शोभना जैन का ब्लॉग: यूरोपीय संसद में पाकिस्तान की किरकिरी

By शोभना जैन | Published: February 1, 2020 06:19 AM2020-02-01T06:19:47+5:302020-02-01T06:19:47+5:30

भारत लगातार कहता रहा है कि यह हमारा आंतरिक मामला है और इस कानून को संसद के दोनों सदनों में चर्चा के बाद लोकतांत्रिक तरीके से पारित  किया गया है और इसका उद्देश्य पड़ोसी देशों में उत्पीड़न के शिकार अल्पसंख्यकों को संरक्षण देना है. भारत को उम्मीद है कि इस मामले में उसके दृष्टिकोण को सभी उद्देश्यपूर्ण और निष्पक्ष सोच रखने वाले एमईपी (यूरोपीय संसद सदस्य) द्वारा समझा जाएगा.

Shobhana Jain blog: Pakistan idea did not work in European Parliament | शोभना जैन का ब्लॉग: यूरोपीय संसद में पाकिस्तान की किरकिरी

तस्वीर का इस्तेमाल केवल प्रतीकात्मक तौर पर किया गया है। (फाइल फोटो)

अब जबकि यूरोपीय संसद ने फिलहाल उस प्रस्ताव पर मतदान स्थगित कर दिया है, जिसमें भारत से संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) में धर्म के आधार पर उत्पीड़ित शरणार्थियों के बीच भेदभाव बरतने का आरोप लगाने के बाद इसे लागू न करने का आग्रह किया गया था. यह घटनाक्रम भारत के लिए फौरी राहत तो है.

भारत को तगड़ी राजनयिक मुहिम के जरिए फिलहाल तो इस प्रस्ताव पर मतदान स्थगित करवा पाने में फौरी सफलता मिल गई है, लेकिन चुनौती से निपटने का रास्ता अभी लंबा है. इस प्रस्ताव पर मतदान अब मार्च में होने की संभावना है. ऐसे में जबकि देश के अंदर भी कानून को लेकर उपजे असंतोष पर सरकार अपना पक्ष रखने में जुटी है, वहीं इस कानून पर न केवल ईयू संसद अपितु समूचे अंतर्राष्ट्रीय पटल पर भारत का सही परिप्रेक्ष्य में पक्ष रखने के राजनयिक प्रयास और तेज किए जा रहे हैं.

इस प्रस्ताव पर मतदान फिलहाल टाले जाने पर यूरोपीय आयोग की उपाध्यक्ष और विदेशी मामलों व सुरक्षा नीति के लिए यूनियन की उच्च प्रतिनिधि हेलेना दल्ली ने कहा कि भारत के नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ यूरोपीय संसद के सदस्यों द्वारा पेश किए गए पांच अलग-अलग प्रस्तावों पर गुरु वार को होने वाली बहस और वोटिंग को मार्च तक टाल दिया गया है. इस आशय का प्रस्ताव पेश करते हुए यूरोपीय पीपल्स पार्टी के सदस्य माइकल गेहलर ने कहा भी कि भारत को अपना पक्ष रखने के लिए कुछ और समय दिया जाना चाहिए.

वैसे इस कानून को लेकर घरेलू मोर्चे पर चल रही उथल-पुथल को देखें तो उच्चतम न्यायालय इस मामलें में लंबित 60 से अधिक मामलों पर सुनवाई कर ही रहा है, जिस पर नजरें बनी हुई हैं. राजनयिक प्रयासों की अगर बात करें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगामी 13 मार्च को  28 सदस्यों के यूरोपीय ब्लॉक देशों के साथ ईयू-भारत शिखर बैठक में हिस्सा लेने ब्रसेल्स में होंगे. उस वक्त विचार-विमर्श मुख्य तौर पर व्यापार और निवेश पर होगा लेकिन इस मुद्दे पर भी ईयू शिखर नेताओं से उनका विचार-विमर्श होगा और इस मुद्दे पर वे आमने-सामने भारत का पक्ष रखेंगे.

वैसे उससे पहले पीएम मोदी की यात्रा के एजेंडा को अंतिम रूप देने के लिए विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर इसी माह ब्रसेल्स जाएंगे, तब वह भी उनसे इस मुद्दे पर भारत का पक्ष रखेंगे, उधर अन्य चैनलों पर भी भारत के कूटनीतिक प्रयास चल ही रहे हैं. भारत लगातार कहता रहा है कि यह हमारा आंतरिक मामला है और इस कानून को संसद के दोनों सदनों में चर्चा के बाद लोकतांत्रिक तरीके से पारित  किया गया है और इसका उद्देश्य पड़ोसी देशों में उत्पीड़न के शिकार अल्पसंख्यकों को संरक्षण देना है. भारत को उम्मीद है कि इस मामले में उसके दृष्टिकोण को सभी उद्देश्यपूर्ण और निष्पक्ष सोच रखने वाले एमईपी (यूरोपीय संसद सदस्य) द्वारा समझा जाएगा.

घरेलू पटल की तरह यह मुद्दा भारत के लिए जटिल राजनयिक चुनौती है और यह यूरोप तक सीमित नहीं है. संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार आयुक्त ने इस कानून को मानवाधिकारों को हनन करने वाला मान इसकी आलोचना की है. अमेरिकी संसद की सुनवाई में इसका जिक्र भी भारत के लिए असहज स्थित रहा है. ब्रिटेन में चुनाव में लेबर पार्टी की करारी हार के पहले उस दल के नेता अपने (मौजूदा) भारत सरकार विरोधी तेवर दिखलाते रहे थे.

इसी तरह अमेरिका में डेमाक्रेटिक पार्टी के एक प्रमुख सदस्य न केवल इस कानून की, वरन जम्मू-कश्मीर राज्य विषयक प्रशासनिक परिवर्तन को लेकर भी आशंकाएं जाहिर कर चुके हैं. भारत सभी मंचों पर इस चुनौती का जवाब देने में जुटा है. ईयू में प्रस्ताव लाये जाने पर भारत की कड़ी प्रतिक्रिया के बाद लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने भी संसद द्वारा पारित इस प्रस्ताव पर यूरोपीय संघ के अध्यक्ष डेविड मारिया सासोली को पत्र लिखकर कहा था कि आपकी संसद अगर नागरिकता कानून के खिलाफ प्रस्ताव पास करती है तो ये गलत उदाहरण होगा. उन्होंने कहा कि किसी विधायिका द्वारा किसी अन्य विधायिका को लेकर फैसला सुनाना अनुचित है और इस परिपाटी का निहित स्वार्थ वाले लोग दुरु पयोग कर सकते हैं. उन्होंने इसके साथ ही कहा कि अंतरसंसदीय संघ का सदस्य होने के तौर पर हमें साथी विधायिकाओं की संप्रभु प्रक्रियाओं का सम्मान करना चाहिए.

दरसल इस प्रस्ताव से पहले भी ब्रसेल्स में भारत ने तगड़ी राजनयिक मुहिम चलाकर इस प्रस्ताव में संबद्ध कानून को लेकर भारत की कठोर शब्दों में आलोचना को कुछ नरम करवाने और मतदान स्थगित करवाने के एकजुट प्रयास किए. घरेलू मुद्दे और विदेश नीति आपस में जुड़े रहते हैं. घरेलू उथल-पुथल, आर्थिक चुनौतियों के साथ यह कूटनीति के लिए भी बड़ी चुनौती है. भारत में जितना जल्द इस मुद्दे को लेकर सरकार आशंकाओं का समाधान करेगी, विदेशी पटल पर भी यह मामला शांत हो जाएगा.

Web Title: Shobhana Jain blog: Pakistan idea did not work in European Parliament

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे