ब्लॉग: सरदार पटेल और इंदिरा गांधी- राष्ट्र नायकों को किसी एक पार्टी से जोड़कर देखना गलत

By राजेश बादल | Published: November 1, 2022 09:34 AM2022-11-01T09:34:58+5:302022-11-01T09:34:58+5:30

इन दिनों राष्ट्रीय सफलताएं भी दलगत राजनीति का हिस्सा बन गई हैं. हमारे पुरखों ने देश के लिए काम किया था. हम यह कैसा मुल्क बना रहे हैं, जो अपने पूर्वजों को गरियाने का कोई मौका नहीं छोड़ता.

Sardar Patel and Indira Gandhi - It is wrong to associate national heroes with one political party | ब्लॉग: सरदार पटेल और इंदिरा गांधी- राष्ट्र नायकों को किसी एक पार्टी से जोड़कर देखना गलत

राष्ट्र नायकों को किसी एक पार्टी से जोड़कर देखना गलत (फाइल फोटो)

सोमवार को हिंदुस्तान ने अपने दो राष्ट्र नायकों को याद किया. इनमें से एक ने राष्ट्र को एकजुट करने के लिए अपना सर्वस्व दांव पर लगा दिया और दूसरे ने देश की एकता और अखंडता के लिए अपनी जान दे दी. सरदार पटेल और इंदिरा गांधी को इसीलिए याद किया जाना चाहिए कि उन्होंने आने वाली पीढ़ियों को अपने सपनों का भारत रचने के लिए अवसर प्रदान किए. नई नस्लें उनके योगदान के मद्देनजर हमेशा कृतज्ञ रहेंगी. पर, क्या वाकई हमने ऐसा देश गढ़ा है, जिसमें अपने पुरखों को श्रद्धा और आस्था से याद किया जाता हो. 

स्वतंत्रता का अर्थ यह नहीं होता कि उसके लिए कुर्बानियां देने वालों को हम शापित करना प्रारंभ कर दें और उनकी गलतियों को उत्तल लेंस से देखें. हमने इन राष्ट्रीय प्रतीक पुरखों को भी दलगत राजनीति से बांध दिया है. सरदार पटेल पर सिर्फ एक दल का अधिकार नहीं है और न ही इंदिरा गांधी को किसी एक पार्टी से जोड़कर देखा जा सकता है. 

सरदार पटेल ने यदि राजे-रजवाड़ों का विलय हिंदुस्तान में कराया तो इंदिरा गांधी आधुनिक भारत की बड़ी शिल्पी बन कर उभरीं. देश को पूरब और पश्चिम की सीमाओं पर पाकिस्तान जैसे शत्रु देश का खतरा था. बांग्लादेश का निर्माण कर पूर्वी सीमा को हमेशा के लिए सुरक्षित करने वाली इंदिरा गांधी ही थीं. सिक्किम अलग देश था और उसकी तरफ से चीन का खतरा बना हुआ था. इंदिरा गांधी की बदौलत ही वह आज भारत का अभिन्न अंग है. 

पंजाब को खालिस्तान आंदोलन के बहाने अपने देश में मिलाने का पाकिस्तानी षड्यंत्र इंदिरा गांधी ने ही नाकाम किया था. अनाज और दूध उत्पादन में भारत को आत्मनिर्भर बनाने का श्रेय भी इंदिरा गांधी को ही जाता है. देश को परमाणु शक्ति और अंतरिक्ष क्षेत्र की बड़ी ताकत बनाने का काम इंदिरा गांधी के कार्यकाल में ही हुआ था. क्या आप भूल जाएंगे कि आज विदेश मंत्री जयशंकर जिस आक्रामक अंदाज में अमेरिका से बात करते हैं, वह मूलतः इंदिरा गांधी की देन है. 

भारत-पाक जंग के दरम्यान इंदिराजी ने अमेरिका की पोटली बना कर रख दी थी. आपातकाल के एक फैसले के कारण आप समग्र उपलब्धियों पर पानी नहीं फेर सकते. जो सियासी बिरादरी आपातकाल का विरोध लोकतंत्र की दुहाई देकर करती है, वह वर्तमान में सारे दलों में मर रहे लोकतंत्र पर विलाप क्यों नहीं करती?
एक शिखर प्रतीक की उपलब्धियां केवल पार्टी की नहीं होतीं. वह पूरे राष्ट्र की होती हैं. 

खेद है कि इन दिनों राष्ट्रीय सफलताएं भी दलगत राजनीति का हिस्सा बन गई हैं. हमारे पुरखों ने देश के लिए काम किया था. संविधान की शपथ उन्होंने देश के लिए काम करने की खातिर ली थी, अपनी पार्टी के लिए नहीं. मगर आज हमने उन प्रतिनिधि पूर्वजों को पार्टी की सीमाओं में बांधकर देखना शुरू कर दिया है. और तो और, अब हम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की निंदा करने से नहीं चूकते. 

सारा संसार इस बात की गवाही देता है कि महात्मा गांधी ने हिंदुस्तान की आजादी के लिए क्या किया है. लेकिन अब उनके देश के ही लोग उन्हें सवालों के घेरे में खड़ा करने लगे हैं, जो अपना पक्ष हमारे सामने रखने के लिए इस दुनिया में ही नहीं हैं. हममें से ही एक भारतीय ने उन्हें गोलियों का निशाना बना दिया. 
विडंबना है कि अपना इतिहास ज्ञान हम सुधारना नहीं चाहते और विकृत तथ्यों के सहारे अधकचरी राय बना बैठते हैं. अपने पूर्वजों के प्रति इससे बड़ी कृतघ्नता और क्या हो सकती है?  हम यह कैसा मुल्क बना रहे हैं, जो अपने पूर्वजों को गरियाने का कोई मौका नहीं छोड़ता. उसे ख्याल नहीं आता कि आने वाली नस्लें इसी आधार पर बरसों बाद उसको इसी तरह कोसेंगी.

पुरखे सिर्फ वे ही नहीं होते, जिनसे आपका खून का रिश्ता रहा है अथवा जो आपके दादा, पड़दादा या नाना पड़नाना रहे हैं. हम हर साल इन पूर्वजों का पिंडदान या श्राद्ध करते हैं तो सिर्फ इसीलिए कि वे प्रसन्नता के साथ देखें (यदि कहीं से सचमुच देख रहे हैं) कि उनके वंशज अपना कर्तव्य कितनी पवित्रता के साथ निभा रहे हैं. इस दृष्टि से क्या हम अपने राष्ट्रीय पूर्वजों का सचमुच श्राद्ध कर रहे हैं? क्या उन्हें याद करने में हमारा वह आदर झलकता है, जो गुलामी की जंजीरों को तोड़कर इस महान मुल्क को आजाद कराने के बदले उन्हें देना चाहिए? उनके आचरण, सिद्धांतों और गुणों से सबक लेकर अपने राष्ट्र का निर्माण ही सच्चा श्राद्ध है. लेकिन हमने ऐसा नहीं किया. 

पूर्वजों को तो छोड़ दीजिए, भारत के प्रति अपने कर्तव्यों का अहसास भी हम नहीं कर पाए हैं. सवाल यह भी जायज है कि हमारे पारिवारिक पुरखों में से बड़ी संख्या क्या ऐसे लोगों की नहीं है, जो सारी जिंदगी गोरी हुकूमत के प्रति वफादारी निभाते रहे. उन्हें आप क्या कहेंगे? क्या यह सच नहीं है कि आज अपने परिचय संसार में ऐसे अनेक लोग पाते हैं, जो इस बात को बड़े गर्व से बताते हैं कि उनके दादा या पड़दादा तो अंग्रेजों के जमाने में ऊंचे ओहदे पर थे या उन्हें राय साहब अथवा सर की उपाधि मिली थी. 

क्या यह सच नहीं है कि हमारे देश के लोगों ने ही 1915 के गदर की पूर्व सूचना दी थी. वे कौन से लोग थे, जो अंग्रेजों को हमारे क्रांतिकारियों के बारे में खुफिया तौर पर सूचना देते थे और बदले में उनसे पैसे लेते थे. वे कौन थे, जो गोरी सत्ता से चुपचाप पैसे लिया करते थे. क्या इस पर हम गर्व कर सकते हैं? कदापि नहीं.
 

Web Title: Sardar Patel and Indira Gandhi - It is wrong to associate national heroes with one political party

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