ब्लॉग: जब देश गैंगरेप पर उबल रहा है तो मोहन भागवत को मंदिर याद आ रहा है?
By रंगनाथ | Published: April 16, 2018 06:14 PM2018-04-16T18:14:57+5:302018-04-16T18:42:05+5:30
जम्मू-कश्मीर के कठुआ में एक आठ वर्षीय लड़की की सामूहिक बलात्कार के बाद हत्या कर दी गयी। वहीं यूपी के उन्नाव में एक नाबालिग लड़की के सामूहिक बलात्कार के आरोप में बीजेपी विधायक एवं अन्य गिरफ्तार हैं। पीड़िता के पिता की मारपिटाई के आरोप में विधायक के भाई गिरफ्तार हैं। पीड़िता के पिता की घायल अवस्था में पुलिस हिरासत में मौत हो गयी थी।
जब मीडिया और सोशल मीडिया जम्मू-कश्मीर के कठुआ से लेकर उत्तर प्रदेश के उन्नाव में सामने आए गैंगरेप के मामलों से उबल रहा है तब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत राम मंदिर याद आ रहा है! भला क्यों? भागवत को लगता है कि अगर राम मंदिर फिर से नहीं बना तो "हमारी संस्कृति की जड़ें" कट जाएँगी! भागवत ये भी कहा कि "इसमें कोई शक नहीं कि मंदिर वहीं बनाया जाएगा जहां वह पहले था।" राम मंदिर और बाबरी मस्जिद का मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है फिर भागवत खुलेआम घोषणा कर रहे हैं कि "मंदिर वहीं बनाया जाएगा।" जाहिर है कि भागवत को रेप और हत्या की शिकार हो रही नाबालिग बच्चियों से ज्यादा चिंता मंदिर की है।
जहाँ मीडिया और सोशल मीडिया इस चिंता में हलकान हो रहा है कि क्या नाबालिग बच्चियों की हत्या और बलात्कार इस देश में महामारी बनती जा रही है तो भागवत को "संस्कृति की जड़ों" की चिंता है। लेकिन कौन सी संस्कृति? भागवत ऐसे वैसे इंसान नहीं हैं। इंडियन एक्सप्रेस अखबार ने भारत के सबसे ताकतवर 100 लोगों की 2018 की सूची में भागवत को चौथे स्थान पर रखा है। इस सूची में पहले स्थान पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, दूसरे स्थान पर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह, तीसरे स्थान पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा हैं। चौथे स्थान पर भागवत और पाँचवे स्थान पर पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी। इस पॉवर लिस्ट में टॉप 5 में एक भागवत ही हैं जो न तो किसी संवैधानिक पद पर हैं और न ही किसी प्रमुख राजनीतिक पार्टी के कर्ता-धर्ता हैं।
मेरे जैसे कुछ लोग तो ये भी मानते हैं कि मोहन भागवत नरेंद्र मोदी और अमित शाह से ज्यादा ताकतवर हैं। किसी अखबार की लिस्ट में भले ही पीएम मोदी नंबर एक और अमित शाह नंबर दो हों या लेकिन मोहन भागवत का कहा टालना शायद इन दोनों के भी वश का नहीं। ऐसे में भागवत की चिंता को हल्के में नहीं लिया जा सकता।
आरएसएस हमेशा ही खुद को बीजेपी के गॉडफादर संस्थान के रूप में पेश करता रहा है। आरएसएस नेता अपने बयानों से ये दिखाने की कोशिश रहती है कि वो बीजेपी या अन्य संगठनों से "नैतिक रूप से ऊपर" रहते हैं। जब राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव हो रहे थे तो मोहन भागवत का नाम भी चर्चा में आया था। आरएसएस ने यह कहकर इस खबर का खण्डन किया कि संघ प्रमुख कोई राजनीतिक पद स्वीकार नहीं करते। आरएसएस और बीजेपी ने आपसी समीकरण चाणक्य और चंद्रगुप्त जैसा दिखाया जाता है। यानी आरएसएस सिर है और बीजेपी उसका धड़। आरएसएस आत्मा है और बीजेपी शरीर। ऐसे में आरएसएस प्रमुख की सोच शायद मौजदा सरकार की सोच से ज्यादा महत्व रखती है।
पीएम नरेंद्र मोदी उन्नाव गैंगरेप और कठुआ गैंगरेप पर तब बोले जब मीडिया में उनकी चुप्पी को लेकर खबरें चलने लगीं। पीएम मोदी ने कहा "किसी को बख्शा नहीं जाएगा।" मोहन भागवत ने उतना कहना भी जरूरी नहीं समझा। उन्होंन कहा- मंदिर वही बनाया जाएगा....
आप भी समझ गये होंगे कि भागवत को देश की बेटियों से ज्यादा मंदिर की चिंता क्यों है? अगले महीने कर्नाटक विधान सभा का चुनाव है, अगले साल लोक सभा चुनाव है....आगे क्या कहा जाए...