पीयूष पांडे का ब्लॉग: कोरोना से साक्षात्कार
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: March 21, 2020 10:05 AM2020-03-21T10:05:44+5:302020-03-21T10:05:44+5:30
सीएए, एनआरसी, एनपीआर जैसे तमाम मुद्दे अब कोरोना वायरस की चपेट में आ गए हैं. कोरोना के इरादे और भविष्य की योजनाओं को लेकर मैंने भी उसका एक्सक्लूसिव इंटरव्यू किया.
विपत्तियों का अपना एक्सक्लूसिव बाजार होता है. विपत्ति आते ही जितनी तेजी से दानवीर मैदान में नहीं कूदते, उससे चौगुनी रफ्तार से लूटवीर कूद पड़ते हैं. धंधेबाजों के लिए मार्केट में आई हर नई आपदा खुशियों की सौगात लाती है. उन्हें मालूम होता है कि हर नई विपत्ति ऐसे शेयर के समान है, जिसका सेंसेक्स ऊपर ही जाना है.
अब कोरोना को लीजिए. सारी दुनिया कोरोना का रोना रो रही है, और धंधेबाज खुशी में ऐसे झूम रहे हैं, जैसे पहले आठ-दस चरणों में लगातार पिछड़ने वाला नेता आखिरी राउंड की काउंटिंग में आगे निकलने के बाद झूमता है. जिस तरह हर शुक्रवार को रिलीज होने वाली फिल्म पिछली फिल्म के दर्शक कम कर देती है, उसी तरह हर नई समस्या पिछली समस्याओं की टीआरपी डाउन कर देती है. सीएए, एनआरसी, एनपीआर जैसे तमाम मुद्दे अब कोरोना वायरस की चपेट में आ गए हैं. कोरोना के इरादे और भविष्य की योजनाओं को लेकर मैंने भी उसका एक्सक्लूसिव इंटरव्यू किया.
सवाल-आप छाए हैं. कैसा लग रहा?
जवाब- अपनी लोकप्रियता देखकर किसे अच्छा नहीं लगता. इंटरनेशनल ब्रांड बनकर अच्छा लग रहा है.
सवाल- लेकिन आप बीमारी फैला रहे हैं. ये अच्छी बात नहीं है.
जवाब- तुम इंसानों के यहां अभी भी स्कूलों में गीता पढ़ाने को लेकर विवाद है. लेकिन हमने पैदा होते ही गीता सार समझ लिया-कर्म कर, फल की चिंता मत कर. तो हमारा पूरा समाज कर्म कर रहा है.
सवाल- लेकिन आप कुछ देशों के लोगों को ज्यादा सता रहे हैं.
जवाब-ये निराधार आरोप है. कोरोना वायरस धर्म निरपेक्ष, शर्म निरपेक्ष, राष्ट्र निरपेक्ष और शिकार निरपेक्ष है.
सवाल- लेकिन आप भारत तब आए, जब बच्चों के इम्तिहान चल रहे हैं. ये ठीक नहीं.
जवाब- कल करे सो आज कर, आज करे सो अब. ये आपके ही कबीरदास जी ने कहा है. मुहूर्त देखकर काम करने की बीमारी इंसानों को होती है, वायरस को नहीं.
सवाल- लेकिन जान लेना तो अच्छी बात नहीं है.जवाब- हमारा पहला मकसद लोगों को अस्पताल पहुंचाना ही होता है. हम दरअसल राष्ट्र की समृद्धि में योगदान भी देना चाहते हैं. क्योंकि पीड़ितों की वजह से अस्पतालों का, दवाइयों की दुकानों का टर्नओवर बढ़ता है. इससे देश की जीडीपी बढ़ती है. कुछ लोग चल बसते हैं तो अपनी गलती की वजह से. वक्त पर अस्पताल न पहुंचकर, खुद डॉक्टर बनकर और व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी की बातों पर यकीन कर वे खुद अपनी जान लेते हैं.
सवाल- कब तक सताएंगे?
जवाब- जब तक तुम लोग सतर्क रहना नहीं सीख जाते.