PM Modi in Maharashtra: प्रधानमंत्री ने महाराष्ट्र में 10 मेडिकल कॉलेजों का ऑनलाइन उद्घाटन करने के साथ-साथ 7 हजार करोड़ रु. की विकास योजनाओं की आधारशिला भी रखी. विपक्ष इसे निकट भविष्य में महाराष्ट्र में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर उठाया गया कदम बता सकता है लेकिन इस तथ्य से कोई इनकार नहीं कर सकता कि ये परियोजनाएं राज्य के सर्वांगीण विकास की गति को रफ्तार देने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगी. शिरडी में नए एकीकृत टर्मिनल भवन के निर्माण तथा नागपुर में डॉ. बाबासाहब आंबेडकर अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे के उन्नयन से इन क्षेत्रों में पर्यटन, हवाई संपर्क, बुनियादी ढांचे तथा उद्योगों के विकास में तेजी आएगी एवं 10 मेडिकल कॉलेजों के उद्घाटन से गरीब तबकों को किफायती दरों पर गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा सेवा उपलब्ध होने लगेगी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले दस वर्षों से बुनियादी क्षेत्रों के विकास तथा चिकित्सा सेवाओं के विस्तार को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रहे हैं. आज मोदी ने मुंबई, नासिक, जालना, अमरावती, बुलढाणा, वाशिम, भंडारा, हिंगोली और अंबरनाथ में मेडिकल कालेजों का उद्घाटन किया. इससे महाराष्ट्र में हर वर्ष एमबीबीएस की लगभग 900 सीटें भी बढ़ेंगी.
इसके फलस्वरूप देश में डॉक्टरों की कमी को दूर करने तथा पिछड़े इलाकों के युवाओं को भी चिकित्सक बनने का मौका मिलेगा. इनमें मुंबई को अगर छोड़ दिया जाए तो नाशिक, जालना, अमरावती, गढ़चिरोली, बुलढाणा, वाशिम, भंडारा, हिंगोली और अंबरनाथ चिकित्सा के लिहाज से आज भी बहुत पिछड़े हुए हैं.
इन दस जिलों में से आधे से ज्यादा में आदिवासियों की संख्या बहुत अधिक है. खासकर विदर्भ में अमरावती, भंडारा और गढ़चिरोली जैसे जिलों में पिछड़ापन बहुत ज्यादा है और यहां आदिवासी बड़ी तादाद में रहते हैं. यातायात के साधन आज भी इन जिलों के दुर्गम इलाकों में सुलभ नहीं हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में जो प्राथमिक या उपजिला स्वास्थ्य केंद्र हैं, वहां अक्सर डॉक्टर तथा दवाएं उपलब्ध नहीं रहते एवं चिकित्सा के आधुनिक उपकरण तो बिल्कुल भी नहीं हैं. एक्स-रे तथा खून की जांच जैसी मामूली चिकित्सा जांच के लिए ग्रामीणों को शहरों की ओर रुख करना पड़ता है.
प्रसूति तथा विभिन्न बीमारियों के लिए दूर-दराज के क्षेत्रों से ग्रामीण जिला अस्पताल आते हैं. जिला अस्पतालों में भी अच्छी गुणवत्ता की चिकित्सा नहीं होती. मजबूरन विदर्भ, मराठवाड़ा, पश्चिम महाराष्ट्र या राज्य के अन्य इलाकों से लोगों को सैकड़ों मील की दूरी तय कर नागपुर, मुंबई, पुणे, छत्रपति संभाजीनगर जैसे बड़े शहरों में निजी अस्पतालों या सरकारी मेडिकल कॉलेजों की शरण में आना पड़ता है.
निजी अस्पतालों में इलाज का खर्च वहन करना गरीब ग्रामीणों तथा मध्यमवर्गीय लोगों के बस की बात नहीं है. सरकारी अस्पताल देश की आबादी के अधिकांश हिस्से के लिए संजीवनी की तरह हैं लेकिन सैकड़ों मील की दूरी तय कर मेडिकल कॉलेजों तक पहुंचते-पहुंचते मरीज की हालत बहुत गंभीर हो जाती है और कई बार तो वह रास्ते में ही दम तोड़ देता है.
प्रधानमंत्री ने आज जिन शहरों में मेडिकल कॉलेजों का उद्घाटन किया, उनमें मुंबई को छोड़ दिया जाए तो बाकी नगरों में चिकित्सा सेवाओं को बहुत उत्कृष्ट किस्म की और किफायती नहीं कहा जा सकता. इन क्षेत्रों में दशकों से मेडिकल कॉलेज स्थापित करने की मांग हो रही है. इस मांग को पूरा करने के लिए पिछले कुछ वर्षों में ठोस कदम उठाए गए.
मोदी सरकार ने देश के प्रत्येक जिले में मेडिकल कॉलेज स्थापित करने का नीतिगत फैसला किया है और महाराष्ट्र में दस नए मेडिकल कॉलेज उसी नीति का हिस्सा हैं. देश में आम आदमी के लिए उपलब्ध सरकारी चिकित्सा सेवा के ढांचे की जजर्रता पर लंबे समय से सवाल उठाए जाते रहे हैं लेकिन उसे मजबूत बनाने की दिशा में ठोस कदमों का अभाव दिखाई दिया.
सरकारी चिकित्सा सेवा की बदहाली के कारण ही निजी अस्पताल फलने-फूलने लगे और आर्थिक क्षमता न होते हुए भी गरीब तथा मध्यमवर्गीय शहरीजनों तथा ग्रामीणों को निजी अस्पतालों में जाना पड़ता है लेकिन एक उम्मीद बंधी है कि स्थिति धीरे-धीरे बदलेगी. कोविड-19 महामारी के दौरान हमारी चिकित्सा व्यवस्था में जो कमियां उजागर हुई थीं, उन्हें दूर करने के लिए सरकार ने गंभीरता से प्रयास किए.
उसके फलस्वरूप पिछले कुछ वर्षों में जिला स्तर पर सरकारी मेडिकल कॉलेजों की संख्या में तेजी से वृद्धि होने लगी है. इससे मुफ्त या बेहद अल्प दरों पर ग्रामीण इलाकों के लोगों को उत्कृष्ट इलाज उपलब्ध हो सकेगा. विकास परियोजनाओं को हर बार चुनावी हानि-लाभ के तराजू पर विपक्ष को तौलना नहीं चाहिए. यह देखना ज्यादा महत्वपूर्ण है कि उससे प्रदेश के विकास को कितनी गति मिलेगी तथा आम आदमी को कितना फायदा होगा.