विश्व बाल-श्रम निषेध दिवस पर रमेश ठाकुर का ब्लॉग: बच्चों को शोषण से बचाना सबकी जिम्मेदारी
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: June 12, 2020 06:30 IST2020-06-12T06:30:02+5:302020-06-12T06:30:02+5:30
भारत में बाल-श्रम प्रतिबंध एवं नियमन संशोधन अधिनियम के तहत 14 साल से कम उम्र के किसी भी बच्चे से काम कराने पर दो साल की सजा और 50 हजार रु. जुर्माने का प्रावधान है. केंद्र सरकार ने 1979 में बाल-श्रम की समस्या के अध्ययन और उससे निपटने के लिए उपाय सुझाने हेतु गुरुपादस्वामी समिति का गठन किया था.

भारत के अधिकांश बच्चे अपने अधिकार यानी बाल अधिकार कानून से वंचित हैं.
रमेश ठाकुर
बाल मजदूरी देश की एक बड़ी समस्या है. इसे रोकने के लिए एक राष्ट्रीय नीति बनाए जाने की जरूरत है. यूनिसेफ की हालिया रिपोर्ट पर गौर करें तो भारत में आर्थिक रूप से पिछड़े करोड़ों बच्चे मजदूरी करते हैं. इनकी सबसे ज्यादा संख्या उत्तर प्रदेश में है और दूसरे नंबर पर बिहार आता है. इन बच्चों का इस्तेमाल सस्ते श्रमिकों के रूप में किया जाता है. लोग इन बच्चों को कम दिहाड़ी पर रखते हैं लेकिन काम बड़ों से ज्यादा लेते हैं. इस समस्या को रोकने के लिए सामाजिक स्तर पर लोगों को आगे आना होगा. जहां भी बच्चे मजदूरी करते दिखें, उनकी शिकायत स्थानीय प्रशासन से करनी होगी. लगातार जब ऐसी कार्रवाई होनी शुरू हो जाएगी तो स्थिति में सुधार आना भी शुरू होगा.
विश्व बाल-श्रम निषेध दिवस का मुख्य उद्देश्य बाल-श्रम की वैश्विक समस्या पर ध्यान केंद्रित करना और बाल श्रम को पूरी तरह से खत्म करने के लिए आवश्यक प्रयास करना है. भारत में बाल-श्रम प्रतिबंध एवं नियमन संशोधन अधिनियम के तहत 14 साल से कम उम्र के किसी भी बच्चे से काम कराने पर दो साल की सजा और 50 हजार रु. जुर्माने का प्रावधान है. केंद्र सरकार ने 1979 में बाल-श्रम की समस्या के अध्ययन और उससे निपटने के लिए उपाय सुझाने हेतु गुरुपादस्वामी समिति का गठन किया था.
समिति ने अपनी सिफारिशें करते हुए पाया कि जब तक गरीबी बनी रहेगी, तब तक बाल-श्रम को पूरी तरह मिटाना मुश्किल हो सकता है और इसलिए किसी कानूनी उपाय के माध्यम से उसे समूल मिटाने का प्रयास व्यावहारिक प्रस्ताव नहीं होगा. समिति ने महसूस किया था कि इन परिस्थितियों में खतरनाक क्षेत्रों में बाल-श्रम पर प्रतिबंध लगाना और अन्य क्षेत्रों में कार्यकारी परिस्थितियों को विनियमित करना व उनमें सुधार लाना ही एकमात्र विकल्प है. उसके बाद अब तक कई बार कानून में संशोधन किया गया. लेकिन स्थिति में सुधार नहीं आया है.
दुख की बात यह है कि भारत के अधिकांश बच्चे अपने अधिकार यानी बाल अधिकार कानून से वंचित हैं. विभिन्न बीमारियों से बचाव हेतु उनका टीकाकरण किया जाना चाहिए, लेकिन उससे अनेक बच्चे वंचित हैं. नौनिहालों के बचपन को बचाने की जिम्मेदारी सिर्फ सरकार की ही नहीं है, बल्कि हम सबकी सामाजिक जिम्मेदारी बनती है.