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सड़क हादसेः इन उपयों से हर साल बचायी जा सकती हैं करीब 30000 जिंदगियां

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: July 1, 2022 11:19 IST

सड़क हादसों में घायल हुए लोगों के मामले में भी भारत तीसरे स्थान पर है। हादसों में जान गंवाने वालों में 18 से 45 साल की उम्र के लोगों की संख्या अधिक होती है। अध्ययन में जो चार प्रमुख खतरे बताए गए हैं उनमें तेज गति, शराब पीकर गाड़ी चलाना, हेलमेट नहीं पहनना और सीट बेल्ट का इस्तेमाल नहीं करना शामिल हैं।

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भारत में सड़क सुरक्षा के उपायों में सुधार लाने से हर साल करीब 30000 जिंदगियों को बचाया जा सकता है- एक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में ऐसा कहा गया है। वैसे भी आंकड़ों के अनुसार सड़क हादसों में मारे जाने वाले लोगों की संख्या के मामले में भारत पहले नंबर पर है। सबसे चिंताजनक बात यह है कि घातक दुर्घटनाओं में सबसे अधिक युवा चपेट में आते हैं। इन दुर्घटनाओं में मरने वालों की तो असमय जीवन डोर टूटती ही है, जो बच्चे अनाथ, महिलाएं विधवा और बूढ़े मां-बाप बेसहारा हो जाते हैं, उनका जीवन भी बर्बाद हो जाता है। 

सड़क हादसों में घायल हुए लोगों के मामले में भी भारत तीसरे स्थान पर है। हादसों में जान गंवाने वालों में 18 से 45 साल की उम्र के लोगों की संख्या अधिक होती है। अध्ययन में जो चार प्रमुख खतरे बताए गए हैं उनमें तेज गति, शराब पीकर गाड़ी चलाना, हेलमेट नहीं पहनना और सीट बेल्ट का इस्तेमाल नहीं करना शामिल हैं। ये कारण हम सब जानते हैं, पर मानते नहीं। विभिन्न यातायात नियमों के उल्लंघन के कारण तो दुर्घटनाएं होती ही हैं, लेकिन कुछ वाहनों की तकनीकी खराबी के कारण और सड़कों की खराब स्थिति के कारण भी होती हैं। इन सड़क दुर्घटनाओं के कारण बड़ी संख्या में मौतें, गंभीर चोटें या पैरालिसिस तक हो जाता है। 

अध्ययन के मुताबिक वाहनों की गति नियंत्रण के लिए कदम उठाने से भारत में 20554 जिंदगियों को बचाया जा सकता है, जबकि हेलमेट पहनने के लिए बढ़ावा देने से 5,683 जिंदगियां बच सकती हैं। सरकार संशोधित मोटर वाहन अधिनियम ला चुकी है, जो यातायात नियमों के उल्लंघन के लिए सख्त दंडात्मक उपाय करता है पर सबसे जरूरी है वाहन चालकों की जागरूकता। मोबाइल फोन पर बात करना, वाहन चलाते हुए खाना-पीना या फिर इधर-उधर देखते हुए वाहन चलाने से ध्यान भटकता है। लोग गति सीमा को भी नजरंदाज करते हैं। और यही तेज रफ्तार हादसे का कारण बनती है। 

कई दोपहिया वाहन चालक हेलमेट को एक बेकार की मुसीबत समझते हैं, इसलिए वे इसे पहनने की जगह चालान से बचने के लिए उसे हैंडल पर टांगकर ले जाना ज्यादा पसंद करते हैं। सड़क पर संयम रखना भी एक चुनौती है। नई उम्र के लोग अक्सर तेज रफ्तार से दोपहिया, चारपहिया वाहन चलाते हैं, अचानक कट मारना, दूसरे को परेशान करते हुए आगे बढ़ना, ये ऐसी लापरवाहियां हैं जो हादसे को न्यौता देती हैं। अब मौसम बदल गया है। बरसात में गाड़ी चलाते वक्त विशेष रूप से सावधान रहना चाहिए। गीली सड़क पर घर्षण कम हो जाता है, जिसके चलते ब्रेक लगाने पर वाहन के फिसलने का खतरा बना रहता है। बरसात के दौरान सामने का नजारा भी बहुत साफ नहीं होता है। 

चारपहिया वाहन चालकों को सीट बेल्ट जरूर लगाना चाहिए क्योंकि हादसे की स्थिति में यह सिर, पेट और छाती की गंभीर चोटों से काफी हद तक बचाता है, वहीं दुपहिया चालकों को हेलमेट लगाना चाहिए। गंतव्य पर पहुंचने की जल्दबाजी में जोखिम लेकर वाहनों को गलत ढंग से ओवरटेक करना ठीक नहीं। ओवरटेक करते समय हर वाहन से सुरक्षित दूरी बनाकर रखनी चाहिए। हड़बड़ी में लाल बत्ती को नजरंदाज करने वाले न केवल अपनी, बल्कि दूसरों की जान के लिए भी आफत बन सकते हैं। इन सब बातों के साथ-साथ अपने वाहनों के रखरखाव के प्रति लापरवाही बरतना भी खतरे से खाली नहीं है।

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