ललित गर्ग का ब्लॉग: सुलझी हुई ताकतें सक्रिय हों
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: September 19, 2019 06:52 IST2019-09-19T06:52:53+5:302019-09-19T06:52:53+5:30
कुछ ऐसे व्यक्ति सभी जगह होते हैं जिनसे हम असहमत हो सकते हैं, पर जिन्हें नजरअंदाज करना मुश्किल होता है. चलते व्यक्ति के साथ कदम मिलाकर नहीं चलने की अपेक्षा उसे अडंगी लगाते हैं.

प्रतीकात्मक फोटो
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 के प्रावधान हटाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई याचिकाएं हों या आतंक एवं हिंसाग्रस्त इस प्रांत में शांति स्थापना के लिए भारत सरकार के प्रयत्न, दोनों ही स्थितियां जीवंत लोकतंत्र का आधार हैं. याचिकाकर्ताओं के अनुसार कश्मीर में हालात बेहद खराब हैं, लोग हाईकोर्ट तक भी नहीं पहुंच पा रहे हैं. मीडिया, इंटरनेट, यातायात व्यवस्था, चिकित्सा सुविधाओं के साथ-साथ आम-जनजीवन बाधित है.
यदि ऐसा है तो यह लोकतंत्र पर एक बदनुमा दाग है, शासन की असफलता का द्योतक है, लेकिन ऐसा नहीं है. दूर बैठकर भी हर भारतीय इस बात को गहराई से महसूस कर रहा है और देख रहा है कि जम्मू-कश्मीर में शांति, सौहार्द्र एवं सह-जीवन का वातावरण बन रहा है. वहां संविधान के साये में लोकतंत्र प्रशंसनीय रूप में पलता हुआ दिख रहा है. जरूरत है कश्मीर में राजनीतिक एवं सांप्रदायिक संकीर्णता की तथाकथित आवाजों के बजाय सुलझी हुई सभ्य राजनीतिक आवाजों को सक्रिय होने का मौका दिया जाए, विकास एवं शांति के नये रास्ते उद्घाटित किए जाएं.
कुछ ऐसे व्यक्ति सभी जगह होते हैं जिनसे हम असहमत हो सकते हैं, पर जिन्हें नजरअंदाज करना मुश्किल होता है. चलते व्यक्ति के साथ कदम मिलाकर नहीं चलने की अपेक्षा उसे अडंगी लगाते हैं. सांप तो काल आने पर काटता है पर दुर्जन तो पग-पग पर काटता है.
कश्मीर को शांति एवं सह-जीवन की ओर अग्रसर करते हुए ऐसे दुर्जन लोगों से सावधान रहना होगा. यह निश्चित है कि सार्वजनिक जीवन में सभी एक विचारधारा, एक शैली व एक स्वभाव के व्यक्ति नहीं होते. अत: आवश्यकता है दायित्व के प्रति ईमानदारी के साथ-साथ आपसी तालमेल व एक-दूसरे के प्रति गहरी समझ की. अगर हम हर कश्मीरी में आदर्श स्थापित करने के लिए उसकी जुझारू चेतना को विकसित कर सकें तो निश्चय ही आदर्शविहीन असंतुष्टों की पंक्ति को छोटा कर सकेंगे. और ऐसा होना कश्मीर में अशांति एवं आतंक की जड़ों को उखाड़ फेंकने का एवं शांति स्थापना का सार्थक प्रयत्न होगा.