अवधेश कुमार का ब्लॉगः बदले की भावना से न हो कार्रवाई
By अवधेश कुमार | Published: December 11, 2019 01:15 PM2019-12-11T13:15:41+5:302019-12-11T13:15:41+5:30
जब देश में आक्रोश का माहौल हो और उस आक्रोश से लाभ उठाने की राजनीति भी चल रही हो तब विवेकशील बातें कहने का जोखिम बढ़ जाता है. प्रधान न्यायाधीश ने यही जोखिम लिया है जो आवश्यक है.
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने लड़कियों-महिलाओं के साथ बढ़ते बलात्कार और बर्बरता के बीच सुझाव दिया है कि ऐसे मामलों में दया याचिका का प्रावधान खत्म कर देना चाहिए. उन्होंने कहा है कि आज की महंगी न्यायिक प्रक्रि या में एक आम परिवार के लिए न्याय पाना कठिन है. दूसरी ओर प्रधान न्यायाधीश शरद अरविंद बोबड़े ने जोधपुर के एक कार्यक्र म में कहा है कि ‘हाल की घटनाओं ने नए जोश के साथ पुरानी बहस छेड़ दी है.
इसमें कोई संदेह नहीं है कि आपराधिक न्याय प्रणाली को अपनी स्थिति पर पुनर्विचार करना चाहिए और आपराधिक मामलों को निपटाने में ढिलाई के रवैये में बदलाव लाना चाहिए. लेकिन मुङो नहीं लगता कि न्याय तुरंत हो सकता है या होना चाहिए और न्याय कभी भी बदला नहीं हो सकता है. अगर बदले को न्याय समझा जाता है तो न्याय अपना चरित्न खो देता है.’
जब देश में आक्रोश का माहौल हो और उस आक्रोश से लाभ उठाने की राजनीति भी चल रही हो तब विवेकशील बातें कहने का जोखिम बढ़ जाता है. प्रधान न्यायाधीश ने यही जोखिम लिया है जो आवश्यक है. कोई भी मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति ऐसा नहीं होगा जिसके अंदर देश में लड़कियों के साथ भयावह यौन दुराचार और हत्या को लेकर क्षोभ और पीड़ा नहीं होगी. आक्रोश बिल्कुल स्वाभाविक है. लेकिन क्या आक्रोशित लोगों की प्रतिक्रियाओं के अनुरूप ही पुलिस प्रशासनिक व्यवस्था भूमिका निभाएगी?
चाहे जितना बड़ा अपराध हो गया हो, कार्रवाई न्याय प्रक्रि या और कानून के अनुसार ही संभव है. इससे अलग हटने के खतरे ज्यादा हैं. यहां एक महत्वपूर्ण पहलू और ध्यान रखने का है. 2014 से 2017 तक जितने मुकदमे दायर हुए उनमें से अधिकतम 30 प्रतिशत में दोषी सिद्ध हो पाए. 2017 में देशभर में बलात्कार के कुल 1 लाख 46 हजार 201 मामलों में मुकदमा चला. इसमें से सिर्फ 31.8 प्रतिशत में दोषसिद्धि हुई. सामूहिक बलात्कार से जुड़े मामलों में भी स्थिति ऐसी ही थी. ऐसा क्यों हुआ?
न्यायालय के फैसले बताते हैं कि ज्यादातर मुकदमे झूठे थे, या उनमें कोई सबूत नहीं था. अनेक मामले सहमति से सेक्स के थे जिसे संबंध बिगड़ने पर बलात्कार का मुकदमा बना दिया गया. हम मुकदमा होते ही सबको अपराधी मानने लगे और जैसा प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि बदले की भावना से त्वरित न्याय का दबाव बढ़ाएंगे तो फिर निदरेष भी इसकी भेंट चढ़ जाएंगे.