शोभना जैन का ब्लॉगः करतारपुर कॉरिडोर खोलना सकारात्मक संदेश

By शोभना जैन | Published: November 19, 2021 08:54 AM2021-11-19T08:54:34+5:302021-11-19T08:59:47+5:30

करतारपुर कॉरिडोर को लेकर चल रही घरेलू राजनीति से इतर देखना होगा कि पाकिस्तान क्या आतंक का सहारा छोड़ रिश्तों में सकारात्मकता लाने की कोशिश करेगा और 4.7 किमी का यह गलियारा क्या दोनों के तल्ख रिश्तों के बीच सकारात्मकता का नया संदेश लाएगा।

shobhana jain blog Kartarpur Corridor opening give positive message | शोभना जैन का ब्लॉगः करतारपुर कॉरिडोर खोलना सकारात्मक संदेश

शोभना जैन का ब्लॉगः करतारपुर कॉरिडोर खोलना सकारात्मक संदेश

तल्खियों से गुजर रहे भारत-पाक रिश्तों को लेकर इस सप्ताह दो महत्वपूर्ण घटनाक्रम घटे। भारत सरकार ने लगभग 20 माह बाद सिख और पंजाबी श्रद्धालुओं की आस्था के सम्मानस्वरूप पंजाब की पाकिस्तान सीमा पर स्थित करतारपुर साहिब गुरुद्वारा तक जाने के लिए करतारपुर साहिब गलियारे को पुन: खोल दिया और दूसरे अहम घटनाक्रम में पाकिस्तान की संसद के दोनों सदनों ने एक अहम फैसले में जासूसी के झूठे आरोप में पाकिस्तान की जेल की कोठरी में मौत की सजा का इंतजार कर रहे भारत के पूर्व नौसैन्य अधिकारी कमांडर कुलभूषण जाधव को सैन्य अदालत द्वारा मिली फांसी के आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील किए जाने की अनुमति दिए जाने संबंधी कानू्न को पारित कर दिया।

बहरहाल, अगर करतारपुर कॉरिडोर की बात करें तो सवाल है कि भारत सरकार द्वारा करतारपुर कॉरिडोर को पुन: खोले जाने से क्या भारत-पाक तल्ख रिश्तों को सुधारने के लिए एक नई पहल की शुरुआत हो सकती है? कोविड संक्रमण के बढ़ते खतरे के बीच मार्च 2020 में भारत ने पाकिस्तान की सीमा के अंदर आने वाले इस प्रमुख आस्था स्थल तक ले जाने वाले गलियारे को बंद कर दिया था। लेकिन दो दिन पूर्व ही सरकार ने प्रथम सिख गुरु श्री गुरुनानक देव साहिबजी के प्रकाश पर्व से पहले श्रद्धालुओं की आस्था का सम्मान करते हुए यह गलियारा पुन: खोलने का फैसला किया। इस कॉरिडोर को खोले जाने के फैसले के ‘समय’ को लेकर देश की घरेलू राजनीति गर्म है। पंजाब में विधानसभा चुनावों से ठीक पहले लिए गए इस फैसले के पीछे सरकार की मंशा को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। वहीं डिप्लोमेसी की व्याख्या में इस कदम को ‘धार्मिक डिप्लोमेसी’ के जरिये दोनों देशों की जनता के बीच दूरियां कम करने की मंशा के साथ एक सकारात्मक कदम माना जा रहा है, जो कि रिश्तों को पटरी पर लाने की एक नई पहल बन सकती है।

हालांकि सरकार सहित सभी की नजर इस कदम के परिणामों के आकलन पर तो निरंतर बनी ही रहेगी, लेकिन एक पक्ष का यह भी मानना है कि यह सही रणनीतिक फैसला नहीं है। एक तरफ पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर सीमा के जरिये आतंकी गतिविधियां जारी रखे हुए है, ऐसे में पंजाब सीमा पर आवाजाही के नियमों में ढील दिया जाना सही नहीं ठहराया जा सकता है, खासकर ऐसे दौर में जबकि अफगानिस्तान में पाकिस्तान की सरपरस्ती वाले तालिबान के कब्जे के बाद जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान से सीमा पार की आतंकी हिंसा बढ़ गई है। पिछले सप्ताह ही पाकिस्तान ने एक बार फिर भारत से इस गलियारे को खोले जाने का आग्रह किया था। हालांकि भारत सरकार पंजाब सीमा पर आवाजाही संबंधी सुरक्षा नियमों में ढील दिए जाने को लेकर निरंतर सतर्कता बरतती रही है।

पंजाब के गुरदासपुर जिले के डेरा बाबा नानक से अंतरराष्ट्रीय सीमा तक एक कॉरिडोर का निर्माण किया गया है, वहीं पाकिस्तानी सीमा में नारोवाल जिले में जीरो लाइन से लेकर करतारपुर गुरुद्वारे तक सड़क बनाई गई है। 4।7 किलोमीटर के इस कॉरिडोर के रास्ते सिख श्रद्धालु भारत-पाकिस्तान की सीमा के नजदीक पंजाब के गुरदासपुर में मौजूद डेरा बाबा नानक से बिना वीजा दरबार साहिब गुरुद्वारा पहुंच सकेंगे। दिलचस्प बात यह है कि पाकिस्तान इस कॉरिडोर को खोले जाने पर अपनी पीठ थपथपाने में जुटा है। भारत स्थित पाकिस्तान हाई कमीशन ने एक वीडियो ट्वीट कर बताया कि पाकिस्तान ने गुरुद्वारा आनेवाले सिख श्रद्धालुओं का स्वागत किया है। पाकिस्तान ने इस बार लगभग 2800 श्रद्धालुओं को वहां जाने का वीजा दिया है। दो साल पहले भारत और पाकिस्तान में कॉरिडोर को लेकर एक समझौता हुआ था जिसके तहत पाकिस्तान भारतीय तीर्थयात्रियों को गुरुद्वारा आने के लिए वीजा फ्री एंट्री देने के लिए राजी हुआ था, लेकिन तब भी भारत के इस संवेदनशील सीमा क्षेत्र में आवाजाही को लेकर सुरक्षा संबंधी नियमों में ढील को लेकर काफी सतर्कता बरती गई थी। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची के अनुसार दोनों देशों के बीच भूमार्ग से अटारी वाघा सीमा पोस्ट के जरिये पाकिस्तान के साथ समन्वय से सीमित स्तर पर जमीनी मार्ग से आवाजाही होती है।

गौरतलब है कि फरवरी 1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी की लाहौर बस यात्रा की शांति पहल में यह गलियारा बनाए जाने का प्रस्ताव रखा गया था। उसके बाद इस परियोजना पर काम होता रहा, लटकता भी रहा। नवंबर 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतत: इस कॉरिडोर के भारत की तरफ वाले हिस्से का उद्घाटन किया।

बहरहाल, भारत और पाकिस्तान के रिश्ते आशा और निराशा के भंवर में घिरे रहे हैं। अब तक के अनुभवों से जाहिर है कि पाकिस्तान के अगले कदम पर भरोसा करना मुश्किल ही होता रहा है। इन दिनों इमरान सरकार घरेलू चुनौतियों के साथ आतंक का केंद्र बनने को लेकर अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में भी तमाम सवालों से घिरी है।

करतारपुर कॉरिडोर को लेकर चल रही घरेलू राजनीति से इतर देखना होगा कि पाकिस्तान क्या आतंक का सहारा छोड़ रिश्तों में सकारात्मकता लाने की कोशिश करेगा और 4.7 किमी का यह गलियारा क्या दोनों के तल्ख रिश्तों के बीच सकारात्मकता का नया संदेश लाएगा। निश्चित तौर पर गेंद पाकिस्तान के पाले में हैं।

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