प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल का ब्लॉग: सभ्यता का मानवीकरण है महात्मा गांधी की अहिंसा

By प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल | Published: October 2, 2020 10:10 AM2020-10-02T10:10:53+5:302020-10-02T10:10:53+5:30

महात्मा गांधी की आज जयंती है. आज इस मौके पर जरूरत है कि गांधी के समग्र जीवन दर्शन और सभ्यता दृष्टि को समकालीन संदर्भो में देखा और समझा जाए.

Rajneesh Kumar Shukla blog: Mahatma Gandhi non violence is humanization of civilization | प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल का ब्लॉग: सभ्यता का मानवीकरण है महात्मा गांधी की अहिंसा

महात्मा गांधी की आज 151वीं जयंती (फाइल फोटो)

Highlights अहिंसा के व्यावहारिक प्रयोग ने महात्मा गांधी को महामानव के रूप में प्रतिष्ठित कियाआज दुनिया को गांधी दर्शन को वैकल्पिक सभ्यता के रूप में समझने की जरूरत

महात्मा गांधी बीसवीं सदी के एक ऐसे चिंतक एवं प्रवक्ता हैं जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन सत्य और अहिंसा के प्रयोग में बिताया और अपने जीवन की आहुति दे दी. अहिंसा के व्यावहारिक प्रयोग ने उन्हें जगत में महामानव के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया. अहिंसा का सिद्धांत गांधी जीवन का श्वास था. अपने जीवन के प्रत्येक क्षेत्न (गृहस्थ, सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक) में, अहिंसक साधनों का प्रयोग करते हुए उन्होंने सत्य की साधना की. 

गांधी जयंती के निमित्त उनके समग्र जीवन दर्शन और सभ्यता दृष्टि को समकालीन संदर्भो में देखना व समझना होगा. आज जब हम गांधी पर विचार कर रहे हैं तो स्वतंत्नता आंदोलन केंद्र में नहीं है अपितु संपूर्ण विश्व की व्यवस्था और मानव मात्न की स्वतंत्नता का विचार महत्वपूर्ण है.

गांधी दर्शन को वैकल्पिक सभ्यता के रूप में समझने की जरूरत

आज सवाल है कि यह दुनिया हमारी नई पीढ़ी को कैसे सुरक्षित मिलेगी? सबसे बड़ा प्रश्न यह भी है कि जलवायु परिवर्तन, हिंसा, आतंकवाद, नस्लवाद आदि के दुश्चक्र  से दुनिया को कैसे बचाया जा सकता है? ईर्ष्या, द्वेष, अहंकार, लालच से मुक्त एक ऐसा विश्व आने वाली पीढ़ी को दे सकें, जिसमें वह सुरक्षित, स्वस्थ और शांतिमय जीवन जी सके. इसके लिए यह आवश्यक है कि गांधी दर्शन को वैकल्पिक सभ्यता के रूप में समझने की कोशिश की जाए. 

भारत में आदिकाल से ही अहिंसा की अविच्छिन्न और गहरी परंपरा रही है. भारतीय धर्मो में अहिंसा को सबसे बड़ा कर्तव्य माना गया है और यह  ‘सोहं तत्वमसि’ जीवन की आध्यात्मिक एकता में विश्वास को निरूपित करता है. अहिंसा को मनुष्य के जीवन के पांच नैतिक सद्गुणों (सत्य, अहिंसा, प्रेम, सेवा और शांति) में से एक बताया गया है.

विगत चार सौ वर्ष औद्योगिकीकरण और पुनर्जागरण के रहे हैं. इस कालखंड में आधुनिकतावादी सोच ने हजारों-हजार वर्ष की सभ्यता और मनुष्य के समक्ष अस्तित्व का संकट खड़ा कर दिया है. इतना संत्नास और भय का वातावरण मानव जाति के इतिहास में कभी नहीं रहा है, तो स्वाभाविक है कि इस संत्नास से निकलने के लिए मार्ग तलाशने होंगे और यह प्रतिस्पर्धा, अधिकारिता तथा अन्य को शासित करने की मनोवृत्ति से नहीं आ सकती है. 

आज मानवीय सभ्यता के लिए जरूरी है कि करुणा, दया, परोपकार, संवेदनायुक्त मनुष्य के हित और कल्याण पर आधारित व्यवस्था के बारे में विचार किया जाए और ऐसी स्थिति में गांधी एकमात्न विकल्प के रूप में दिखाई देते हैं.

गांधी अहिंसा पर आधारित सभ्यता दृष्टि के प्रस्तावक

महात्मा गांधी हिंसा से त्नस्त विश्व और हिंसामूलक सभ्यता के स्थान पर अहिंसा पर आधारित सभ्यता दृष्टि के प्रस्तावक हैं. एक ऐसे सामाजिक परिदृश्य के अभिकल्पक हैं, जिसमें मनुष्य के लिए मनुष्य, साधन न होकर साध्य होगा और क्रियाशील मनुष्य के लिए येन-केन-प्रकारेण साध्य की सिद्धि लक्ष्य न होकर, सत्य साधनों से ही सिद्धि प्राप्त होगी, इस विश्वास का दृढ़ीकरण है.

इतिहास के कालक्रम में गांधी को देखना आंदोलनकारी गांधी को देखना है लेकिन वे अपने जीवन की परिपक्वावस्था (पैंसठ वर्ष की उम्र के बाद) में जीवन के लक्ष्य को स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि मेरा एकमात्न उद्देश्य केवल और केवल रचनात्मक कार्यक्रम है. वस्तुत: गांधी का रचनात्मक कार्यक्रम सृजन, संरक्षण और संहार का एक त्रिक्  है. शत्रु बुद्धि का नाश, मनुष्य के शाश्वत षड् रिपुओं यानी मोह, मद, मत्सर, ईष्र्या, द्वेष, क्रोध इत्यादि विचार के नाश से ही संभव होगा. 

वैचारिक अभिवृत्तिजन्य दोषों से मुक्ति उपदेश से नहीं, कर्म से ही संभव है. इसलिए गांधी व्यक्ति निर्माण के साधन के रूप में रचनात्मक कार्यक्रम की प्रस्तावना करते हैं. गांधी के रचनात्मक कार्य लोक संस्कार का उपक्र म हैं. प्राकृत को विकृत बनाने की यूरोपीय जीवन प्रणाली गांधी के लिए मनुष्य विरोधी सभ्यता है इसलिए यह आसुरी सभ्यता है. 

प्राकृत को संस्कृत बनाना, प्रकृति को सुसंस्कृत करना केवल और केवल विधायात्मक रचनात्मक दृष्टिकोण से ही संभव है और रचनात्मकता, निर्वैरता, अभय, परदु:खकातरता के दिव्य भाव से संपन्न मनुष्य के द्वारा ही साध्य है. गांधी की अहिंसा पर आधारित सभ्यता दृष्टि मशीनीकरण के स्थान पर मानवीकरण का यत्न है. 

हिंसा के हथियारों के विरुद्ध सत्य, शील, स्नेह, दया इत्यादि मानवीय गुणों की विजय का उद्घोष है और अंतत: कहा जा सकता है कि यह प्रत्येक मनुष्य के द्वारा उसकी स्वराज की सिद्धि का संकल्प है. गांधी ने व्यापक और व्यावहारिक संदर्भो में अहिंसा को न सिर्फ अपने जीवन का धर्म बनाया था बल्कि उन्होंने समाज, जीवन और परिवार के संपूर्ण  संदर्भो में अहिंसा के प्रयोग किए. उनका जीवन ही अहिंसा की प्रयोगशाला है.

Web Title: Rajneesh Kumar Shukla blog: Mahatma Gandhi non violence is humanization of civilization

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