दो महीने तक परदेस में फंसे रहे, थके-हारे, बुझी और पथराई सी आंखों वाले भारतीयों के पहले जत्थे ने कल देर रात केरल के कोच्चि हवाई अड्डे पर उतरते ही जैसे ही स्वदेश की मिट्टी को चूमा, वहां मौजूद काफी लोगों की आंखें भी नम हो आईं. परदेस में रोजी-रोटी कमाने या बेहतर भविष्य की आस में दूर देश पढ़ने गए छात्र या फिर किसी और वजह से विदेश गए, ये सभी भारतीय दुनिया के अन्य देशों की तरह कोरोना से त्रस्त हालात के चलते लागू किए गए लॉकडाउन की वजहों से सात समंदर पार फंस गए थे. बेबसी से घिरे इन सभी की गुहार पर इन्हें वापस स्वदेश लाने की सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना ‘वंदे भारत’ मिशन के तहत कल से ये लोग स्वदेश लौटने शुरू हो गए, लेकिन निश्चित तौर पर परदेस में फंसे अपने नागरिकों को स्वदेश वापस लाने के इस अब तक के सबसे बड़े अभियान के तहत जहां उन्हें वापस लाने की चुनौतियां खासी दुरूह हैं, उतना ही दुरूह होगा इन सभी की वापसी के बाद इन्हें देश में अवसर उपलब्ध कराना, इनकी वापसी के बाद इनके पुनर्वास की चुनौती.
इनकी दक्षता और अनुभव के अनुरूप क्या इन्हें देश में अवसर मिल पाएंगे, ऐसे छात्रों का भविष्य अब क्या होगा? केंद्र के साथ राज्य सरकारों के सम्मुख ये बड़ी चुनौतियां हैं. खास तौर पर ऐसे हालात में जहां देश पहले से ही आर्थिक सुस्ती के दौर से गुजर रहा था, कोरोना ने आर्थिक बदहाली को अति गंभीर बना दिया. मोटे अनुमान के अनुसार विदेशों में स्थित भारतीय दूतावासों में अब तक करीब 10 लाख लोग अपने नाम स्वदेश वापसी के लिए पंजीकृत करा चुके हैं. अकेले सऊदी अरब से स्वदेश लौटने को बेताब भारतीयों का आंकड़ा 1.50 लाख बताया जा रहा है. इसी तरह केरल में ही कुल 56,000 लोग स्वदेस लौटने के लिए अपना पंजीकरण करा चुके हैं, ये वे लोग हैं जो अपना रोजगार गंवा चुके हैं.
दरअसल वापस आने वाले सभी भारतीय कामगार दूसरे राज्यों में काम धंधे के लिए गए देश के अप्रवासी कामगारों की तरह असामान्य हालात में वापस लौट रहे हैं, जहां वे दुनिया भर की तरह कल की अनिश्चितता से घिरे हैं. सामान्य हालात में जहां वापसी आर्थिक पहलू के साथ-साथ जड़ों की तरफ दोबारा लौटने पर सामाजिक पहचान दोबारा बनाने, दोबारा तालमेल बिठाने जैसे पहलुओं से भी जुड़ी रहती हैं वहीं इस बार की परिस्थितियां अलग सी हैं. फिलहाल तो उनकी फौरी चिंता घर वापस लौटने की है लेकिन दूसरी चिंता यह कि घर आने के बाद क्या होगा, यह भी उन पर हावी है.
कोरोना के वैश्विक संकट की वजह से त्रस्त आर्थिक हालात और अनिश्चितता के आलम में अमेरिका, इंग्लैंड सहित विकसित देशों में गए अनेक भारतीयों तक ने स्वदेश वापस लाने की व्यवस्था की गुहार की है. लॉकडाउन की वजह से रेलगाड़ियां, बसें बंद होने की वजह से जहां अपने घरों से दूर प्रांतों में गए कामगार देश के अंदर फंस गए थे, इसी तरह ये भारतीय सरकार द्वारा कोरोना के बढ़ते संक्रमण को रोकने के नजरिये से अंतर्राष्ट्रीय विमान सेवाएं बंद किए जाने से फंस गए थे. इसके साथ ही विदेशों में पढ़ने गए भारतीय छात्रों में भी काफी चिंता रही है, विश्वविद्यालय बंद कर दिए गए हैं, बड़ी तादाद में छात्रावास खाली करा लिए गए हैं, ऐसे विषम हालात में मुख्य तौर पर वहां स्थित भारतीय दूतावास और वहां स्थायी रूप से बसे भारतीय इन सभी की मदद करने का प्रयास कर रहे हैं.
मोटे अनुमान के अनुसार दुनिया भर के 180 से अधिक देशों में 1 करोड़ 26 लाख भारतीय पासपोर्ट धारक हैं जिसमें से लगभग 89 लाख छह खाड़ी देशों संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, कुवैत, ओमान, कतर और बहरीन में हैं. दुनिया भर में रहने वाले कुल भारतीयों का 27 प्रतिशत हिस्सा संयुक्त अरब अमीरात में है.
बहरहाल, स्वदेश लौटने के इच्छुक ऐसे भारतीयों की घोर परेशानी और बेचैनी इस बात से समझी जा सकती है कि स्वदेश वापसी की कार्ययोजना की घोषणा होते ही इंटरनेट पर ट्रैफिक बढ़ने से भारत की इस आशय की वेबसाइट बैठ गई. इस समस्या को लेकर मंत्रालय को ट्वीट करना पड़ा कि लोग उड़ानों के बारे में जानकारी के लिए सीधे एयर इंडिया से संपर्क करें.
उल्लेखनीय है कि विदेश में फंसे भारतीयों को निकालने के लिए पहले चरण में एयर इंडिया और उसकी सहयोगी एयर इंडिया एक्सप्रेस सात दिन में 64 उड़ानें संचालित करेंगी. 13 मई तक चलने वाले इस अभियान के पहले चरण में बारह देशों से लगभग 14,800 भारतीयों को खाड़ी देशों के अलावा अमेरिका, इंग्लैंड, सिंगापुर, मलेशिया ढाका से वापस लाया जाएगा. अपने तरीके के इस सबसे बड़े मिशन के लिए 64 उड़ानों और नौसेना के जंगी जहाजों से हजारों भारतीय स्वदेश लौट रहे हैं.
बहरहाल, इस आपदा की वजह से काम की तलाश में अपने घरों से देश के अन्य भागों में गए कामगारों को अपने प्रदेशों की ही तरह विदेशों से आने वाले भारतीयों को देश में अवसर उपलब्ध कराना वापसी के बाद सबसे बड़ी चुनौती होगी. विदेशों में स्थित भारतीय दूतावासों, राजनयिकों तथा अन्य सभी सरकारी एजेंसियों के समन्वित प्रयासों से स्वदेश वापसी का यह चरण सफलतापूर्वक पूरा होने जा रहा है. वापसी के बाद का चरण राज्य सरकारों और केंद्र को इन्हें न केवल रोजगार मुहैया कराने बल्कि इनकी दक्षता के अनुरूप इनकी योग्यता का लाभ उठाने का अवसर भी बन सकता है. विभिन्न राज्य सरकारें इस बारे में केंद्र और संबद्ध एजेंसियों के साथ मिल कर कार्ययोजना बना रही हैं. देखना होगा कि यह चुनौती क्या नए सृजन का एक अवसर बन सकती है.