प्रमोद भार्गव का ब्लॉग: कोरोना-काल में डॉक्टरों की मौत चिंताजनक
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: September 22, 2020 03:19 PM2020-09-22T15:19:15+5:302020-09-22T15:19:15+5:30
भारत में चिकित्सकों की असमय मौत इसलिए भी चिंताजनक है, क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन 1000 की आबादी पर एक डॉक्टर की मौजदूगी अनिवार्य मानता है, लेकिन भारत में यह अनुपात बेहद कम है.
भारत सरकार और राज्य सरकारें चिकित्साकर्मियों को कोरोना योद्धा का दर्जा दे रही हैं. इस सम्मान के वास्तव में वे अधिकारी हैं क्योंकि वे जान जोखिम में डालकर अपना काम कर रहे हैं. अलबत्ता यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि संसद में जब समाजवादी पार्टी के सांसद रविप्रकाश वर्मा ने सवाल पुछा कि अब तक देश में कितने चिकित्सक और चिकित्साकर्मियों की मौतें हुई हैं तो इसके उत्तर में स्वास्थ्य राज्य मंत्नी अश्विनी चौबे का उत्तर आश्चर्य में डालने वाला रहा. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार के पास कोरोना संक्र मण से प्राण गंवाने वाले चिकित्सकों के आंकड़े नहीं हैं, क्योंकि यह मामला केंद्र का विषय न होकर राज्य का विषय है.
निश्चित ही यह विषय राज्य का है, लेकिन राज्यों से आंकड़े जुटाना केंद्र के लिए कोई मुश्किल काम इस कम्प्यूटर युग में नहीं है. इसी तरह सरकार ने कोरोना काल में मृतक पुलिसकर्मियों और प्रवासी मजदूरों के आंकड़े देने में असमर्थता जता दी. हालांकि भारतीय चिकित्सा संगठन (आईएमए) ने अगले दिन ही कोरोना काल में सेवाएं देते हुए शहीद 382 चिकित्सकों की सूची जारी कर दी. आईएमए ने इन्हें त्याग की प्रतिमूर्ति और राष्ट्रनायक मानते हुए प्राण गंवाने वाले चिकित्सकों को शहीद घोषित करने और परिवार को मुआवजा देने की मांग भी की है.
यह सूची 16 सितंबर 2020 तक कोरोना काल के गाल में समाए चिकित्सकों की है. कोरोना से शहीद हुए चिकित्सकों की इस सूची में केवल एमबीबीएस डॉक्टर हैं. इनके अलावा आयुर्वेद, होम्योपैथी और अन्य वैकल्पिक चिकित्सा से जुड़े डॉक्टर भी कोरोना की चपेट में आकर मारे गए हैं. अभी तक कुल 2238 एमबीबीएस चिकित्सक कोविड-19 से संक्रमित हो चुके हैं. चिकित्सकों के प्राणों का इस तरह से जाना निकट भविष्य में चिकित्सकों की कमी को और बढ़ा सकता है.
इस सब के बावजूद स्वास्थ्यकर्मियों के हौसले पस्त नहीं हुए हैं. विपरीत परिस्थितियों में इलाज करना मुश्किल होने के बावजूद उनका मनोबल बरकरार है. जबकि अस्पतालों में विषाणुओं से बचाव के सुरक्षा उपकरण पर्याप्त मात्ना में नहीं हैं. इसके बावजूद डॉक्टर जान हथेली पर रखकर इलाज में लगे हैं. यह विषाणु कितना घातक है, यह इस बात से भी पता चलता है कि चीन में फैले कोरोना वायरस की सबसे पहले जानकारी व इसकी भयावहता की चेतावनी देने वाले डॉ. ली वेनलियांग की कोरोना से मौत हो गई.
भारत में चिकित्सकों की असमय मौत इसलिए भी चिंताजनक है, क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन 1000 की आबादी पर एक डॉक्टर की मौजदूगी अनिवार्य मानता है, लेकिन भारत में यह अनुपात बेहद कम है. 2015 में राज्यसभा को तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्नी जेपी नड्डा ने बताया था कि 14 लाख ऐलोपैथी चिकित्सकों की कमी है. अब यह कमी 20 लाख हो गई है. इसी तरह 40 लाख नर्सो की कमी है.