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प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल का ब्लॉग: महामना और अटलजी असाधारण विभूतियां

By प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल | Updated: December 25, 2020 13:25 IST

राजनीतिक उदारता और हिंदुत्व की सांस्कृतिक निष्ठा महामना मदन मोहन मालवीय के जीवन का अभिन्न अंग थी. यही कारण था कि वे एक साथ कांग्रेस और हिंदू महासभा के अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे.

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25 दिसंबर भारत सहित दुनिया के लिए बड़ा दिन है. यूरोप में दिन बड़ा होने लगता है इसलिए तो बड़ा दिन है ही, इसलिए भी बड़ा दिन है कि यह यीशु का जन्म दिन है, पर भारतीयों के लिए इससे भी बड़ा दिन यह है कि 25 दिसंबर दो अजातशत्रु महामानव राजनेताओं का जन्म दिन है, जो भारत के सार्वकालिक श्रेष्ठ नायकों में गिने जाते हैं.

महामना मदन मोहन मालवीय और उदारमना अटल बिहारी वाजपेयी दोनों इसलिए महत्वपूर्ण हैं कि राजनीति में रहते हुए श्रेष्ठ भारत के स्वप्न द्रष्टा और निर्माता हैं. एज्युकेटेड इंडिया से लेकर शाइनिंग इंडिया तक के भारत का विकास इन दोनों के स्वप्न, संघर्ष और साधना से निर्मित होता है.

दोनों अपने हिंदूवादी दृष्टिकोण के लिए जाने जाते हैं. दोनों धर्माधिष्ठित राजनीति के प्रयोक्ता और प्रस्तोता हैं. दोनों के लिए धर्म मजहब नहीं जीवन दर्शन है. दोनों के लिए धर्म पांथिकता से परे सार्वभौमिक मूल्यों की जीवन प्रणाली है.

इन दोनों के लिए ही राष्ट्र भक्ति प्रत्येक भारतवासी का प्रथम धर्म है, आत्मत्याग और अनुशासन भारतीय जीवन गति के दो पहिए हैं. दोनों ने एक सुनहरे भारत का सपना देखा था और उसे साकार करने का यत्न किया.

महामना मदन मोहन मालवीय ने जहां एक ओर काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना के द्वारा आजाद भारत को संभालने और चलाने तथा भारत के चिरपुरातन मूल्यों पर खड़ा करने का महान कार्य संपादित किया और देश को ऐसे स्नातकों की मालिका दी जो भारत सहित पूरी दुनिया में भारतीय संस्कृति के राजदूत के रूप में अपनी भूमिका को निभाते हुए, भारत की वैश्विक भूमिका को प्रतिपादित और प्रमाणित करते हैं.

भारतीय राजनीति और भारतीय जन में अजातशत्रु राजनीतिज्ञ के रूप में अटल बिहारी बाजपेयी ने 1957 से लेकर 2004 तक की अपनी संसदीय राजनीति की यात्र में राजनेता की सर्वप्रियता का वह उदाहरण प्रस्तुत किया जो अन्यत्र दुर्लभ है.

उन्होंने सुशासन के लिए संचार, परिवहन और तकनीक को अपरिहार्य मानते हुए समाज के अंतिम आदमी को भी आधुनिकतम तकनीक से जोड़ने का भगीरथ यत्न किया जिसके सुफल कोरोना कालखंड में सबको प्राप्त हुए.गुणवत्तायुक्त शिक्षा और सुव्यवस्था से परिपूर्ण राजव्यवस्था किसी भी राष्ट्र और समाज की प्रगति का आधार है. भारत की प्रगति में इस दृष्टि से ये दोनों ही विभूतियां अद्वितीय और अविस्मरणीय हैं.

दोनों की विशेषता है- अपने वैचारिक विरोधियों का भी विश्वास पात्र होना. अटल बिहारी वाजपेयी की इस विश्वसनीयता की परीक्षा विरोधों से परिपूर्ण गठबंधन की सरकार में नेतृत्व में सर्वत्र हुई थी.

महामना मदन मालवीय अपने कालखंड में एक ऐसे हिंदू राजनेता के रूप में जाने जाते थे जिन पर द्वि-राष्ट्रवाद के प्रतिपादक राजनेता भी भरोसा करते थे. वे एक ऐसे ब्राह्मण पुरोहित के रूप में जाने जाते थे जिस पर ब्राrाणवाद के विरुद्ध संकल्प लेने वाले बाबासाहब भीमराव आंबेडकर को भी भरोसा था.

आज जब भारत की लोकतंत्रत्मक व्यवस्था में पक्ष-प्रतिपक्ष में विश्वास का संकट खड़ा है, राजसत्ता दखल के युद्ध में संवैधानिक संस्थाओं की गरिमा भी छिन्न-भिन्न की जा रही है, तो मालवीय जी और अटल जी की याद स्वाभाविक है.

उन मूल्यों की याद स्वाभाविक है जिसको आत्मसात कर दोनों ही महामानव अपने नितांत विरोधियों के भी विश्वास का केंद्र बनते थे. महामना का स्मरण उनकी विशेषताओं की खोज है जिस कारण गांधी, गोखले, नेहरू, सावरकर, हेडगेवार, गोलवलकर सब उन पर भरोसा करते थे. समस्त ब्राह्मणवादी व्यवस्था पर अविश्वास के होते हुए भी छुआछूत को अपने जीवन में समेटे हुए तिलकधारी, कथावाचक मालवीय जी पर डॉ. आंबेडकर को भी भरोसा था.

मालवीय जी और अटल जी ने अपने जीवन में कुछ भी छुपाया नहीं. अपनी आस्था, अपना विश्वास सब कुछ सबके सामने स्पष्टता से रखा. फिर भी पुरानी दिल्ली में अटल जी एक लोकप्रिय राजनेता थे. हिंदू राजनेता तथा द्वि-राष्ट्रवाद सिद्धांत के घनघोर विरोधी होने के बावजूद पाकिस्तान की अवाम में वे एक लोकप्रिय नेता थे.

1957 से लगातार जिस कांग्रेस के विरुद्ध वे लड़ रहे थे, 1971 के युद्ध में उसी कांग्रेस की नेता इंदिरा गांधी को दुर्गा कहने से भी नहीं हिचकिचाए.

राजनीतिक उदारता और हिंदुत्व की सांस्कृतिक निष्ठा महामना मदन मोहन मालवीय के जीवन का अभिन्न अंग थी. यही कारण था कि वे एक साथ कांग्रेस और हिंदू महासभा के अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे.

जहां गांधी जी महामना को अपना आदर्श बताते हैं, वहीं सावरकर जी मालवीय जी से परामर्श प्राप्त कर हिंदू राष्ट्र की अवधारणा को केंद्र में रखकर हिंदू महासभा की वैचारिकी का विस्तार करते हैं.

आज जब केवल विरोध के लिए विरोध, केवल हंगामे के लिए आंदोलन, अव्यवस्था के निर्माण के लिए प्रतिपक्ष का शोर-शराबा है, इस प्रकार के राजनीतिक पर्यावरण में भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था को एक कठिन स्थिति में ला दिया है.

ऐसे समय में महामना पंडित मदन मोहन मालवीय और उदारमना अटल बिहारी वाजपेयी की याद बरबस ही आती है. ये बड़े मन और ऊंचे सपने के ऐसे भारतीय थे जिनका स्मरण करने के साथ हर भारतीय के लिए 25 दिसंबर एक बड़ा दिन हो   जाता है.

टॅग्स :अटल बिहारी वाजपेयीइंडिया
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