एक समय था जब देश में अधिकांश सड़कों की हालत इतनी खराब हुआ करती थी कि सड़क मार्ग से यात्रा करना कई लोगों के लिए काफी कष्टप्रद अनुभव हुआ करता था। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में सड़कों की गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार हुआ है और सड़क निर्माण की रफ्तार भी बढ़ी है। वर्ष 2012 में प्रतिदिन 12 किमी सड़क का निर्माण हो पाता था, जो वर्ष 2021 में 37 किमी प्रतिदिन तक पहुंच गया। उम्मीद की जा रही थी कि इससे सड़क मार्ग से यात्रा करना काफी आसान और सुरक्षित हो सकेगा। लेकिन चिंताजनक यह है कि सड़कों की हालत सुधरने के बावजूद सड़क दुर्घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं।
हाल ही में वैष्णोदेवी के दर्शन करके लौट रहे चिखलदरा के एक परिवार की कार को जालंधर में पीछे से आ रहे वाहन ने टक्कर मार दी जिससे कार एक पेड़ से टकरा गई और उसमें सवार एक ही परिवार के चार लोगों की मौत हो गई। उधर समृद्धि महामार्ग पर नागपुर से पुणे जा रही एक कार का टायर फटने से हुई दुर्घटना में दो लोगों की मौत हो गई। इस तरह की सड़क दुर्घटनाएं प्राय: रोज ही पढ़ने-सुनने को मिल रही हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में हर दिन औसतन 1,264 सड़क दुर्घटनाएं और 462 मौतें होती हैं-यानी हर घंटे 53 दुर्घटनाएं और 19 मौतें। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने भी पिछले साल कहा था कि ‘यह वास्तव में बहुत चिंता का विषय है कि इस संबंध में सरकार के निरंतर प्रयासों और मृत्यु दर को आधा करने की हमारी प्रतिबद्धताओं के बावजूद, हम इस मोर्चे पर महत्वपूर्ण प्रगति दर्ज नहीं कर पाए हैं।’
विश्व बैंक के एक अध्ययन के अनुसार, दुनिया के केवल 1 प्रतिशत वाहन होने के बावजूद भारत में दुर्घटना से संबंधित सभी मौतों में से लगभग 10 प्रतिशत मौतें होती हैं। देश की कुल सड़क दुर्घटनाओं में से 72 प्रतिशत से अधिक का कारण तेज रफ्तार है। गलत दिशा में गाड़ी चलाना दूसरा सबसे बड़ा कारण होने की बात सामने आई है और इसके बाद नशे में गाड़ी चलाना और गाड़ी चलाते समय मोबाइल फोन का इस्तेमाल करना दुर्घटना का प्रमुख कारण रहा है।
इसलिए सड़कों का निर्माण और रखरखाव जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही महत्वपूर्ण सड़क दुर्घटनाओं को रोकना भी है। चिंताजनक यह भी है कि एक तरफ शेष दुनिया में जहां सड़क दुर्घटना के आंकड़ों में गिरावट आ रही है, वहीं भारत में यह आंकड़ा बढ़ रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की सड़क सुरक्षा पर कुछ माह पहले जारी वैश्विक स्थिति रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में वर्ष 2010 के बाद से सड़क यातायात में होने वाली मौतों में 5 फीसदी की गिरावट आई है और यह सालाना 11 लाख 90 हजार रह गई है।
जबकि भारत में, 2018 में सड़क दुर्घटनाओं के कारण होने वाली मौतों की संख्या 1,50,785 थी, जो 2021 में बढ़कर 1,53,792 हो गई। 2010 में यह संख्या 1।3 लाख थी। वाहन उद्योग की एक अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2030 तक देश की सड़कों पर दौड़ने वाले वाहनों की संख्या आज के मुकाबले दोगुनी हो चुकी होगी। जाहिर है कि वाहन बढ़ेंगे तो दुर्घटनाओं का खतरा भी बढ़ेगा। इसलिए दुर्घटना के कारणों की तलाश कर उन्हें दूर करने के लिए आवश्यक कदम उठाने की बेहद जरूरत है, ताकि दुर्घटनाओं में खो जाने वाली अमूल्य जिंदगियों को बचाया जा सके।