पीयूष पांडे का ब्लॉग: 'क्रॉस कनेक्शन' से ‘कॉल ड्रॉप’ तक का खेल
By पीयूष पाण्डेय | Published: September 19, 2020 01:44 PM2020-09-19T13:44:09+5:302020-09-19T13:44:09+5:30
‘क्रॉस कनेक्शन’ का सुख नहीं पा पाने वाले कभी-कभी खुद ही किसी अनजान नंबर पर फोन कर लेते थे. गर्लफ्रेंड विहीन कई युवा इस तरह भी ‘सच्चे दोस्त’ की तलाश किया करते थे.
जिस तरह स्वार्थ के एक्सचेंज से निकलने वाली सत्ता की लाइन पर धुर विरोधी राजनीतिक दलों का इन दिनों क्रॉस कनेक्शन हो जाता है, उसी तरह एक जमाने में लैंडलाइन टेलीफोन पर लोगों का क्रॉस कनेक्शन खूब जुड़ता था. कभी-कभी वार्ता इतनी दिलचस्प हो जाती थी कि लोग क्रॉस कनेक्शन पर ही आधा-एक घंटा बतिया लेते थे.
‘क्रॉस कनेक्शन’ का सुख नहीं पा पाने वाले कभी-कभी खुद ही किसी अनजान नंबर पर फोन कर लेते. गर्लफ्रेंड विहीन कई युवा इस तरह भी ‘सच्चे दोस्त’ की तलाश किया करते थे. उन दिनों बंदे खूब फालतू हुआ करते थे. इसे यूं भी कह सकते हैं कि चूंकि उनके हाथ में मोबाइल फोन नहीं हुआ करता था, इसलिए उन्हें फालतू होने का भ्रम होता था.
आजकल मामला उल्टा है. आजकल विकट फालतू लोगों को मोबाइल फोन हाथ में होने से भ्रम होता है कि वे बहुत व्यस्त हैं. मोबाइल फोन का आविष्कार करने वाला भी सोचता होगा कि जिस काम के लिए इस उपकरण का आविष्कार किया, वो काम ही सबसे कम होता है. अर्थात वार्तालाप. बाकी मोबाइल फोन पर फिल्में देखी जा रही हैं.
तस्वीरें खींची जा रही हैं. वीडियो गेम्स खेले जा रहे हैं. स्टिंग ऑपरेशन हो रहे हैं. इन फोनों के जरिये एक विशाल व्हाटसएप यूनिवर्सिटी चल रही है, जिसके ज्ञान की गंगा में डूबते-उतरते लोग कब लड़ाई-झगड़ा करा देते हैं, उन्हें खुद नहीं मालूम रहता.
वैसे मोबाइल पर वार्ता कम होने की एक वजह कॉल ड्रॉप की समस्या भी है. मोबाइल फोन का आविष्कार इसलिए हुआ था ताकि बंदा कहीं भी, कभी भी घूमते-घूमते बात कर सके. लेकिन अब हाल यह है कि बंदा घर-दफ्तर के जिस कोने में नेटवर्क पकड़ लेता है, वहीं उकड़ू बैठकर बात करता दिखता है.
मेरे एक मित्न के घर का हाल यह है कि उनके टॉयलेट में एक बड़ी खिड़की है, लिहाजा वहीं नेटवर्क सबसे अच्छा आता है. इस संकट के चलते वह अक्सर टॉयलेट में ही पाए जाते हैं और कई बार उनके घर में गृह युद्ध सरीखे हालात बन जाते हैं.
जिस तरह सरकार मान चुकी है कि गरीबी या बेरोजगारी की समस्या हल नहीं हो सकती, वैसे ही कॉल ड्रॉप की समस्या हल नहीं हो सकती. लोगों ने भी मान लिया है कि कॉल ड्रॉप की समस्या मोबाइल सिम के साथ मिलने वाला एक तोहफा है.
चालाक लोग इस आपदा को अवसर में तब्दील कर चुके हैं. बॉस फोन पर ज्यादा परेशान करता है तो वे फोन काटकर कॉल ड्रॉप के सिर ठीकरा फोड़ देते हैं. चूंकि बॉस स्वयं अपने बॉस के खिलाफ इसी हथकंडे का प्रयोग करता है, लिहाजा वो ज्यादा कुछ कह नहीं पाता.
मेरे एक दार्शनिक मित्न ने कॉल ड्रॉप की समस्या में दर्शन खोज लिया है. वे कहते हैं कि कॉल ड्रॉप रूपी फीचर हमें आगाह करता है कि जब बोलना मौन से बेहतर हो तभी बोलो.