पहलवानों की शिकायत पर कार्रवाई में इतना सोच-विचार उचित नहीं
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: May 1, 2023 15:36 IST2023-05-01T15:35:43+5:302023-05-01T15:36:53+5:30
दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरने पर बैठे विनेश फोगाट, बजरंग पूनिया और साक्षी मलिक समेत अन्य पहलवान पिछले एक सप्ताह से अधिक समय से वहीं पर अपना खाना-पीना कर रहे हैं.

(फोटो क्रेडिट- ANI)
भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ महिला पहलवानों की लड़ाई के आठ दिन पूरे हो चुके हैं. उच्चतम न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद समूचे मामले में अध्यक्ष सिंह के खिलाफ दो एफआईआर दर्ज हो चुकी हैं. यह मामला पिछले तीन-चार महीने से गर्माया हुआ है. चूंकि पहली बार नाराज खिलाड़ियों की बात सुनकर सरकार ने एक जांच समिति बना दी थी, लेकिन उसका कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आया, जिसके बाद असंतुष्ट पहलवान अब महासंघ अध्यक्ष को गिरफ्तार करने की मांग कर रहे हैं.
वहीं अध्यक्ष सिंह, जो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद भी हैं, अपने खिलाफ कार्रवाई को लेकर परेशान नहीं हैं. उनकी समस्या मामले को लेकर हो रही राजनीति और उससे प्रभावित आंदोलन से है. वह दावा कर रहे हैं कि उन पर आरोप लगाने वाला कोई भी सीधे तौर पर सामने नहीं आया है. वह आंदोलन को एक परिवार और एक नेता-उद्योगपति का मान रहे हैं. दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरने पर बैठे विनेश फोगाट, बजरंग पूनिया और साक्षी मलिक समेत अन्य पहलवान पिछले एक सप्ताह से अधिक समय से वहीं पर अपना खाना-पीना कर रहे हैं.
उन्हें ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता भालाफेंक खिलाड़ी नीरज चोपड़ा, दिग्गज क्रिकेट खिलाड़ी कपिल देव, पहलवान योगेश्वर दत्त, ओलंपियन अभिनव बिंद्रा और जाने-माने अभिनेता सोनू सूद का समर्थन मिल चुका है. राजनेता के तौर पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी और उनके पति रॉबर्ट वाड्रा उनसे सहानुभूति जता चुके हैं. कर्नाटक चुनाव के बीच एक नया आंदोलन और उसके पीछे छिपी राजनीति भाजपा का नया संकट है. हालांकि बृजभूषण शरण सिंह इसका भाजपा से संबंध मानने से इंकार करते हैं. वह इसे उनका अपना मामला मानते हैं.
वह पुलिस कार्रवाई के लिए भी तैयार हैं और भाजपा के कहने पर इस्तीफा देने के लिए भी तैयार हैं. अब ऐसे में सवाल यह आ जाता है कि सरकार की कार्रवाई में इतना समय क्यों लग रहा है? यदि यौन शोषण के आरोप किसी भी व्यक्ति पर लगते हैं तो उस पर सीधी कार्रवाई का नैतिक और कानूनी दोनों का ही प्रावधान है. इसके लिए अदालत के आदेश की प्रतीक्षा करना उचित भी नहीं है. वहीं दूसरी तरफ जैसा पहलवान योगेश्वर दत्त का कहना है कि पुलिस तभी कार्रवाई करेगी, जब उसके पास शिकायत आएगी. घर में या धरने पर बैठने से शिकायत दर्ज हो पाना संभव नहीं है.
यदि पहलवान कार्रवाई चाहते थे तो उन्हें तीन माह पहले ही पुलिस के पास पहुंचना चाहिए था. स्पष्ट है कि धरने पर बैठकर अपनी समस्या को राजनीतिक बनाना और आरोप-प्रत्यारोप के बीच आंदोलन को कमजोर करना सही नहीं है. पूरा मामला व्यवस्था से जुड़ी कमजोरी और उसकी कार्रवाई से संबंधित है. यदि शिकायत के बाद कार्रवाई नहीं होती है तो अदालत और लोकतांत्रिक व्यवस्था में आंदोलनों का सहारा लिया जा सकता है. लेकिन कोरी बयानबाजी और धरने से न्याय की उम्मीद नहीं की जा सकती है.
यह मामला दोनों ही पक्षों की तरफ से सही नतीजे पर पहुंचने के लिए गलत रास्ता चुनने का है. सरकार यदि विषय की गंभीरता को मानती है तो वह कठोर कदम उठा सकती है, मगर वह उसे व्यवस्था पर छोड़ कर सारे खेल को देख रही है, वहीं खिलाड़ी एक मंच पाकर अपने मन की भड़ास निकाल रहे हैं. ऐसे में अब सरकार को प्रशासन को सीधे निर्देश देकर कार्रवाई करवानी चाहिए, जिससे सच सामने आए और खिलाड़ी आंदोलन की बजाय अपने खेल पर ध्यान लगाएं. वैसे भी अदालत के आदेश के बाद अब कोई गुंजाइश नहीं रह गई है. इसलिए आगे की ढिलाई का समाज में गलत संदेश जाएगा.