रमेश ठाकुर का ब्लॉग: रंगों में मिलावट का गोरखधंधा

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: March 17, 2019 03:18 PM2019-03-17T15:18:07+5:302019-03-17T15:18:07+5:30

किसी जमाने में होली खेलने के लिए लोग महीनों पहले से रंगों को तैयार करते थे। पीले रंग हल्दी, लाल रंग गुड़हल के फूल से बनाते थे। लेकिन प्रशासनिक लापरवाही कहें या लोगों की अज्ञानता, रंगों में अब केमिकल की मिलावट धड़ल्ले से होने लगी है।

Ramesh Thakur's Blog: Mixing in Colors | रमेश ठाकुर का ब्लॉग: रंगों में मिलावट का गोरखधंधा

रमेश ठाकुर का ब्लॉग: रंगों में मिलावट का गोरखधंधा

एक जमाना था जब टेसू के फूलों और स्व-निर्मित रंगों से खेलकर लोग होली का त्योहार मनाते थे, लेकिन वक्त बदला, रिवायतें बदलीं और बदल गया रंगोत्सव का तरीका। पारंपरिक रंगों से खेली जाने वाली होली अब केमिकल रंगों से भर गई है। केमिकल रंगों ने अब स्व-निर्मित रंगों की चमक को फीका कर दिया है। मिलावटी रंग बेहद खतरनाक होता है। होली के मौके पर बाजारों में बिकने वाले रंगों में अस्सी फीसद मिलावट होती है। चिकित्सकीय आंकड़े गवाही देते हैं कि इन रंगों से कइयों की आंखों की रोशनी चली गई, तो कइयों की चेहरे की त्वचा खराब हुई। 

किसी जमाने में होली खेलने के लिए लोग महीनों पहले से रंगों को तैयार करते थे। पीले रंग हल्दी, लाल रंग गुड़हल के फूल से बनाते थे। लेकिन प्रशासनिक लापरवाही कहें या लोगों की अज्ञानता, रंगों में अब केमिकल की मिलावट धड़ल्ले से होने लगी है।

दुकानदारों की मानें तो होली के दिनों में इन्हीं रंगों की डिमांड भी सबसे ज्यादा रहती है। विगत कुछ वर्षो से चाइना से केमिकल रंगों की सप्लाई युद्धस्तर पर होने लगी है। जबकि चाइना में होली खेली भी नहीं जाती, लेकिन भारतीय रंगों के बाजार पर उसने कब्जा कर लिया है। हालांकि चाइना के रंगों और चाइनीज मांङो पर सरकार ने प्रतिबंध लगाया हुआ है, लेकिन भारतीय बाजारों में चोरी-छिपे ये मिल जाते हैं।

इन रंगों की भारी बिक्री का कारण इनकी देशी रंगों के मुकाबले कम कीमत है। इनका भाव हमारे यहां के रंगों से कहीं कम होता है। इन सस्ते रंगों में केमिकल तो मिला ही होता है साथ ही गहरे रंगों जैसे नारंगी, काले और हरे रंग के लिए कॉपर सल्फेट, लाल रंग के लिए मक्यरुरी सल्फाइड और लेड ऑक्साइड का प्रयोग किया जाता है। ऐसे रंग अब हमारे यहां भी निर्मित होने लगे हैं। होली पर सिल्वर रंगों की मांग सबसे ज्यादा होती है। सिल्वर रंगों के लिए एल्युमीनियम ब्रोमाइड, नीले रंग के लिए पíशयन ब्लू नाम के केमिकल का प्रयोग किया जाता है। कमोबेश यही सब रंग त्वचा के नुकसान का कारक  बनते हैं।

Web Title: Ramesh Thakur's Blog: Mixing in Colors

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