कमजोरी से निपटने के लिए नए रास्तों की आवश्यकता, वोट चोरी का मुद्दा उछालते

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: September 22, 2025 05:48 IST2025-09-22T05:48:01+5:302025-09-22T05:48:01+5:30

‘जेन-जी’ को उछाला, जिसे नेपाल ने पहचान दी. अब प्रधानमंत्री मोदी को कमजोर प्रधानमंत्री कहकर आक्रामक हो चले हैं.

pm narendra modi vs rAHUl gandhi New ways needed address this vulnerability | कमजोरी से निपटने के लिए नए रास्तों की आवश्यकता, वोट चोरी का मुद्दा उछालते

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Highlightsभारतीय जनता पार्टी(भाजपा) हमेशा कहती आई है कि मोदी हैं तो मुमकिन है. कांग्रेस ने अनेक अभियान चलाए, मगर वे सफल नहीं हुए. प्रधानमंत्री मोदी पर हमले का एक और अवसर आ गया है.

ऐसा लगता है कि लोकसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमले का कोई भी अवसर छोड़ना नहीं चाहते हैं. वैसे भी जब कभी चुनाव समीप हों तो उनकी सक्रियता बढ़ जाती है. हालांकि वह अपने अंदाज में निराले ही रहकर कुछ ऐसी बात कहते हैं, जो भारतीय राजनीति में नई लगती है. पिछले कुछ दिनों से वह वोट चोरी का मुद्दा उछालते रहे हैं. उसके बाद उन्होंने ‘जेन-जी’ को उछाला, जिसे नेपाल ने पहचान दी. अब प्रधानमंत्री मोदी को कमजोर प्रधानमंत्री कहकर आक्रामक हो चले हैं.

दरअसल भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) हमेशा कहती आई है कि मोदी हैं तो मुमकिन है. जिसके खिलाफ कांग्रेस ने अनेक अभियान चलाए, मगर वे सफल नहीं हुए. अब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के एच-1बी वीजा के लिए हर वर्ष एक लाख डॉलर (लगभग 88 लाख रुपए) आवेदन शुल्क लगाने के बाद प्रधानमंत्री मोदी पर हमले का एक और अवसर आ गया है.

जिसके लिए राहुल गांधी अपनी पुरानी टिप्पणी को दोहराते हुए प्रधानमंत्री मोदी को ‘कमजोर प्रधानमंत्री’ बताकर दूसरे देशों में भारतीय हितों के लिए खड़े होने में विफल रहने का आरोप लगा रहे हैं. दरअसल आने वाले नवंबर माह में बिहार विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं. उसके बाद असम, केरल, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में चुनाव होंगे.

इन सभी राज्यों में भाजपा का चेहरा प्रधानमंत्री मोदी ही रहेंगे. इसलिए उन पर शुरुआत से ही हमले कर चुनावी वातावरण को पक्ष में किया जा सकता है. जैसा वह राफेल, चौकीदार चोर है, गब्बर सिंह टैक्स, जाति जनगणना और ईवीएम आदि के नाम पर करते आए हैं. किंतु सभी मामलों में उन्हें आंशिक सफलता ही मिली है.

उन्होंने चंद सीटों के बढ़ने को अपनी ताकत समझ लिया है. हालांकि इन मुद्दों को सत्ता परिवर्तन के लिए उठाया गया था. राजनीति को समझने वाले यह जानते हैं कि चुनाव लड़ने का आधार क्या होता है. उन्हें मालूम होता है कि स्थानीय मुद्दों के आगे राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मुद्दों के हवा होने में देर नहीं लगती है.

बिहार चुनावों में भी शिक्षा, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और अपराध प्रमुख रूप से हावी हैं. कुछ हद तक सत्ताधारी भाजपा-जदयू गठबंधन इन्हीं मुद्दों पर सरकार के प्रयासों को झोंक रहा है. सब जानते हैं कि दुनिया के हालात लगातार बदल रहे हैं. यूरोप, अमेरिका अथवा एशिया सभी जगह नई-नई समस्याएं उभर रही हैं, जिनमें संयम रखकर भविष्य सुधारा जा सकता है. नए वीजा कानून का असर अनेक देशों पर पड़ेगा.

इसलिए यह कहा नहीं जा सकता कि हर देश का नेतृत्व कमजोर है. बदली स्थिति से निपटने के लिए विकल्प ढूंढ़ने होंगे. प्रधानमंत्री मोदी पहले ही आत्मनिर्भर भारत का नारा देकर दूसरों पर निर्भरता को अपनी कमजोरी बता रहे हैं. आवश्यकता यही है कि आपदा को अवसर समझकर भारत में नए अवसर खोले जाएं. जिन्हें देखकर निवेशक आकर्षित हों और भारतीयों के लिए नए द्वार खुलें. कमजोरी और मजबूती के चुनावी बयानों से देश को मजबूत नहीं बनाया जा सकता है. उसके सम्मिलित प्रयास जरूरी हैं.

Web Title: pm narendra modi vs rAHUl gandhi New ways needed address this vulnerability

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