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ब्लॉग: बीमार झीलें कहीं समाज को भी बीमार न कर दें !

By पंकज चतुर्वेदी | Updated: January 7, 2025 06:35 IST

जैसे-जैसे इंसान झीलों के प्रति निर्मोही हो रहा है, अपने साथ प्रकृति की इन अमूल्य धरोहरों के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा कर रहा है.

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कब्जे के लिए सुखाई जाती, घरेलू व अन्य निस्तार के कारण बदबू मारती, पानी की आवक के रास्ते में खड़ी रुकावटों से सूखती, सफाई न होने से  उथली होती और जलवायु परिवर्तन से जूझती दुनियाभर की झीलें बीमार हो रही हैं. इंसानों की तरह ही बीमार और इसका असर समूची प्रकृति के साथ-साथ इंसान  पर भी पड़ रहा है.

अंतरराष्ट्रीय पत्रिका ‘अर्थ फ्यूचर’ के ताजा अंक में प्रकाशित शोध में चेतावनी दी गई है कि जिस तरह मानव-स्वास्थ्य के लिए रणनीति बनाई जाती है, ठीक उसी तरह झीलों की तंदुरुस्ती के लिए व्यापक नीति जरूरी है. इसके लिए अनिवार्य है कि झीलों को भी प्राण वाले जीव की मानिंद समझा जाए.

इस शोध में 10 हेक्टेयर से अधिक फैलाव वाली दुनिया की 14,27,688 झीलों की सेहत का आकलन किया है, जिनमें भारत की 3043 जल निधियां भी हैं. जिन झीलों के आसपास  खेती हो रही है, वहां रासायनिक खाद और अन्य पोषक तत्व  अधिक हैं और इससे  झीलों में शैवाल बढ़ने से  झीलों की सेहत पर विपरीत असर पड़ रहा है.

यह समझना होगा कि झीलें जीवित प्रणालियां हैं, जिन्हें सांस लेने के लिए ऑक्सीजन, प्रसन्न रहने के लिए स्वच्छ पानी, अपने भीतर जीव-जंतु जीवित रखने के लिए संतुलित ऊर्जा और पोषक तत्वों की आपूर्ति की आवश्यकता होती है. जैसे-जैसे इंसान झीलों के प्रति निर्मोही हो रहा है, अपने साथ प्रकृति की इन अमूल्य धरोहरों के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा कर रहा है.

इंसान की ही तरह झीलें विभिन्न रोगों की शिकार हो रही हैं, जैसे- बुखार आना अर्थात अधिक गरम होना, परिसंचरण (जैसे इंसान के शरीर में रक्त संचरण), श्वसन, पोषण और चयापचय संबंधी मुद्दों से लेकर संक्रमण और विषाक्तता तक कई झील स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं. यदि बरसात कम होगी, गर्मी अधिक होने से वाष्पीकरण अधिक होगा और उथलेपन से उनकी भंडारण क्षमता घटेगी तो झील की सेहत गड़बड़ाएगी.  

भारत का हर तालाब अपने आसपास भूवैज्ञानिक इतिहास और पर्यावरणीय महत्व की एक अनूठी कहानी समेटे हुए है. स्वस्थ झील-तालाब वैश्विक सतत विकास लक्ष्यों को पाने की राह में अतुलनीय पारिस्थितिकी तंत्र होते हैं. यदि तालाब को बीमार होने से बचाने या फिर बीमार झील के उपचार की बेहतर रणनीति न बनाई जाए तो उसके आसपास रहने वाले लोग और वन्य जगत भी अस्वस्थ हो जाते हैं.

आज आवश्यकता है कि देश के हर जलाशय की साल में दो बार जल गुणवत्ता की जांच हो और यदि किसी तरह का असंतुलन हो तो  त्वरित  उपचार किया जाए. किसी भी तालाब के आसपास पारंपरिक पेड़ों की प्रजातियों, उन  पर बसने  वाले पक्षियों  के पर्यावास और जल निधि में मछली या अन्य उत्पाद उगाने के लिए किसी भी तरह के रासायनिक कीटनाशक या पोषक के इस्तेमाल पर रोक लगे.

टॅग्स :River Tissue Culture CenterIndiaWater Resources Department
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