ब्लॉग: जनआक्रोश से उठता है सरकारों की कार्यप्रणाली पर सवाल
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: August 24, 2024 12:44 IST2024-08-24T12:42:04+5:302024-08-24T12:44:08+5:30
हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी भले ही एक विशेष मामले में की हो लेकिन अनेक मामलों में यह बात देखने में आ रही है कि जब तक जनता आंदोलित नहीं हो जाती, तब तक जिम्मेदार लोग हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हैं.

(प्रतीकात्मक तस्वीर)
ठाणे जिले के बदलापुर कस्बे में एक स्कूल में दो बच्चियों के यौन उत्पीड़न मामले में बंबई हाईकोर्ट ने जो तल्ख टिप्पणी की है, वह वर्तमान समय की क्रूर सच्चाई को ही दर्शाता है. उच्च न्यायालय ने कहा कि जब तक जनता जबरदस्त आक्रोश नहीं दिखाए तब तक क्या तंत्र सक्रिय नहीं होगा? या सड़कों पर उतरे बिना राज्य सरकार सक्रिय नहीं होगी?
हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी भले ही एक विशेष मामले में की हो लेकिन अनेक मामलों में यह बात देखने में आ रही है कि जब तक जनता आंदोलित नहीं हो जाती, तब तक जिम्मेदार लोग हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हैं. यह शोध का विषय हो सकता है कि इसके पीछे उनकी शुद्ध लापरवाही कारणीभूत होती है या मामले को दबाने की साजिश के चलते ऐसा किया जाता है? लेकिन कारण दोनों में से चाहे जो हो, निश्चित रूप से यह आपराधिक कृत्य है.
पश्चिम बंगाल में कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज व अस्पताल में ट्रेनी डॉक्टर की बलात्कार के बाद जघन्य हत्या के मामले में शुरुआती जांच के दौरान पुलिस की जिस भयावह लापरवाही को सीबीआई उजागर कर रही है, वह हैरान कर देती है. पुलिस द्वारा प्राथमिकी दर्ज करने का मामला हो या बयान, उसमें इतनी देर कर दी जाती है कि पुलिस के इरादों पर ही शक होने लगता है.
यह सब देखकर एक भय यह भी उत्पन्न होने लगता है कि क्या पता इस तरह के कितने ही मामले उजागर होने के पहले ही दबा दिए जाते हों? कोलकाता मामले में पूरे देश में जनआक्रोश के बाद लड़कियों, बच्चियों के यौन उत्पीड़न और कई मामलों में उनकी नृशंस हत्या की भी इतनी घटनाएं उजागर हो रही हैं कि दिमाग सुन्न सा होने लगता है. कोई दिन ऐसा नहीं जाता जब इस तरह की घटनाएं सामने न आती हों.
ऐसी घटनाएं पहले होती नहीं थीं या फिर जनआक्रोश के चलते पहले की तरह उन्हें दबाना संभव नहीं हो पा रहा है? जनआक्रोश तभी उमड़ता है जब पानी सिर के ऊपर होने लगता है, वरना प्रशासनिक तंत्र के बल प्रयोग का डर लोगों को सड़कों पर उतरने से रोके रखता है. कहते हैं जापान में काली पट्टी बांध कर भी लोग काम करने लगें तो सरकार के लिए यह बहुत बड़ी बात हो जाती है और वह उनकी समस्याओं के निराकरण में जुट जाती है.
हमारे देश में तो अब ऐसी हालत दिखाई देती है कि अदालतें अगर हस्तक्षेप न करें तो सरकारें जनआंदोलन के कारणों पर गौर करने के बजाय उन्हें बलप्रयोग से कुचलने पर ही आमादा हो जाएं! निश्चित रूप से यह तरीका लोकतांत्रिक नहीं है और सरकारों को ध्यान रखना चाहिए कि न्यायपालिका के हस्तक्षेप की नौबत ही न आए, अपने कामों से वे ऐसी छवि बनाएं कि जनता उन पर पूरा भरोसा करे कि वे दूध का दूध और पानी का पानी कर सकेंगी.