन की सरकार ने 'मुख्यमंत्री-मेरी लाड़ली बहन योजना' (मराठी में 'मुख्यमंत्री-माझी लाडकी बहीण योजना') की शुरुआत की है।

फोटो क्रेडिट- (एक्स)
हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अनेक मंचों से 'रेवड़ी कल्चर' को आम जनता को मूर्ख बनाने की कोशिश बता चुके हैं, लेकिन हर चुनाव के मुहाने पर भाजपा शासित राज्यों की सरकारें भी मतदाताओं का मुंह मीठा कराने से नहीं चूकती हैं। मध्य प्रदेश, राजस्थान के बाद अब महाराष्ट्र में भाजपा के गठबंधन की सरकार ने 'मुख्यमंत्री-मेरी लाड़ली बहन योजना' (मराठी में 'मुख्यमंत्री-माझी लाडकी बहीण योजना') की शुरुआत की है। यही नहीं, राज्य के बजट में महिलाओं को साल में रसोई गैस के तीन सिलेंडर मुफ्त देने की घोषणा की गई है। साफ है कि अगले तीन माह में राज्य की विधानसभा का चुनाव होना है और सरकार महंगाई-बेरोजगारी के मुद्दे को दबाकर मतदाताओं का सामना करना चाहती है। इस उद्देश्य में उसके पास आधी आबादी को लुभाने वाली जांची-परखी योजना है.
यूं तो लोगों को राहत पहुंचाने का हर सरकार का अपना-अपना तरीका होता है। भाजपा ने केंद्र की सत्ता पाते ही 'उज्ज्वला योजना' से रसोई गैस से वंचित महिलाओं को राहत देने की कोशिश की थी। उसके बाद स्वास्थ्य बीमा और मकान देने की कोशिश भी गरीबों की सहायता का प्रयास था। इससे भाजपा को उत्तरप्रदेश सहित अनेक राज्यों में राजनीतिक लाभ मिला। जब इसी परिपाटी को दिल्ली की आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार ने अपनाया तो वह 'मुफ्त की रेवड़ियां कल्चर' में बदल गया.
वर्ष 2020 में कोविड की महामारी आई तो बहुत बड़ा वर्ग आर्थिक संकट से गुजर रहा था। उसे सहायता की आवश्यकता थी।उस समय केंद्र ने करोड़ों लोगों को दो हजार रुपए की नगद राशि से लेकर मुफ्त अनाज देने तक की व्यवस्था की, जिसमें से नगद रकम तो आपदा के बाद बंद हो गई, लेकिन अनाज आज भी दिया जा रहा है।दूसरी ओर दिल्ली में 'आप' ने इसी तरह की अपनी नि:शुल्क व्यवस्थाओं से आम आदमी से सीधा संबंध बना कर अच्छा-खासा चुनावी लाभ कमाया।
यहां तक कि विधानसभा चुनाव से लेकर नगर निगम चुनाव तक में भी उसे भारी सफलता मिली। इसकी आहट जब पंजाब तक पहुंची तो वहां के विधानसभा चुनावों में 'आप' को बहुमत मिला।यही बात कांग्रेस को जीत का शार्टकट लगी तो उसने भी कर्नाटक विधानसभा चुनाव के पहले अनेक घोषणाएं कर परिणाम अपने पक्ष में कर लिया।भाजपा ने राजस्थान में सत्ता मिलने के बाद लोकसभा चुनाव के दौरान 'लाडो बहन' योजना आरंभ की। हालांकि उसे अपेक्षित परिणाम नहीं मिले।
अब महाराष्ट्र की बारी है, जिसमें राज्य सरकार ने अपना खजाना महिलाओं के लिए खोल दिया है। लोकसभा चुनाव के पहले राज्य परिवहन निगम की बस में महिलाओं का टिकट आधा करना और अब 1500 रुपए नकद देना चुनाव की तैयारी माना जा रहा है। यदि इसे किसी तथ्यात्मक आधार से जोड़ा जाए तो लोकसभा चुनाव में राज्य में कुल 9,12,44,679 मतदाता थे, जिनमें 4,72,26,653 पुरुष, 4,40,16,383 महिला थे।पिछले चुनाव की तुलना में इनमें पुरुष में 1,01,869 और
महिलाओं की संख्या में 3,08,306 की वृद्धि दर्ज की गई।स्पष्ट है कि राज्य में महिला मतदाता लगभग आधे हैं। जिनकी बदौलत परिणामों में परिवर्तन लाया जा सकता है।वर्ष 2023 में मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में अनेक निर्वाचन क्षेत्रों में महिलाओं ने पुरुषों से अधिक मतदान किया था, जिसके प्रतिफल के रूप में राज्य में भाजपा की वापसी हुई थी। किंतु दिल्ली में 'आप', मध्य प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और कर्नाटक में कांग्रेस की वापसी का आधार केवल 'रेवड़ी कल्चर' नहीं कहा जा सकता है।
दिल्ली में 'आप' ने अपने मतदाता का ध्यान रखा और मतदाता ने 'आप' का ध्यान रखा।दोनों के बीच आर्थिक दुर्बलता आधार था, जिसको स्वास्थ्य, शिक्षा और बिजली-पानी जैसी मूलभूत आवश्यकताओं में सहायता के साथ जोड़ा गया।मध्य प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लंबे समय से 'मामा' के रूप में महिलाओं के साथ एक रिश्ता बनाया। मगर जब महिलाओं पर अत्याचार की खबरें सुर्खियां बनीं तो वह उनके खिलाफ पुरजोर तरीके से सामने आए। इसी बीच, आर्थिक सहायता से आत्मबल बढ़ाकर उनका मन जीत लिया। कर्नाटक में भाजपा सरकार विरोधी लहर का लाभ उठा कर कांग्रेस सत्ता में आई और उसने आते ही लोगों का दिल जीतने की घोषणाएं करनी आरंभ कर दीं, जिनमें से कुछ पूरी हुईं और कुछ पूरी होना बाकी हैं।
कर्नाटक की तरह ही राजस्थान में भाजपा ने सत्ता में आते ही महिलाओं के लिए लाभकारी योजनाएं आरंभ कर दीं।किंतु कांग्रेस और भाजपा दोनों को उनका लोकसभा चुनाव में लाभ नहीं हुआ। वर्तमान में विधानसभा चुनाव को देख महाराष्ट्र में महागठबंधन सरकार ने महिलाओं के सहारे सत्ता में वापसी का सपना संजोना आरंभ किया है, जिसका जवाब विपक्ष ने 'भाऊ' को लेकर किए इशारे से दिया है।
स्पष्ट है कि योजनाएं एक समान हो सकती हैं, लेकिन राज्य की चिंताएं एक जैसी नहीं हो सकती हैं।दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और मध्य प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की तरह हर एक का जनमानस से एक-सा रिश्ता नहीं हो सकता है।इसे राजस्थान तथा कर्नाटक ने हाल ही में महसूस किया है। महाराष्ट्र में भी काफी दिनों से महिलाओं के लिए आधे टिकट पर सरकारी बस में यात्रा की योजना चल रही है, किंतु उसका लाभ लोकसभा चुनाव में जरा भी नहीं मिला।
विधानसभा चुनाव के परिदृश्य में राज्य का नेतृत्व दिल्ली के मुख्यमंत्री और मध्यप्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री के रूप में समाज में अपनी अलग पहचान नहीं रखता है। ऐसे में सरकारी योजना का लाभ उठाने के लिए कार्यालयों में भीड़ उमड़ेगी।लाभ लिया जाएगा और खुशियां भी मनाई जाएंगी। किंतु उनका 'ईवीएम' तक टिका रहना संभव नहीं होगा। विपक्ष ने महंगाई और बेरोजगारी को जिस प्रकार सिर पर उठाया हुआ है, उससे केवल महिलाएं ही नहीं, बल्कि पुरुष भी प्रभावित हैं।
यदि सत्ता पक्ष महिलाओं का सहारा लेगा तो विपक्ष पुरुषों को इशारा देने में नहीं चूकेगा। इसलिए वास्तविकता की 'रेवड़ियों' से मिठास घोलने की आवश्यकता है। मुफ्त की 'रेवड़ियां' वोट में नहीं, बल्कि राज्य सरकार पर आर्थिक बोझ के रूप में जरूर बदलेंगी। भविष्य में उनसे बचना आसान नहीं होगा।यही बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अनेक मंचों से कहते हैं। आश्चर्य यह है कि भाजपा शासित राज्य भी उनकी बात क्यों नहीं समझते हैं?