ऋषभ कुमार मिश्र का ब्लॉग: हिंदी की ताकत दुनिया को दिखाएं
By लोकमत न्यूज़ ब्यूरो | Published: October 15, 2018 01:41 AM2018-10-15T01:41:24+5:302018-10-15T13:23:04+5:30
महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय ने अपनी स्थापना के 20 वर्ष पूर्ण कर लिए हैं। इस दौरान विश्वविद्यालय ने उच्च शिक्षा को केंद्र में रखते हुए हिंदी-समाज को वाणी प्रदान की है।
महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय ने अपनी स्थापना के 20 वर्ष पूर्ण कर लिए हैं। इस दौरान विश्वविद्यालय ने उच्च शिक्षा को केंद्र में रखते हुए हिंदी-समाज को वाणी प्रदान की है।
समय और परिस्थितियों के साथ चुनौतियां बदली हैं। एक ओर हमें हिंदी भाषा और साहित्य को अद्यतन व सजीव रखना है तो दूसरी ओर हिंदी भाषा को विचार प्रक्रिया की स्वाभाविक धारा बनाना है।
इन दोनों लक्ष्यों को हम पहले या दूसरे नंबर पर नहीं रख सकते हैं और न ही एक को पूरा करने के नाम पर दूसरे को विलंबित कर सकते हैं। जैसे-जैसे आप किसी भाषा में सोचने-विचारने की क्षमता को कमजोर करेंगे वैसे-वैसे भाषा कमजोर होती जाएगी। कमजोर भाषा स्वत: ही चलन के बाहर हो जाएगी। इसी कारण हिंदी भाषी परिवारों में ऐसी पीढ़ी तैयार हो रही है जो हिंदी के मातृभाषा होने की हर संभावना को खारिज करने पर तुली है।
भाषा को ताकत सत्ता से मिलती है। आजकल सत्ता में राजनीति और अर्थनीति का गठजोड़ हावी है। यह गठजोड़ संवेदना की भाषा नहीं जानता। इसे तो जो उपयोगी है वही स्वीकार्य है। विचार और आदर्श के धरातल पर इस सच्चाई की कितनी भी आलोचना क्यों न करें लेकिन यदि आप अपनी भाषा की ताकत को वैश्विक जगत के सामने नहीं रख सकते तो आपका हर यत्न निष्प्रभावी होगा।
हिंदी के हित का सवाल केवल साहित्य और भाषा विशेष से नहीं जुड़ा है बल्कि यह अस्मिता और वैचारिक संप्रभुता का सवाल है। हमें ऐसे विश्वविद्यालय की परिकल्पना करनी होगी जिसके चिंतन-मनन और व्यवहार में हिंदी हो। साहित्य के सृजन के साथ मौलिक वैचारिकी का संवर्धन हो। हिंदी भाषा, समाज और संस्कृति के अन्य भाषाओं, समाजों और संस्कृतियों से संवाद की पूरी गुंजाइश हो।
आशा करनी चाहिए कि हिंदी विश्वविद्यालय हिंदी के मोहपाश से हिंदी-समाज को बांधने के बदले ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में इसे हिंदी की जय-पताका के रूप में स्थापित करने के लिए तत्पर होगा।