नए शहर के साथ यह बारिश भी मुझे नई-नई सी लगती है

By मेघना वर्मा | Updated: July 15, 2018 10:17 IST2018-07-15T10:17:54+5:302018-07-15T10:17:54+5:30

अगर भीग ना भी पाएं तो बस मन यह किया करता था कि मां कि रसोई से हल्दी, चीनी, बेसन, चायपत्ती कुछ तो खत्म हो जाएं ताकि बारिश में सामान लेने जाने के बहाने बारिश का मजा ले सकूं। 

rain in india blog by meghna verma | नए शहर के साथ यह बारिश भी मुझे नई-नई सी लगती है

नए शहर के साथ यह बारिश भी मुझे नई-नई सी लगती है

ऑफिस से निकली तो मौसम साफ था, सड़कों पर बस यहां-वहां के सूखे कचड़े फैले थे। सुबह 7 बजे निकली थी तो बहुत ज्यादा भीड़ नहीं थी मगर फिर भी सड़के थोड़ी भरी थीं। ऑफिस पहुंची तो बस रोज की तरह काम में जुट गई। पता ही नहीं चला कब 10 से 11 फिर 12 से एक बच गए। अचानक बाहर की ओर लगे शीशे पर नजर गई तो आसमान को काले बादल ने अपनी आगोश में ले लिया था। ऐसा लग रहा था मानों सदियों बाद दो प्यार करने वालों का मिलन हुआ था तभी तो आसमान के एक-एक कोने को बादल अपनी आगोश में ले चुका था। बस शीशे के अन्दर से देख कर ही यह नजारा मेरा मन उन पुरानी यादों में कहीं खो गया। 

मन में एक बार को लगा कि बस कोई मुझे मेरे घर पहुंचा दें। मम्मी इस मौसम में अक्सर आलू और प्याज की पकौड़ियां बनाया करती थी। मिर्च थोड़ा ज्यादा डाल देती थी तो पापा गुस्सा जरूर होते थे लेकिन छत पर बैठकर बड़े चाव और चाय के साथ हम सारी पकौड़ियां चट कर जाते थे। ना ऑयली खाने की चिंता थी ना मोटापे की। बस घरवालों का साथ सब कुछ था। कुछ देर की गुंजाइश होती थी फिर मौसम की उस पहली बारिश से पूरा शहर लबरेज हो जाया करता था। जितनी खुशी पानी पाकर धरती को होती थी उतनी ही मुझे भी होती थी। 

मां लाख मना करती थी कि पहली बारिश में मत नहाना दानें हो जाएंगे लेकिन ना...बारिश हुई नहीं की छत पर बारिश का पानी भरकर बस छई-छपाक। कोई ब्यूटी का डर नहीं कोई स्किन की परवाह नहीं, बाल खराब होगें...तो क्या होने दो वालो अंदाज लिए हम भी पानी के बूंद की तरह बच्चों से यहां से वहां कूदने लगते थे।

अगर भीग ना भी पाएं तो बस मन यह किया करता था कि मां कि रसोई से हल्दी, चीनी, बेसन, चायपत्ती कुछ तो खत्म हो जाएं ताकि बारिश में सामान लेने जाने के बहाने बारिश का मजा ले सकूं। 

उफ्फ ये बारिश...जब से शीशे के चार दीवारों के बीच लैपटॉप और फाइलों में उलझी हूं बारिश भी शायद रूठ गई है। ना जल्दी बरसती है और ना मुझे भीगाती है। आज भीगने का मन भी हो तो बस ख्याल यही आता है कि अभी भीग गए तो चेहरे पर पिंपल और बाल में गंदगी दोनों जम जाएगी। जरा सी हिम्मत और करती हूं तो लगता है नहीं गलती से भी तबियत खराब हो गई तो सवेरे ऑफिस कैसे आ पाऊंगी। सही में शहर के साथ ये बारिश भी अब बदली-बदली सी दिखाई देती है। 

Web Title: rain in india blog by meghna verma

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