साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर का उग्र हिंदूत्व बीजेपी के राष्ट्रवाद को घायल कर रहा है!
By विकास कुमार | Updated: April 22, 2019 19:03 IST2019-04-22T19:01:18+5:302019-04-22T19:03:24+5:30
राष्ट्रवाद और हिंदूत्व को जोड़ने पर हिन्दू राष्ट्रवाद का समीकरण तैयार होता है. संघ और बीजेपी के वैचारिक गठबंधन ने भारतीय राजनीति में इस समीकरण को कई बार आजमाया है और परिणाम अद्भुत, अविश्वसनीय और अकल्पनीय मिले हैं.

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मध्यप्रदेश का भोपाल सीट, जहां दिग्विजय सिंह को सबक सिखाने के लिए बीजेपी ने साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को उम्मीदवार बनाया है. मालेगांव ब्लास्ट में मुकदमा चल रहा है लेकिन मकोका हटा लिया गया है. सुनील जोशी मर्डर केस में 2017 में बरी हो चुकी हैं. प्रज्ञा सिंह ठाकुर के पक्ष में माहौल बनाने के लिए देश भर के कार्यकर्ता भोपाल में जुटने लगे हैं.
शिवराज सिंह चौहान ने साध्वी के राष्ट्रीय कर्त्तव्य का वर्णन करते हुए इनकी उम्मीदवारी का एलान किया था. कहा तो ये भी जा रहा है कि शिवराज सिंह चौहान ने भोपाल सीट से ख़ुद का पीछा छोड़ाने के लिए साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को आगे किया जिसका स्थानीय स्तर पर नेताओं ने विरोध भी किया था.
लेकिन किसी भी उम्मीदवार के नाम पर चर्चा बीजेपी के चुनाव समिति में ही लिया जाता है जिसमें नरेन्द्र मोदी सहित राजनाथ सिंह और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह भी हैं. बात जब प्रज्ञा सिंह ठाकुर की उम्मीदवारी का हो तो चर्चा भी गंभीर हुई होगी.
प्रज्ञा सिंह ठाकुर की उम्मीदवारी के एलान से पहले ही जिस तरह से पीएम मोदी ने महाराष्ट्र के वर्धा में कांग्रेस को हिन्दू आतंकवाद का खलनायक घोषित किया था उससे लगने लगा था कि पार्टी अब राष्ट्रवाद के अलावा हिंदूत्व की भी जोर-आजमाइश करेगी. बार-बार एक ही पाकिस्तान, सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट का नाम सुन कर दर्शक भी बोर होने लगे थे.
दिग्विजय सिंह की एंटी-हिन्दू छवि का उभार
दिग्विजय सिंह ने नर्मदा यात्रा और सॉफ्ट हिंदूत्व की छवि के जरिये जो डैमेज कंट्रोल किया था उसको प्रज्ञा सिंह ठाकुर की उम्मीदवारी ने धूल दिया है. जनता एक बार फिर एक दशक पहले के दिग्विजय सिंह का साक्षात्कार करना चाहती है जो विभिन्न मंचों पर हिन्दू आतंकवाद की थ्योरी को प्रूव करते हुए देखे गए थे. उन्होंने मुंबई अटैक में आरएसएस की भूमिका तलाशने के लिए तमाम झूठे प्रपंच गढ़ने का प्रयास किया था.
आर्थिक मोर्चों पर उम्मीद के मुताबिक परिणाम नहीं मिलने के कारण बीजेपी के लिए साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को उतारने का मौका भी था और दस्तूर भी. राष्ट्रवाद और हिंदूत्व को जोड़ने पर हिन्दू राष्ट्रवाद का समीकरण तैयार होता है.
संघ और बीजेपी के वैचारिक गठबंधन ने भारतीय राजनीति में इस समीकरण को कई बार आजमाया है और परिणाम अद्भुत, अविश्वसनीय और अकल्पनीय मिले हैं. लेकिन इस बार माहौल कुछ और था.
पिछले 5 वर्षों में हिंदूत्व के अधिकांश मुद्दों पर खामोश रहने वाली मोदी सरकार राष्ट्रवाद के उभार का प्रोजेक्ट लांच कर चुकी थी लेकिन इसी बीच प्रज्ञा ठाकुर ने शहीद हेमंत करकरे को लेकर भावनाओं में बह गईं और अपने ऊपर हुए जुल्म की दास्तान सुनाते-सुनाते श्राप और सर्वनाश का जिक्र किया जिससे बीजेपी ख़ुद के नैरेटिव में फंस गई.
पार्टी नेताओं ने उन्हें संभल कर बोलने की हिदायत तो दी है लेकिन प्रज्ञा सिंह ठाकुर का हिंदूत्व सारे बाउंड्री को तोड़ रहा है.