ऋतुपर्ण दवे का ब्लॉग: बाढ़ से निपटने के लिए करने होंगे दीर्घकालिक उपाय

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: July 29, 2020 02:45 PM2020-07-29T14:45:07+5:302020-07-29T14:45:07+5:30

Rituparn Dave's blog: Long-term measures to be taken to deal with floods | ऋतुपर्ण दवे का ब्लॉग: बाढ़ से निपटने के लिए करने होंगे दीर्घकालिक उपाय

दुनिया में बाढ़ से होने वाली 20 फीसदी मौतें अकेले भारत में होती हैं.

Highlightsबिहार में अभी कोई दर्जन भर जिलों के साथ लगभग 7 से 8 सौ गांव बुरी तरह से बाढ़ की चपेट में हैं. असम में भी स्थिति भयावह है. 33 में से 30 जिले बाढ़ की चपेट में हैं.

स्वतंत्रता के बाद देश में यदि कुछ तय है तो वह है कुछ खास प्रदेशों के निश्चित इलाकों में बाढ़ की विभीषका. यह बात अलग है कि किसी साल यह ज्यादा तबाही मचाती है तो कभी थोड़ा-बहुत तांडव कर शांत हो जाती है. बाढ़ को लेकर बिहार, असम, पं. बंगाल और कुछ अन्य इलाकों में दो महीनों के हाहाकर से काफी दुख, दर्द और दंश झेलने वाले वहां के लोग और सरकारें इन्हीं मामलों पर बाकी 10 महीनों के लिए ऐसे शांत हो जाते हैं जैसे कुछ हुआ ही नहीं! इसके लिए दोषी भले ही हम नेपाल या चीन को ठहराएं लेकिन हकीकत यही है कि व्यवस्था कहें या नीति निर्धारण, सारा कुछ इन्हीं सब पर लगातार होती लापरवाहियों का नतीजा है.

जुलाई-अगस्त के बाद यही बाढ़ पीड़ित इसे नियति मान जहां फिर से अपनी गृहस्थी सजाने की फिक्र  में अगले दस महीने जुट जाते हैं, वहीं सरकारें भी नीचे से ऊपर तक कागजी घोड़ा दौड़ाकर बाढ़ पर हकीकत में दिखने वाली कार्रवाइयों से इतर चिट्ठी-पत्नी, ई-मेल भेज-भेज कर अपनी सक्रियता दिखाने लग जाती हैं. इस बीच फिर जुलाई-अगस्त आ जाता है. यानी दिखावे की व्यस्तता के बीच सितंबर से जून कब बीत जाएगा, किसी को पता नहीं चलता और फिर दो महीने वही पुराना हाहाकार हरा हो जाएगा.

बाढ़ का एक सच यह भी कि यहां नदियों के किनारों पर ही जबरदस्त अतिक्रमण हो गए जिससे रास्ता भटकी नदियां उसी इलाके में बाढ़ का कारण बन जाती हैं. यकीनन नदियां तो अपनी जगह हैं लेकिन तटों पर कब्जों ने चाल जरूर बदल दी. बिहार में अभी कोई दर्जन भर जिलों के साथ लगभग 7 से 8 सौ गांव बुरी तरह से बाढ़ की चपेट में हैं. नेपाल से ढलान पर बसे भारतीय क्षेत्नों पर सीधा पानी आ जाता है, जिस पर बहुत ज्यादा काम की जरूरत है. 73 सालों से यह समस्या साल-दर-साल बढ़ती ही जा रही है. कोसी बांध का उदाहरण सामने है.

असम में भी स्थिति भयावह है. 33 में से 30 जिले बाढ़ की चपेट में हैं. ब्रह्मपुत्न समेत तमाम नदियां खतरे के निशान से ऊपर हैं. एनडीआरएफ की 12 टीमें यहां हैं. बाढ़ की ताजा हालत से बिहार, असम, ओडिशा, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, केरल, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में 60 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हैं, जिसमें 24 लाख बच्चे हैं. एक बेहद चिंताजनक स्थिति यह भी है कि इस बार मध्य जुलाई में भारी बारिश हुई.

बाढ़ ने अबकी बार तीन राज्यों में खासी तबाही मचाई है, परंतु सच यह है कि दुनिया में बाढ़ से होने वाली 20 फीसदी मौतें अकेले भारत में होती हैं. जहां गंगा, ब्रह्मपुत्न, सिंधु नदी से बिहार, प. बंगाल, असम, पूर्वी उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, पंजाब एवं हरियाणा में जबरदस्त बाढ़ आती है, वहीं ओडिशा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, आंध्र प्रदेश और राजस्थान भी कई बार बाढ़ से प्रभावित हो जाते हैं. औसतन 400 लाख हेक्टेयर का  बड़ा क्षेत्न हर साल बाढ़ के खतरे से ग्रस्त रहता है और औसतन 77 लाख हेक्टेयर एरिया में बाढ़ आती है. इससे लगभग 35 लाख हेक्टेयर की फसलें बर्बाद होती हैं. इस बार बाढ़ की विकरालता से यह एरिया काफी बड़ा होने जा रहा है.

मौजूदा हालात में बड़ी नदियों पर बड़े-बड़े बांध बनाने के बजाय छोटी व सहायक नदियों, यहां तक कि गांवों के नालों पर जगह-जगह जलाशय और चेक डैम बनाए जाने की जरूरत है ताकि बारिश के पानी का उपयोग भी हो और उसे नियंत्रित भी किया जा सके. इससे जहां नदियों का कटाव रुकेगा, वहीं बड़ी नदियों में बाढ़ के हालात भी कम होंगे. आजकल गांव-गांव में स्टाप डैम और चेक डैम ग्राम पंचायतें बनवा भी रही हैं. मनरेगा व दूसरी योजनाओं से बनने वाले ये डैम, कागजों में तो बन जाते हैं, लेकिन वास्तव में ये कितने कारगर हैं?

कहा जा रहा है कि यदि बाढ़ पर काबू पाने की कोशिशें कामयाब नहीं हुईं तो 2050 तक भारत की करीब आधी आबादी के रहन-सहन के स्तर में जबरदस्त गिरावट होगी. इसके लिए अभी से कमर कसकर पारदर्शी व्यवस्था करनी होगी ताकि संकट को आगे बढ़ने से रोका जा सके. व्यवस्थाएं सुधरीं तो बाढ़ नियंत्रण सुधार कोई बड़ी चुनौती नहीं होगी और भारत के लिए बड़ी उपलब्धि होगी.

Web Title: Rituparn Dave's blog: Long-term measures to be taken to deal with floods

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