शशिधर खान का ब्लॉग: कब सुलझेगी नगा समस्या?
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: July 24, 2019 01:05 PM2019-07-24T13:05:59+5:302019-07-24T13:05:59+5:30
भारत सरकार और नगा नेताओं के बीच हुई उस ‘डील’ के कागजात पर ‘स्वतंत्र संप्रभु नगालिम’ की मांग करने वाले नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालिम (एनएससीएन- आई-एम-आईसाक मुइवा) सुप्रीमो आइसाक चिशी तथा टी मुइवा ने हस्ताक्षर किए.
नगा ‘डील’ पर बेनतीजा वार्ता चला रहे पूर्व खुफिया प्रमुख आऱ एऩ रवि को नगालैंड का राज्यपाल बना दिया गया. नगालैंड ही नहीं, समूचे पूर्वोत्तर और देश का सबसे पुराना पेचीदा संकट है नगा समस्या. उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार आऱ एऩ रवि नगा ‘डील’ को समझौते में बदलने के लिए विद्रोही नगा नेताओं से गुप्त वार्ता चला रहे हैं. प्रधानमंत्री की मौजूदगी में दिल्ली में तीन अगस्त, 2015 को हुई इस डील के चार साल पूरे हो रहे हैं. उस अवसर पर तत्कालीन गृह मंत्री राजनाथ सिंह भी मौजूद थे.
भारत सरकार और नगा नेताओं के बीच हुई उस ‘डील’ के कागजात पर ‘स्वतंत्र संप्रभु नगालिम’ की मांग करने वाले नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालिम (एनएससीएन- आई-एम-आईसाक मुइवा) सुप्रीमो आइसाक चिशी तथा टी मुइवा ने हस्ताक्षर किए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेहद उत्साहित होकर उसे ‘ऐतिहासिक समझौता’ बताया और दावा किया कि 18 साल से लटके नगा संकट का स्थायी ‘समाधान’ हो गया.
नरेंद्र मोदी ने 18 साल इसलिए कहा, क्योंकि 1997 में राष्ट्रीय मोर्चा सरकार के प्रधानमंत्री इंद्रकुमार गुजराल के प्रयासों से एनएससीएन (आई-एम) के साथ ‘संघर्षविराम सहमति’ बनी. उसका पूर्वोत्तर समेत पूरे देश में स्वागत हुआ क्योंकि आजादी के समय से चली आ रही बेकाबू नगा हिंसा पर थोड़ा विराम लगा. उसे शांति की दिशा में बहुत बड़ा कदम माना गया, क्योंकि उसके बाद से ही शांति वार्ता का मार्ग खुला.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस ‘डील’ को ऐतिहासिक समझौता और नगा संकट का स्थायी हल बताया, उसके विषय में अभी तक संशय बरकरार है. तीन अगस्त को इस ‘सस्पेंस’ के चार साल पूरे हो जाएंगे. भारत सरकार के वार्ताकार आऱ एऩ रवि पूर्व खुफिया प्रमुख रह चुके हैं. इस अवधि में नगा गुटों से मिलने-जुलने या वार्ता करने का क्या नतीजा निकला, वे किस मुकाम तक पहुंचे उसे गोपनीय बनाए रखा.
आऱ एऩ रवि को क्या सोचकर नगालैंड का ‘राज्यपाल’ बनाया गया, इस संबंध में अभी तुरंत अनुमान लगाना कठिन है. मगर चार साल की वार्ता में आऱ एऩ रवि को नगालैंड की जनता समेत नगा विद्रोही गुटों को विश्वास में लेने में सफलता नहीं मिली है. हो सकता है कि आऱ एऩ रवि नगा गुटों से उनके ठिकानों पर गुप्त मुलाकातें करते रहे हों, लेकिन नगालैंड के मतदाताओं ने उसे समस्या का हल नहीं माना है.