ब्लॉग: दो पहाड़ियों की एक जैसी है चुनावी दास्तान

By शशिधर खान | Published: May 18, 2024 10:17 AM2024-05-18T10:17:37+5:302024-05-18T10:18:24+5:30

तृणमूल कांग्रेस और भाजपा एक-दूसरे के कट्टर प्रतिद्वंद्वी हैं। मगर इन दोनों दलों की दार्जिलिंग नीति मिलती-जुलती है, जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं।

Lok Sabha Election 2024 election story of the hilly regions Ladakh and Darjeeling is similar for the two hills | ब्लॉग: दो पहाड़ियों की एक जैसी है चुनावी दास्तान

ब्लॉग: दो पहाड़ियों की एक जैसी है चुनावी दास्तान

पहाड़ी क्षेत्र लद्दाख और दार्जिलिंग की चुनावी दास्तान देश के अन्य हिस्सों से कई मायने में भिन्न है। लेकिन इन दोनों पहाड़ियों की बहुत सारी बातें एक जैसी हैं। जम्मू व कश्मीर से धारा370 हटने के बाद इस राज्य को अगस्त, 2019 में संघशासित क्षेत्रों (यूटी) में विभाजित कर दिया गया।

उसके बाद से ही लद्दाख में राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर आंदोलन शुरू हो गया। इस लोकसभा चुनाव में लद्दाख में मचे राजनीतिक घमासान के अंदर मुख्य रूप से यही मांग हावी है। लद्दाखियों ने बिना विधानसभा का यूटी दर्जा स्वीकार नहीं किया।

इसका असर 20 मई को लद्दाख में होनेवाली वोटिंग के दिन तक देखने को मिलेगा। लोकसभा चुनाव तारीखों के ऐलान से कुछ दिन पहले लद्दाख के जलवायु/पर्यावरण कार्यकर्ता मैग्सेसे पुरस्कार विजेता सोनम वांगचुक ने सिविल सोसायटी संगठनों के साथ भूख हड़ताल शुरू कर दी।

आंदोलनकारियों ने मांग रखी कि लद्दाख को राज्य का दर्जा देने और इस क्षेत्र को संविधान की 6वीं अनुसूची में शामिल करने का ठोस आश्वासन केंद्र सरकार चुनाव से पहले दे।

उधर प. बंगाल की दार्जिलिंग पहाड़ी में राज्य के दर्जे की मांग को लेकर 1980 के दशक से आंदोलन चल रहा है। यहां भी एक ही लोकसभा सीट है और गोरखा बहुल आबादी का वोट निर्णायक होता है। दार्जिलिंग सीट 2009 से भाजपा मांगें पूरी करने के वायदे पर लगातार जीत रही है।

अलग गोरखालैंड राज्य की मांग आंदोलनकारी गोरखा गुटों के आपसी मतभेद और उसमें सभी राजनीतिक दलों की चुनावी जुमलेबाजी में घिस गई है। भाजपा के कदम रखने से पहले तक कांग्रेस और माकपा ने दार्जिलिंग के मतदाताओं का अपने-अपने हिसाब से समर्थन जुटाया और जीत हासिल की। 2011 से लगातार सत्ता में मौजूद तृणमूल कांग्रेस की सर्वेसर्वा और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (दीदी) की दार्जिलिंग नीति अलग है।

उन्होंने कभी-भी अन्य दलों की तरह गोरखों को गोरखालैंड राज्य की मांग पर विचार करने का आश्वासन चुनाव जीतने के लिए नहीं दिया। तृणमूल कांग्रेस और भाजपा एक-दूसरे के कट्टर प्रतिद्वंद्वी हैं। मगर इन दोनों दलों की दार्जिलिंग नीति मिलती-जुलती है, जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं।

भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के राजनीतिक कला-कौशल से दार्जीलिंग की हिंसा के पर्याय वाली परिभाषा बदल गई। 2017 के बाद से गोरखालैंड मांग के नाम पर राजनीतिक हिंसा की कोई बड़ी वारदात नहीं हुई। 

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