ब्लॉग: एक टीवी डिबेट और महंगाई पर कांग्रेस-भाजपा के प्रतिनिधियों का आंकड़ों का खेल

By विश्वनाथ सचदेव | Published: September 9, 2022 12:36 PM2022-09-09T12:36:21+5:302022-09-09T12:36:21+5:30

आंकड़े झूठ नहीं बोलते यह बात सच है लेकिन ये भी एक सच्चाई है कि केवल आंकड़ों से हकीकत को नहीं समझा जा सकता है. कई बार सही आंकड़ों को पेश करने के तरीके से पूरी बात बदल जाती है.

Political parties bjp congress are using data in their favour | ब्लॉग: एक टीवी डिबेट और महंगाई पर कांग्रेस-भाजपा के प्रतिनिधियों का आंकड़ों का खेल

कांग्रेस-भाजपा के प्रतिनिधियों का आंकड़ों का खेल

लगभग आधी सदी पहले की बात है. नागपुर विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित वाद-विवाद प्रतियोगिता में भाग लेने का अवसर मिला था. अपने कॉलेज की ओर से मेरे साथी वक्ता अरुण कुमार थे, जो बाद में ‘पानी बाबा’ के नाम से देश भर में पहचाने गए. अरुण अच्छे वक्ता तो थे ही, आंकड़ों की मदद से उन्होंने खूब तालियां बटोरीं. मेरा नंबर आया तो मैंने भी आंकड़ों की मदद ली. बहरहाल, अरुण उस प्रतियोगिता में प्रथम रहे और मैं द्वितीय. निश्चित रूप से हमारे आंकड़ों ने निर्णायकों को प्रभावित किया होगा. 

बाद में जब अरुण कुमार ने मुझसे पूछा कि ये आंकड़े तुमने कहां से खोजे थे तो मैंने मुस्कुराते हुए जवाब दिया था, ‘जहां से तुम लाए थे.’ फिर हम दोनों को हंसी आ गई थी. स्पष्ट है, कोई ठोस आधार नहीं था हम दोनों के आंकड़ों का. यह कहना तो सही नहीं होगा कि हमारे आंकड़े गलत थे, पर हकीकत यह भी थी कि हम दोनों ने ही आंकड़ों को संदर्भ देने में आजादी बरती थी.

एक टी.वी. डिबेट में राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को आंकड़ों का ऐसा ही खेल खेलते देखकर अचानक मुझे अपने कॉलेज-दिनों की यह घटना याद आ गई. मुद्दा महंगाई का था और भाजपा और कांग्रेस के प्रवक्ता आंकड़े देकर अपने-अपने पक्ष में दावे प्रस्तुत कर रहे थे. कांग्रेस के प्रवक्ता ने 8 साल पहले की महंगाई का हवाला देते हुए आज की स्थिति से उसकी तुलना की. उसने आंकड़े देकर बताया कि जरूरत की चीजों के दाम तब की तुलना में आज बहुत ज्यादा हैं. 

इसमें पेट्रोल-डीजल की कीमतों का उदाहरण सबसे मौजूं है. तब पेट्रोल की प्रति लीटर दर सत्तर रुपए के आसपास थी और आज सौ के आस-पास है. इस संदर्भ में दिए गए बाकी आंकड़े भी स्पष्ट बता रहे थे कि पिछले आठ सालों में जीवनावश्यक वस्तुओं के दाम लगातार बढ़े हैं.  आम आदमी की जिंदगी लगातार दूभर हो रही है.

दूसरी तरफ भाजपा के प्रवक्ता भी आंकड़ों से लैस होकर आए थे. वे प्रतिशत में बात कर रहे थे. जैसे, मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार के अलग-अलग सालों में महंगाई की वृद्धि-दर की प्रतिशत क्या थी और नरेंद्र मोदी की सरकार के सालों में दर का प्रतिशत क्या रहा. स्पष्ट है, प्रवक्ता को प्रतिशत में बात करना फायदे का तरीका लग रहा था.

बहरहाल, महंगाई की मार में पिसते आदमी की कठिनाइयों को समझने के लिए आंकड़ों की जरूरत नहीं है. जो सामने दिख रहा है उसे ईमानदारी से देखने भर की जरूरत है. आंकड़े झूठ नहीं बोलते यह कहना सच है, पर यह भी गलत नहीं है कि सिर्फ आंकड़ों के सहारे हकीकत को नहीं समझा जा सकता है.

 

Web Title: Political parties bjp congress are using data in their favour

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