- रमेश ठाकुरआज सोमवार को विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस है. पर्यावरण और जीवन के बीच अटूट संबंध होता है बावजूद इसके हम इस सच्चाई को नकारकर आगे बढ़ते जा रहे हैं. पर्यावरण संरक्षण दिवस का मकसद नागरिकों को प्रदूषण की समस्या से अवगत कराने के साथ पर्यावरण के प्रति जागरूक करना होता है.
संसार के कई देश पर्यावरण की बिगड़ती स्थिति एवं उसके बाद होने वाले नुकसान से बेखबर हैं. विकास की अंधी दौड़ में हम पर्यावरण को ठेंगा दिखा रहे हैं. विगत कुछ वर्षो में हमारा देश आर्थिक रूप से समृद्ध तो हुआ है पर इसकी कीमत पर्यावरण को नुकसान पहुंचाकर चुकाई गई है. एक सर्वे के मुताबिक दुनिया के पंद्रह सबसे दूषित शहरों में भारत के दस शहर शामिल हैं.
नौबत अब ऐसी भी आ गई है कि दिल्ली जैसे बड़े शहरों में पर्यावरण को साफ करने के लिए कृत्रिम बारिश के इंतजाम करने पड़ रहे हैं. गगनचुंबी इमारतों को बनाकर हम भू-जल का दोहन करते जा रहे हैं. व्यर्थ के सियासी मुद्दों पर हम उलङो हुए हैं लेकिन जीवनदायिनी प्रकृति के प्रति बेखबर हैं. सरकार ने पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए तमाम कानून बनाए हैं लेकिन सभी कागजी साबित हो रहे हैं. पूरे भारत में आबोहवा दूषित होती जा रही है.
बेलगाम निजी कंपनियों ने अथाह जल दोहन कर पर्यावरणीय संतुलन को बिगाड़ने का काम किया है. विद्युत और पेयजल की सुविधाओं के लिए केंद्र सरकार की ओर से हजारों एकड़ जंगल और सैकड़ों बस्तियों को उजाड़कर देश के कई हिस्सों में विशाल जलाशय बनाए थे, मगर वह सभी दम तोड़ रहे हैं.
केंद्रीय जल आयोग ने इन तालाबों में जल उपलब्धता के जो ताजा आंकड़े दिए हैं उनसे साफ जाहिर होता है कि आने वाले समय में पानी और बिजली की भयावह स्थिति सामने आने वाली है. इन आंकड़ों से यह साबित होता है कि जल आपूर्ति विशालकाय जलाशयों (बांध) की बजाय जल प्रबंधन के लघु और पारंपरिक उपायों से ही संभव है न कि जंगल और बस्तियां उजाड़कर.
बड़े बांधों के अस्तित्व में आने से जल के अक्षय स्नेत को एक छोर से दूसरे छोर तक प्रवाहित रखने वाली नदियों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है. पर्यावरण खतरे में है और इसे बचाने के लिए समाज के सभी वर्गों को आगे आना होगा.