ब्लॉग: शिक्षा, ज्ञान और नैतिकता का सवाल

By गिरीश्वर मिश्र | Published: March 18, 2024 11:01 AM2024-03-18T11:01:45+5:302024-03-18T11:04:37+5:30

शायद इसी सोच के साथ परमाणु बम जैसे संहारक अस्त्र-शस्त्र भी बनते गए। आज पृथ्वी सहित पूरी प्रकृति और सारी मनुष्यता के भविष्य पर भीषण खतरा मंडराता दिख रहा है।

Question of education knowledge and morality | ब्लॉग: शिक्षा, ज्ञान और नैतिकता का सवाल

फाइल फोटो

Highlightsआज विज्ञान और प्रौद्योगिकी का युग हैज्ञान का विस्फोट हो रहा हैविज्ञान से बढ़त पाकर कुछ देश शेष विश्व पर नियंत्रण करने में लगे हुए हैं

आज विज्ञान और प्रौद्योगिकी का युग है। ज्ञान का विस्फोट हो रहा है। इस युग की मान्यता है कि ज्ञान अपने आप में ‘सेक्युलर’ (यानी निर्दोष!) होता है और उसका किसी तरह के मानवीय मूल्य से कुछ लेना-देना नहीं होता। वह सब कुछ से परे अर्थात् निरपेक्ष निष्पक्ष होता है। आज विज्ञान से बढ़त पाकर कुछ देश शेष विश्व पर नियंत्रण करने में लगे हुए हैं।

शायद इसी सोच के साथ परमाणु बम जैसे संहारक अस्त्र-शस्त्र भी बनते गए। आज पृथ्वी सहित पूरी प्रकृति और सारी मनुष्यता के भविष्य पर भीषण खतरा मंडराता दिख रहा है। हमारी वैज्ञानिक ज्ञान-दृष्टि की एक सीमा यह भी उभर रही है कि हम इस स्थिति में निरुपाय और विवश बने रहने के लिए अभिशप्त हो चले हैं।

पश्चिमी दृष्टि से भिन्न भारतीय प्रज्ञा के अनुसार ज्ञान इस पृथ्वी पर सबसे पवित्र होता है- न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते। पवित्रता का अनुभव निर्मल करने वाला होता है। उससे व्यक्ति के दोष दूर होते हैं और सद्गुण विकसित होते हैं। भारत की ज्ञान परंपरा में ज्ञान या विद्या को समझाते हुए उसे क्लेशों से मुक्त करने वाला, विवेक जगाने वाला और मन में कर्तव्य का भाव स्थापित करने वाला बताया जाता रहा है। ज्ञान प्रकृति से ही नैतिक है।
 
शिक्षा की प्रक्रिया ज्ञान अर्जित करने के माध्यम के रूप में है और इसकी उपयोगिता समझ कर इसे सभ्य देशों ने संस्थागत व्यवस्था के अधीन संचालित करने की व्यवस्था अपना ली। आज आदमी के जीवन का एक बड़ा हिस्सा, औसतन लगभग बीस वर्ष की आयु तक, इस संस्था की गहन निगरानी में बीतता है।

शैक्षिक संस्थाओं में रहते हुए विद्यार्थी देख कर, सुन कर, प्रयोग कर और समझ कर मूल्यों की एक व्यवस्था को अपनाता है। साथ ही व्यवहार के स्तर पर वह कुछ मानकों को स्वीकार करता है। ऐसे में नैतिकता हमारी शिक्षा प्रक्रिया की अनिवार्यता बन जाती है जिसका कर्णधार अध्यापक होता है।

आज शिक्षा का परिवेश नाना प्रकार से प्रदूषित हो रहा है। बोर्ड की परीक्षा के केंद्र पर नकल कराने वालों की भीड़ होती है और पेपर लीक होने की घटनाएं आम होने लगी हैं। शोध में साहित्य चोरी (प्लेगरिज्म) की घटनाएं बढ़ रही हैं। ज्ञान के लिए जिज्ञासा, निष्ठा और समर्पण की जगह किसी भी तरह परीक्षा में सफलता हासिल करना लक्ष्य होता जा रहा है।

इसका दबाव कितना भयानक है यह विद्यार्थियों के मानसिक अस्वास्थ्य की बढ़ती मात्रा में देखा जा सकता है। आज ये प्रश्न बेहद महत्वपूर्ण हो गया है कि कौन सा ज्ञान लिया जाए? ज्ञान किस तरह से लिया जाए? ज्ञान का उद्देश्य क्या हो? विकसित भारत के संकल्प के साथ ज्ञान की दुनिया को व्यवस्थित करना भी जरूरी है। उसे देश–काल के अनुकूल और स्वतंत्रता के बोध को जगाने वाला नैतिक और मानवीय उपक्रम बनाना पड़ेगा।

Web Title: Question of education knowledge and morality

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