पुण्य प्रसून वाजपेयी का ब्लॉग: राजनीति या सरकार में कोई भी विरोधाभास अब चौंकाता नहीं है

By पुण्य प्रसून बाजपेयी | Published: June 2, 2019 05:45 AM2019-06-02T05:45:27+5:302019-06-02T05:45:27+5:30

सत्ता दुबारा ज्यादा मजबूती से आई है, इकोनॉमी कहीं ज्यादा कमजोर हुई है. राजनीतिक दलों से गठबंधन मजबूत हुआ है लेकिन समाज के भीतर दरारें साफ दिखाई देने लगी हैं. लेकिन अब कुछ भी चौंकाता नहीं है क्योंकि जनादेश तले ही अब देश की व्याख्या की जा रही है.

Punya Prasun Bajpai Blog: Paradox in politics or government is no longer surprising | पुण्य प्रसून वाजपेयी का ब्लॉग: राजनीति या सरकार में कोई भी विरोधाभास अब चौंकाता नहीं है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। (फाइल फोटो)

राष्ट्रपति भवन की चकाचौंध. भव्यता से सराबोर शपथ ग्रहण. 48 घंटे में बनी रायसीना दाल का जायका लेना. अमित शाह का गृह मंत्नी बनना. निर्मला सीतारमण का वित्त मंत्नी बनना. देश में बेरोजगारी का संकट आजादी के बाद से सबसे ज्यादा गहरा जाना. विकास दर छह फीसदी से भी नीचे आ जाना. बजट से पहले पहली ही कैबिनेट में 60 हजार करोड़ रुपया किसान-मजदूरों को देने का ऐलान कर देना. उत्पादन है नहीं, रुपया कहां इन्वेस्ट करें कुछ पता नहीं. तो सत्ता जीती है, विचारधारा नहीं.

सत्ता दुबारा ज्यादा मजबूती से आई है, इकोनॉमी कहीं ज्यादा कमजोर हुई है. राजनीतिक दलों से गठबंधन मजबूत हुआ है लेकिन समाज के भीतर दरारें साफ दिखाई देने लगी हैं. लेकिन अब कुछ भी चौंकाता नहीं है क्योंकि जनादेश तले ही अब देश की व्याख्या की जा रही है. जनादेश कह रहा है मुस्लिम-दलित-ओबीसी को भी मोदी सरीखा नेता मिल गया है तो फिर मंडल टूट चुका है. जाति गठबंधन टूट चुका है. धर्म की लकीरें मिट चुकी हैं और देश में सिर्फ अब अमीर-गरीब नामक दो प्रजातियां ही बची हैं जिनकी दूरियां पाटने के लिए देश के प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी जी-जान लगा चुके हैं.

वाकई अब कोई भी तथ्य नहीं चौंकाता. समझना वाकई मुश्किल हो चुका है कि जनादेश की व्याख्या करने वाले जनादेश से 48 घंटे पहले तक भारत में जातियों-समुदायों की राजनीति तले जनादेश क्यों देख रहे थे. और जनादेश आने के 100 घंटे बाद मंत्रिमंडल की जो तस्वीर उभरी उसमें जातीय-सामाजिक समीकरण क्यों देखे गए. यूपी में ब्राह्मण की जरुरत तले महेन्द्र नाथ पांडेय. तो हरियाणा में गैर जाट सांसद कृष्णपाल गुर्जर का मंत्नी बनना. झारखंड में गैर आदिवासी सीएम हैं तो आदिवासी सांसद अर्जुन मुंडा को मंत्नी बना देना. उमा भारती चुनाव मैदान से बाहर हो गईं तो उनके एवज में प्रह्लाद पटेल को मंत्नी बनाकर लोधी समाज से तालमेल बैठाए रखना. उत्तराखंड में राजपूत सीएम हैं तो पोखरियाल को लाकर ब्राrाण को साधना. राजस्थान में शेखावत के जरिये जातीय समीकरण साधना. तो फिर जनादेश के पैमाने या उसी की व्याख्या तले मंत्रिमंडल भी क्यों नहीं बनाया गया. 

अब कुछ भी नहीं चौंकाता है क्योंकि एक तरफ मेनका गांधी, जयंत सिन्हा और अनंत हेगड़े के जरिये मुस्लिम पर निशाना साधने वालों को या फिर लिंचिंग करने वालों को माला पहना कर स्वागत करने वाले को या संविधान पर अंगुली उठाने की बात कहने वाले को मंत्रिमंडल में न लेकर अपनी सहिष्णुता और सादगी नरेंद्र मोदी दिखाते हैं, लेकिन गिरिराज सिंह, बालियान और साध्वी निरंजन ज्योति को मंत्रिमंडल में लेकर क्या संदेश देते हैं ये भी अब चौंकाता नहीं है. अब तो ये भी नहीं चौंकाता है कि बीते पांच बरस में काल ड्रॉप के संकट से निजात न दिला पाने वाले दुबारा उसी मंत्नालय को संभाल रहे हैं. ट्रेन की रफ्तार ज्यादा तो नहीं लेकिन ट्रेन वक्त पर चला सकें इसमें असफल रहने वाले वही विभाग संभालने जा रहे हैं. पांच बरस में देश को नई शिक्षा नीति तब नहीं मिल पाई जो 100 दिन में लाने के वादे के साथ 2014 में सत्ता में आई थी. तो फिर शिक्षा मंत्नालय से निकले मंत्रियों को दूसरा विभाग सौंप कर कौन सा तीर मारा गया. 

वाकई अब कुछ भी नहीं चौंकाता. हां, यह जरूर चौंका गया कि किसानों की आय दुगुना करने का वादा करने वाले पीएम ने इस बार किसानों से कोई वायदा नहीं किया लेकिन पुराने कृषि मंत्नी राधामोहन सिंह की जगह नरेंद्रसिंह तोमर को कृषि मंत्नी बना दिया. खेल मंत्नालय भी एक ओलंपियन खिलाड़ी से लेकर पूर्वी भारत के रिजिजु के युवा होने को महत्वपूर्ण बना दिया गया. मंत्रियों की फौज कितनी भी बड़ी हो चंद दिनों में ही आप भूल जाएंगे कि कौन सा मंत्नी किस विभाग को संभाले हुए है.  
 

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