संजीव मिश्र का ब्लॉग: बजट में बच्चों के लिए घटती हिस्सेदारी
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: February 8, 2020 07:44 AM2020-02-08T07:44:01+5:302020-02-08T07:44:01+5:30
यदि कुल बजट में बच्चों की हिस्सेदारी को आधार बनाया जाए तो वर्ष 2012-13 में बच्चों के लिए कुल बजट का 5.04 प्रतिशत आवंटित किया गया था, जो मौजूदा वर्ष में घटकर 3.29 प्रतिशत पर पहुंच गया है. वर्ष-दर-वर्ष बच्चों के लिए प्रस्तावित खर्च में कटौती आई है.
बात एक फरवरी की है. तेरह साल का अनन्य शाम को टीवी पर अपना मनपसंद कार्टून चैनल देखना चाहता था, किंतु पापा ने मना कर दिया. पापा चैनल बदल-बदल कर बजट समझने की कोशिश कर रहे थे. इस पर थोड़ा गुस्साए अनन्य ने सवाल किया, पापा बजट क्या होता है? पापा ने बजट के बारे में समझाया तो बोला, इसमें बच्चों पर कितना खर्च होगा? इस मासूम सवाल का जवाब पापा के पास नहीं था.
उस समय तो अनन्य को झिड़क दिया गया कि तुम पढ़ाई पर फोकस करो, किंतु यह सवाल लगातार घुमड़ रहा है. बजट में बच्चे कहां हैं? उनकी हिस्सेदारी क्यों पिछड़ती जा रही है? ये कुछ ऐसे सवाल हैं, जिनके जवाब मिल ही नहीं रहे हैं. वे बच्चे हैं, वोटर नहीं, इसलिए सरकारें भी उनकी चिंता नहीं करतीं.
बच्चे किसी भी देश का भविष्य होते हैं. ऐसे में कोई भी योजना बनाते समय भविष्य की नींव मजबूत करने की बात जरूरी है, किंतु देश में ऐसा नहीं हो रहा है. बच्चों के लिए बजट में किए जाने वाले प्रावधान पिछले कुछ वर्षो से लगातार कम होते जा रहे हैं.
यदि कुल बजट में बच्चों की हिस्सेदारी को आधार बनाया जाए तो वर्ष 2012-13 में बच्चों के लिए कुल बजट का 5.04 प्रतिशत आवंटित किया गया था, जो मौजूदा वर्ष में घटकर 3.29 प्रतिशत पर पहुंच गया है. वर्ष-दर-वर्ष बच्चों के लिए प्रस्तावित खर्च में कटौती आई है.
देश के बजट आवंटन के आधार पर देखा जाए तो वर्ष 2013-14 में बच्चों के लिए कुल बजट का 4.65 प्रतिशत धन आवंटित हुआ था, जो 2014-15 में घटकर 4.20 प्रतिशत हो गया. वर्ष 2015-16 में यह और घटकर 3.23 प्रतिशत रह गया.
वर्ष 2016-17 में बच्चों की बजट हिस्सेदारी में आंशिक वृद्धि हुई और उन पर कुल बजट की 3.35 प्रतिशत धनराशि खर्च करने का फैसला किया गया.
इस अपर्याप्त हिस्सेदारी को वर्ष 2017-18 में फिर घटाकर 3.30 प्रतिशत व वर्ष 2018-19 में 3.31 प्रतिशत कर दिया गया.
बजट में बच्चों की इस घटती हिस्सेदारी की बड़ी वजह उनकी आवाज न होना माना जा रहा है. समाज के अन्य हिस्सों की आवाजें तो किसी न किसी तरह से सरकारों तक पहुंचती हैं किंतु बच्चों की चिंता करने वाले भी बजट में उनकी हिस्सेदारी बढ़ाने की वकालत करते नहीं दिखते.
पिछले दो वर्षो से देश के वित्तीय नियोजन की जिम्मेदारी एक महिला के हाथ में है. पिछले दो वर्षो से बजट देश की पूर्णकालिक महिला वित्त मंत्नी द्वारा पेश किया जा रहा है. एक महिला होने के नाते वित्त मंत्नी निर्मला सीतारमण से बच्चों के लिए विशेष प्रावधानों की उम्मीद थी. दुर्भाग्यपूर्ण पहलू ये है कि ऐसा संभव न हो सका.
यह स्थिति तब है, जबकि देश के कई राज्यों में बच्चों के लिए अलग बजट जैसे प्रावधानों पर चर्चा हो रही है. हाल ही में कर्नाटक की सरकार ने बच्चों के लिए विशेष बजट प्रस्तुत करने की तैयारी की है.