ब्लॉग: मतदान के आंकड़ों की उपलब्धता में देरी पर उठते सवाल
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: May 13, 2024 09:53 IST2024-05-13T09:50:57+5:302024-05-13T09:53:18+5:30
यहां तक कि विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग को पत्र भी लिख डाला, जिसमें चुनाव के मतदान को लेकर आंकड़ों में परिवर्तन पर बड़ा सवाल उठाया गया है.

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लोकसभा चुनाव के चौथे चरण का मतदान सोमवार को होगा. इस बार मतदान अधिक कराए जाने को लेकर और बेहतर प्रयास किए गए हैं. यद्यपि पिछले तीन चरणों में सरकारी कोशिशों के बावजूद अपेक्षा अनुरूप मतदान नहीं हुआ, जिसको लेकर अनेक प्रकार के कारण गिनाए गए. हालांकि बात जब आंकड़ों तक पहुंची तो मतदान के आंकड़ों को लेकर भी कई बातें आरंभ हो गईं.
यहां तक कि विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग को पत्र भी लिख डाला, जिसमें चुनाव के मतदान को लेकर आंकड़ों में परिवर्तन पर बड़ा सवाल उठाया गया है.
दरअसल 30 अप्रैल को जारी आंकड़ों में चुनाव आयोग ने बताया कि पहले चरण में 102 संसदीय सीटों पर 66.14 प्रतिशत और दूसरे चरण में 88 सीटों पर 66.71 प्रतिशत वोट पड़े. मगर 19 अप्रैल की शाम चुनाव आयोग ने बताया था कि शाम सात बजे तक 60 प्रतिशत से अधिक वोट पड़े. 26 अप्रैल को चुनाव आयोग ने बताया था कि उस दिन शाम सात बजे तक 88 संसदीय क्षेत्रों में हुए मतदान में करीब 61 प्रतिशत मत पड़े.
कुछ जानकारों का कहना है कि मतदान के दिन शाम तक चुनाव आयोग एक मोटा आंकड़ा जारी करता है जिसे अधिक सूचना आने के बाद परिवर्तित किया जाता है और फिर अगले कुछ घंटों में मतदान का अंतिम आंकड़ा जारी कर दिया जाता है. इस बार आंकड़े जारी करना और प्रारंभिक तथा अंतिम आंकड़ों में परिवर्तन आना शक की गुंजाइश को पैदा कर रहा है.
इस मामले को लेकर निर्वाचन आयोग ने लोकसभा चुनाव में बाधा डालने के लिए कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को फटकार लगाई है. मगर मत-पत्र से वोटिंग मशीन और इंटरनेट की तेजी आने से आंकड़ों के आदान-प्रदान में कहां बाधा पैदा हो रही है, इस बात का कोई खुलासा नहीं हो रहा है. चुनाव के पूर्व अधिकारी इस बात को मानते हैं कि एक बार मतदान समाप्त हो जाने के बाद आंकड़ों में परिवर्तन संभव नहीं है, हालांकि वह सभी आंकड़ों को एकत्र करने के बाद की स्थिति है. फिर भी सभी आंकड़ों को एकत्र करने में समय नहीं लगना चाहिए.
यह कहीं न कहीं आयोग के कार्य करने की गति में समस्या का संकेत भी है. इसलिए पूरी बात चुनाव आयोग के पाले में ही जाती है. आधुनिक तकनीकी के दौर में तकनीकी गड़बड़ियों को भी सहजता से स्वीकार नहीं किया जा सकता है. इसलिए चुनाव आयोग पर उठते सवालों का उसे जवाब देना होगा. एक संवैधानिक संस्थान होने के नाते सवालों का जवाब देना उसकी नैतिक जिम्मेदारी है.
उसे लोगों का समाधान करना आवश्यक है. कुछ पत्रकारों के संगठन ने भी समय पर आंकड़ों की मांग की है, जिसका आधार पिछले चुनाव हैं. यदि कुछ सवालों से चुनाव आयोग की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर सवाल खड़ा होता है तो उसे पलटवार करने की बजाय सभी शंकाओं का समाधान करना चाहिए, क्योंकि उसका समय पर मिला संदेश ही मतदाता के मन तक पहुंच पाएगा और उसके मन में संतुष्टि का भाव जगा पाएगा.