शशांक द्विवेदी का ब्लॉग: बच्चों की किताबों से बढ़ती चिंताजनक दूरी

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: April 2, 2020 02:37 PM2020-04-02T14:37:15+5:302020-04-02T14:37:15+5:30

संयुक्त राष्ट्र की पहल पर दो अप्रैल को दुनिया भर में अंतर्राष्ट्रीय बाल पुस्तक दिवस मनाया जाता है. इसका मुख्य उद्देश्य किताबों से बढ़ती बच्चों की दूरियों को कम करना है.

Shashank Dwivedi blog on International Children's Book Day special 2nd April | शशांक द्विवेदी का ब्लॉग: बच्चों की किताबों से बढ़ती चिंताजनक दूरी

बच्चों की किताबों से बढ़ती चिंताजनक दूरी (प्रतीकात्मक तस्वीर)

कुछ दशक पहले तक बच्चों के हाथ में किताबें हुआ करती थीं, अब उनके हाथों में अक्सर मोबाइल या टीवी रिमोट दिखता है, वे कम्प्यूटर पर गेम खेलते नजर आते हैं. वर्तमान हालात ये हैं कि बच्चे कोर्स की किताबों के अलावा शायद ही कुछ पढ़ते हों. यह एक बेहद चिंता का विषय है. अस्सी और नब्बे के शुरुआती दशक को बच्चों की रीडिंग हैबिट के लिहाज से स्वर्णिम युग कहा जा सकता है. उस समय टीवी और कॉर्टून चैनल की मौजूदगी काफी कम थी. असल में तकनीक ने बच्चों की मौलिकता को प्रभावित किया है.

संयुक्त राष्ट्र की पहल पर दो अप्रैल को दुनिया भर में अंतर्राष्ट्रीय बाल पुस्तक दिवस मनाया जाता है. इसका मुख्य उद्देश्य किताबों से बढ़ती बच्चों की दूरियों को कम करना है. किताबें ही लोगों की सच्ची दोस्त होती हैं. इन्हीं किताबों से अर्जित किया गया ज्ञान भविष्य में आगे की राह दिखाता है. इसकी शुरुआत बचपन से ही होती है, लेकिन आज के समय में बच्चों और साहित्य के बीच दूरियां बढ़ती जा रही हैं. 

पहले गर्मी की छुट्टियों में बच्चे कॉमिक्स खरीदने की जिद किया करते थे. अखबार वाले से कहकर महीने में एक बार या 15 दिनों में आने वाली कॉमिक्स का इंतजार करते थे और जैसे ही कॉमिक्स आती थी, अगले दिन ही उसे पढ़कर खत्म कर देते थे. यहां तक कि दुकानों से किराए पर कॉमिक्स खरीदकर भी पढ़ते थे. धीरे-धीरे समय के साथ वीडियो गेम और कम्प्यूटर गेम्स और मोबाइल का चलन बढ़ता गया.  

आज के वर्तमान तकनीकी युग में बाल साहित्य की जरूरत सबसे ज्यादा है. ऊपर से देखने पर लगता है कि आज के बच्चे मोबाइल, लैपटॉप और कम्प्यूटर गेम्स खेलने में व्यस्त हैं, पर सच्चाई यह है कि आज का बच्चा बहुत अकेला है. पहले संयुक्त परिवारों में बच्चे दादा-दादी, नाना-नानी से रोज कहानियां सुनते थे, वहीं उन्हें संस्कारों की प्रारंभिक शिक्षा भी मिलती थी. संयुक्त परिवार में बड़े-बुजुर्गो द्वारा रामायण, महाभारत, पंचतंत्न की कहानियां, अकबर-बीरबल की हास्य कथाएं सुनकर बच्चे बड़े होते थे. तकनीक ने  लेकिन बच्चों को किताबों से दूर कर दिया. 

आज के एकल परिवारों में बच्चा दादा-दादी, नाना-नानी से तो दूर हो ही गया है, नौकरीपेशा माता-पिता के पास उसे देने के लिए समय नहीं है. आइए इस अंतर्राष्ट्रीय बाल पुस्तक दिवस पर ये संकल्प लेते हैं कि बच्चों को मोबाइल, गैजेट्स या किसी महंगे गिफ्ट के बजाय, किताबें गिफ्ट करेंगे जिससे उनकी रचनात्मकता और मौलिकता में वृद्धि हो सके.

Web Title: Shashank Dwivedi blog on International Children's Book Day special 2nd April

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