शोभना जैन का ब्लॉग: चाबहार-जहेदान रेल परियोजना में भारत की भागीदारी पर असमंजस

By शोभना जैन | Updated: July 25, 2020 05:55 IST2020-07-25T05:55:06+5:302020-07-25T05:55:06+5:30

भारत-ईरान और अफगानिस्तान के त्रिपक्षीय सहयोग से बनने वाली चाबहार पोर्ट परियोजना आपसी सहयोग के नए अवसरों के लिए बहुत अहम है, वहीं निश्चित तौर पर चीन इस मौके को ईरान के जरिये  खाड़ी क्षेत्र में अपनी पैठ जमाने के एक मौके के रूप में देख रहा है.

Shobhana Jain's blog: Confusion over India's participation in the Chabahar-Jahedan rail project | शोभना जैन का ब्लॉग: चाबहार-जहेदान रेल परियोजना में भारत की भागीदारी पर असमंजस

चाबहार-जहेदान रेल (फाइल फोटो)

ईरान स्थित महत्वाकांक्षी चाबहार-जहेदान रेल संपर्क परियोजना में भारत की भागीदारी ‘हां और ना’ के बीच सस्पेंस में घिर गई लगती है.

अपने परमाणु कार्यक्रम को लेकर अमेरिका की अगुवाई में पश्चिमी देशों सहित अनेक देशों के आर्थिक प्रतिबंध की मार झेल रहा ईरान अब चीन के साथ लगभग 400 अरब डॉलर के व्यापार और सैन्य समझौता करने को अंतिम रूप देने की तैयारी कर रहा है और उसका एक असर ईरान में भारत के सहयोग से बन रहे चाबहार बंदरगाह परियोजना के तहत जहेदान रेल गलियारा बनाने की परियोजना पर भी पड़ता प्रतीत होता है.

ईरान ने पिछले दिनों यह कह कर भारत को बड़ा कूटनीतिक झटका दिया कि इस समझौते के 4 साल बीत जाने के बाद भी भारत इस परियोजना के लिए फंड नहीं दे रहा है, इसलिए वह अब खुद ही चाबहार रेल परियोजना को पूरा करेगा और इसके लिए नेशनल डेवलपमेंट फंड 40 करोड़ डॉलर की धनराशि का इस्तेमाल करेगा.

लेकिन भारत में सरकारी तौर पर कहा गया है कि इस रेल परियोजना को लेकर भारत की कुछ आपत्तियां हैं, जिस पर बातचीत जारी है.

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव के अनुसार, ‘भारत-ईरान संयुक्त आयोग की दिसंबर 2019 में हुई संयुक्त आयोग की बैठक में इस मामले की समीक्षा की गई, भारत ने इसके विचाराधीन तकनीकी और आर्थिक पक्ष से जुड़े मुद्दों को अंतिम रूप देने के लिए किसी आधिकारिक प्रतिनिधि को नामित किए जाने को कहा था, इस पर ईरान के उत्तर की प्रतीक्षा है.’

दोनों देशों के बीच इस चर्चित मार्ग के बारे में सहमति पत्र एमओयू पर तो हस्ताक्षर हुए हैं लेकिन भारत की आपत्तियों के चलते समझौते पर अभी तक हस्ताक्षर नहीं हुए हैं और ऐसे में अब ईरान में चीन  की ‘एंट्री’ हुई है. खबरों के अनुसार ईरान और चीन के बीच 25 साल के रणनीतिक समझौते पर बातचीत पूरी हो गई है.

भारत-ईरान और अफगानिस्तान के त्रिपक्षीय सहयोग से बनने वाली चाबहार पोर्ट परियोजना आपसी सहयोग के नए अवसरों के लिए बहुत अहम है, वहीं निश्चित तौर पर चीन इस मौके को ईरान के जरिये  खाड़ी क्षेत्र में अपनी पैठ जमाने के एक मौके के रूप में देख रहा है.

बहरहाल ईरान के चीन के साथ मिल कर इस रेल मार्ग बनाने की संभावनाओं के बीच ईरान के रेल मंत्री ने ईरान के शुरुआती ‘ऐलान’ से हट कर बाद में कहा कि ईरान रेलवे लाइन पर भारत के साथ सहयोग करने के लिए  ‘प्रतिबद्ध’ है.

बहरहाल एक तरफ जहां चाबहार पोर्ट परियोजना के विकास का कार्य जारी है, भारत फिलहाल इसकी इस रेल परियोजना से जुड़ा नहीं है. दोनों ही देशों ने यह विकल्प खुला रखा है कि इस रेल परियोजना से भारत बाद में जुड़ सकता है. भारत की सरकारी कंपनी इरकॉन इसे पूरा करने वाली थी.

गौरतलब है कि गत 7 जुलाई को ही ईरान के परिवहन और शहरी विकास मंत्री मोहम्मद इस्लामी ने 628 किमी लंबे रेलवे ट्रैक को बनाने का उद्घाटन किया था. इस रेलवे लाइन को अफगानिस्तान की जरांज सीमा तक बढ़ाया जाना है. इस पूरी परियोजना को मार्च 2022 तक पूरा किया जाना है.  

भारत के लिए पूरी चाबहार पोर्ट परियोजना व्यापारिक और  सामरिक दृष्टि दोनों से ही बहुत अहम है, जो कि दरअसल मुक्त व्यापार क्षेत्र की प्रतीक है. यह परियोजना भारत की अफगानिस्तान और अन्य मध्य एशियाई देशों तक एक वैकल्पिक मार्ग मुहैया कराने की प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिए बनाई जानी थी.  

वर्ष 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ईरान यात्रा के दौरान चाबहार समझौते पर हस्ताक्षर हुए. पूरी परियोजना पर करीब 1.6 अरब डॉलर का निवेश होना था. लेकिन  हकीकत यह है कि ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों की पृष्ठभूमि के दबाव के चलते भारत की ईरान नीति में बदलाव देखने को मिले, हालांकि भारत ने संतुलन साधने की भी कोशिश की.

बहरहाल परियोजना के रेल मार्ग पर भारतीय फंडिंग प्रभावित हुई, जिसके चलते भारत ने रेल परियोजना पर काम शुरू नहीं किया. इसी बदली हुई नीति के चलते भारत ने ईरान से अपना ऊर्जा आयात बिल्कुल खत्म कर दिया, हालांकि वह भारत का तीसरा सबसे बड़ा तेल सप्लायर था.

अमेरिका ने हालांकि चाबहार बंदरगाह के लिए छूट दे रखी है लेकिन दबाव के चलते इसके लिए भी उपकरणों के सप्लायर नहीं मिल रहे हैं. जरूरत इस बात की है कि संबंधों में ऐसा संतुलन  बनाया जाए जिससे भारत की ईरान नीति पर अमेरिकी प्रभाव इतना हावी नहीं हो और भारत के हित और संबंध अक्षुण रहें.

Web Title: Shobhana Jain's blog: Confusion over India's participation in the Chabahar-Jahedan rail project

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