पीयूष पांडे का ब्लॉग: जिंदगी में भांति-भांति के एनकाउंटर

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: July 25, 2020 12:26 IST2020-07-25T12:26:23+5:302020-07-25T12:26:23+5:30

महंगाई से मुठभेड़, बच्चों की मोटी फीस भरकर दोहरा होते हुए स्कूल की तानाशाही से एनकाउंटर, ईएमआई से एनकाउंटर, कोरोना से एनकाउंटर.

Piyush Pandey's blog: A lot of encounters in life | पीयूष पांडे का ब्लॉग: जिंदगी में भांति-भांति के एनकाउंटर

सांकेतिक तस्वीर (File Photo)

एनकाउंटर का हिन्दी में शाब्दिक अर्थ होता है मुठभेड़. शब्दकोष में इसके अन्य अर्थ लिखे हैं- आकस्मिक भेंट होना, आमना-सामना होना वगैरह. इन अर्थों में एनकाउंटर बड़ा रूमानी शब्द है.

राह चलते किसी कन्या से एनकाउंटर हो जाए, जिससे भविष्य में प्रेम की संभावना हो तो इस एनकाउंटर को क्या कहेंगे? लेकिन, गुंडों को टपकाते-टपकाते पुलिस ने एनकाउंटर शब्द के कई दूसरे अर्थों को भी टपका दिया है. अब एनकाउंटर का मतलब गुंडों की पुलिस से मुठभेड़ है.

लेकिन, गौर से देखिए तो हर बंदा जहां है, वहां मुठभेड़ में उलझा है. आम आदमी की तो जिंदगी ही एनकाउंटर से भरी पड़ी है. महंगाई से मुठभेड़, बच्चों की मोटी फीस भरकर दोहरा होते हुए स्कूल की तानाशाही से एनकाउंटर, ईएमआई से एनकाउंटर, कोरोना से एनकाउंटर.

दफ्तर में बॉस से एनकाउंटर. कनिष्ठ भले विकास दुबे की तरह सरेंडर कर दे लेकिन बॉस के मन में आ गया कि एनकाउंटर करना है तो प्रमोशन का, वेतन का, छुट्टी का, छूट का सबका एनकाउंटर होकर रहता है.

आम आदमी की जिंदगी में इतने एनकाउंटर होते हैं कि एक अच्छी खासी फिल्म बन जाए. लेकिन जिन संघर्षों में जीकर आम आदमी खुद को बड़ा तुर्रम खां समझता है, उसे बॉलीवुड तुच्छ समझता है. बॉलीवुड को आम आदमी के एनकाउंटर बड़े फालतू लगते हैं, जिसमें न रोमांच है, न सनसनी.

खैर, अपन को क्या. आखिर, हिंदुस्तान ऐसा देश है, जहां ठेकेदार एक बार ठेका हथिया ले तो उसके बाद उस ठेके के वक्त पर पूरा होने का भी ठेका नहीं लेता. अपन काहे दूसरों की मुठभेड़ का दर्द बताएं? अपन लेखक हैं और लेखक होना ही अपने आप में जिंदगी से मुठभेड़ है.

उस पर हिंदी का लेखक होना तो जिंदगी के साथ सबसे खतरनाक टाइप का एनकाउंटर है. करेला नीम चढ़ा ये कि लेखक बिरादरी में अपन कथित व्यंग्यकार हैं.

एक व्यंग्यकार व्यंग्य लिखने के लिए सबसे पहले विसंगति से मुठभेड़ करता है. विसंगति को पीट-पाटकर जैसे तैसे अपने कब्जे में लेकर उस पर व्यंग्य लिखता है तो फिर संपादक से मुठभेड़ करता है.

भाग्य से रचना बड़े समाचार पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हुई है तो ठीक है, अन्यथा छोटे-मोटे  संस्थानों से रचना का पारिश्रमिक पाने के लिए अलग मुठभेड़ करनी होती है.

इस बीच, लेखक का अपनी पुस्तक के प्रकाशन के लिए प्रकाशक से एनकाउंटर होता है. ये एनकाउंटर जेब पर भारी पड़ता है. पुस्तक प्रकाशित हो जाए तो पुरस्कार के लिए निर्णायक मंडल से मुठभेड़ होती है.

90 फीसदी मुठभेड़ों में जान भले न जाए, नोट जाते हैं. दुर्भाग्य से एक लेखक के जीवन के एनकाउंटर को कोई न्यूज चैनल कभी नहीं दिखाता.

Web Title: Piyush Pandey's blog: A lot of encounters in life

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