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शोभना जैन का ब्लॉग: ‘ईरानी तेल’ का पेंच बनेगा नई सरकार की तात्कालिक चुनौती

By शोभना जैन | Updated: May 19, 2019 06:27 IST

भारत अपनी जरूरतों का 80 प्रतिशत तेल आयात करता है. इराक और सऊदी अरब के बाद ईरान भारत को सबसे ज्यादा तेल निर्यात करने वाला तीसरा देश है और भारत अपनी जरूरतों का 11 प्रतिशत से ज्यादा तेल ईरान से ही आयात करता है. अगर वर्तमान स्थिति बनी रहती है तो इससे न केवल भारत में तेल सप्लाई पर प्रतिकूल असर पड़ना स्वाभाविक है, बल्कि...

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देश में चुनाव की गहमागहमी चल रही है, इसी आलम में अमेरिका और ईरान के बीच बढ़ते जा रहे गंभीर तनाव के चलते चुनाव नतीजों के फौरन बाद खनिज तेल की कीमतें बढ़ने की आहट के बीच ईरान के विदेश मंत्नी मोहम्मद जवाद जरीफ अचानक इस सप्ताह भारत की अत्यंत संक्षिप्त यात्ना पर पहुंचे. उनकी भारत यात्ना ऐसे समय में हुई है जब अमेरिका ने ईरान के साथ परमाणु करार खत्म करने के बाद उस पर फिर से प्रतिबंध लगाने के साथ ही प्रतिबंध और कड़े करने का फैसला किया है और विगत दो मई से भारत सहित आठ देशों को ईरान से तेल आयात पर दी गई छूट समाप्त कर दी.

इस पृष्ठभूमि में जरीफ की अचानक भारत यात्ना अमेरिका की इस कार्रवाई के चलते भारत का समर्थन जुटाने की मुहिम का हिस्सा मानी जा रही है. इस यात्ना की पहल भी ईरान ने ही की थी. इसी मुहिम में वे इससे पहले चीन और रूस की भी यात्ना कर चुके हैं. ईरान से तेल आयात पर अमेरिका द्वारा भारत सहित आठ देशों को दी गई छूट समाप्त करना और ईरान से तेल आयात पर रोक लगाने का दबाव बनाना भारत के लिए एक गंभीर पेचीदा स्थिति तो है ही, वह अब ईरान से तेल नहीं खरीद सकता है.

उधर ईरान के लिए भी यह घेराबंदी उसे आर्थिक खस्ताहाली की स्थिति की तरफ धकेलने के साथ उसके अस्तित्व के लिए भी गंभीर खतरा है. इस दौरे में भारत की तरफ से ईरान के विदेश मंत्नी को हालांकि फिलहाल भरोसा दिलाया गया है कि तेल खरीदने का फैसला चुनाव के बाद लिया जाएगा. देखना होगा कि नई सरकार तमाम पहलुओं को ध्यान में रख इस मुद्दे से कैसे निबटती है. 

गौरतलब है कि भारत अपनी जरूरतों का 80 प्रतिशत तेल आयात करता है. इराक और सऊदी अरब के बाद ईरान भारत को सबसे ज्यादा तेल निर्यात करने वाला तीसरा देश है और भारत अपनी जरूरतों का 11 प्रतिशत से ज्यादा तेल ईरान से ही आयात करता है. अगर वर्तमान स्थिति बनी रहती है तो इससे न केवल भारत में तेल सप्लाई पर प्रतिकूल असर पड़ना स्वाभाविक है, बल्कि भारत को इसके लिए ईरान के अलावा अन्य देशों को विकल्प के रूप में तलाशना होगा.

यही वजह है कि चुनाव नतीजों के फौरन बाद अगर तेल की कीमतें बढ़ती हैं तो अगले कुछ दिनों में जरूरी वस्तुओं की कीमतें भी बढ़ने का अंदेशा है. लेकिन इसके अलावा इस स्थिति के क्षेत्न में भू-राजनैतिक, सामरिक परिणाम भी अहम हैं. हालांकि भारत का बराबर यही कहना है कि वह संयुक्त राष्ट्र द्वारा लागू प्रतिबंधों को ही मान्य करता है और जाहिर है कि ये प्रतिबंध अमेरिका अपनी निजी वजहों से लगा रहा है, जो अंतर्राष्ट्रीय जगत पर दबाव बनाना ही है.

अमेरिका अपने घरेलू कारणों से भारत सहित इन तमाम देशों को ईरान से किनारा करने का अल्टीमेटम दे रहा है, जबकि वह बखूबी जानता है कि अमेरिका की ही तरह ईरान भी भारत का मित्न देश है, उनके साथ उसके सदियों पुराने सामरिक, सांस्कृतिक, आर्थिक रिश्ते हैं. निश्चय ही भारत के लिए भी अपनी रणनीतिक स्वायत्तता सर्वोपरि है और विदेश नीति के विकल्प भी उसके सामने हैं.

भारत के एक तरफ अमेरिका, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के साथ बेहतर संबंध हैं तो दूसरी तरफ ईरान के साथ सामरिक, आर्थिक रिश्तों के अलावा ऐतिहासिक, सांस्कृतिक संबंध मैत्नीपूर्ण हैं. खाड़ी का नवीनतम घटनाक्र म, कश्मीर में ईरान का प्रभाव और पाक व सऊदी अरब की दोस्ती तमाम ऐसे मसले हैं जो कच्चे तेल की आपूर्ति से परे हैं.

दरअसल अगर सामरिक पक्ष की बात करें तो ईरान के जरिये अफगानिस्तान और मध्य एशिया के लिए एक रास्ता बनता है. ईरान में बन रही चाबहार बंदरगाह परियोजना में जहां भारत ने भारी निवेश किया है, उससे मध्य एशिया के लिए वैकल्पिक मार्ग बनेगा. नई सरकार को इस पृष्ठभूमि में काफी सतर्क हो कर फैसला लेना होगा.

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