पुस्तकों से लोगों की दूरियां बढ़ना ठीक नहीं, बच्चे से लेकर बूढ़े तक सबकी पहुंच इंटरनेट और स्मार्टफोन तक
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: July 31, 2025 03:22 IST2025-07-31T03:22:01+5:302025-07-31T03:22:51+5:30
परीक्षाओं के दिनों में अपनी छतों पर घूम-घूम कर किताबें हाथ में लेकर पढ़ते थे क्योंकि कमरों में बाकी कामकाज चलते थे तो खुली हवा में पढ़ने से मन की एकाग्रता बढ़ती थी.

सांकेतिक फोटो
किरण चोपड़ा
मानवीय जीवन में और देश के विकास में जो लंबी यात्रा चल रही है उसमें सबसे बड़ा योगदान पुस्तकों का है. हमें कुछ भी सिखाने का काम पुस्तकें करती रही हैं. धर्म-कर्म, संगीत, साहित्य, विज्ञान या किसी भी अन्य विषय पर जो सदियों से लिखा जा रहा है यह सब कुछ पुस्तकें ही सिखलाती हैं. हमारी गौरवपूर्ण परंपरा का एक बड़ा हिस्सा किताबें ही रही हैं.
आज मैं व्यक्तिगत तौर पर इस बात से बड़ी आहत हूं कि किताबें सामाजिक जीवन से लुप्त हो रही हैं. मुझे अपने स्कूल-कॉलेज के दिन याद आते हैं जब हम परीक्षाओं के दिनों में अपनी छतों पर घूम-घूम कर किताबें हाथ में लेकर पढ़ते थे क्योंकि कमरों में बाकी कामकाज चलते थे तो खुली हवा में पढ़ने से मन की एकाग्रता बढ़ती थी.
लेकिन आज के जमाने में जब बच्चे से लेकर बूढ़े तक सबकी पहुंच इंटरनेट और स्मार्टफोन तक हो चुकी है तो इस डिजिटल और टेक्नोलॉजी की क्रांति ने किताबों को उड़ा कर रख दिया है. किताबों से दूरी क्यों बढ़ी है? यह सोचने और समझने का समय आ गया है. याद कीजिए कोरोना महामारी का वह वक्त जब लोग घरों में कैद थे.
कोई किसी से मिलजुल नहीं सकता था, तब स्मार्टफोन ने ही यह दूरियां खत्म कीं और देखते ही देखते कब यह स्मार्टफोन हमारी जरूरत और फिर आदत बन गए पता ही नहीं चल सका. देखते ही देखते हमारा यूथ जीवन से दूर होकर यूट्यूब पर उतर आया. हालत ये है कि अब यूट्यूब भी दूर हो गई, दिन का बड़ा हिस्सा यूथ अब रील्स पर बिता रहे हैं.
एक मिनट में मनोरंजन की यह डिजिटल बीमारी मीम तक पहुंच गई. अब तो कुछ सेकंड हंस लो, बच्चे से लेकर बूढ़े तक यही सबकुछ रह गया है और किताबें सिमट कर रह गई हैं. यह पुस्तकें ही हैं जिसका पढ़ा-लिखा ज्ञान आपको मान-सम्मान दिलाता है. आपका कैरियर बनाता है. न चाहते हुए भी लोगों की जिंदगी में सबकुछ डिजिटल हो चुका है.
मेरा यह मानना है कि टेक्नोलॉजी को अपने जीवन में भले ही उतारें लेकिन पुस्तकें कभी भी मत भुलाइए. पुस्तकें जीवन की वह सफलता दिलाती हैं जो लंबी पारी कहलाती है. इन पुस्तकों से मिले ज्ञान और फिर प्रतिस्पर्धा में जब आप सबको पछाड़ते हैं तब इस ज्ञान के महत्व का पता चलता है.
स्कूली किताबें पढ़ना और परीक्षा के लिए बच्चों को अध्ययनशील बनाना यह अलग बात है लेकिन इसमें भी बहुत कुछ ऑनलाइन चल रहा है. मैं टैक्नोलॉजी को बुरा नहीं कहती लेकिन पुस्तकों के महत्व को खत्म नहीं करना चाहिए. पुस्तकें हमारा आचार-व्यवहार और सफलता की कुंजी हैं. पुस्तकों से हमें मानवीयता और संवेदनशीलता प्राप्त होती है.
तुलसी, कबीर, रहीम, मैथिलीशरण गुप्त, जयशंकर प्रसाद, रवींद्रनाथ टैगाेर जैसों की रचनाएं हमारे जीवन को संवारती हैं. कई डिबेट्स में पुस्तकों से लोगों की बढ़ती दूरियों के बारे में जब सुनती और महसूस करती हूं तो दु:ख होता है.
मेरा यकीन मानिए मैं आज भी सामाजिक और धार्मिक पुस्तकें हफ्ते में दो बार पढ़ती हूं और फिर इनके बारे में डिस्कस भी करती हूं. धैर्य और ज्ञान इन पुस्तकों की देन है. आइए इन्हें पढ़ें और हल्के-फुल्के ढंग से इन्हीं के आधार पर मनोरंजन भी करें और ज्ञान में वृद्धि करें.