पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग: नगदी फसल की बंपर पैदावार पर कोरोना की मार
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: April 4, 2020 01:00 PM2020-04-04T13:00:29+5:302020-04-04T13:00:29+5:30
पंकज चतुर्वेदी
कर्नाटक में इस बार अंगूर की बंपर फसल हुई. अंगूर को न तो ज्यादा दिन बेलों पर रहने दिया जा सकता है और न ही उसके वेयर हाउस की व्यवस्था है. राष्ट्रव्यापी तालाबंदी के चलते परिवहन ठप है और थोक मंडी व स्थानीय बाजार भी. इसके चलते बेंगलुरु ग्रामीण, चिकबल्लापुर और कोलार जिलों में 500-600 करोड़ रु. के अंगूर बर्बाद हो गए. खरीदारों को खोजने में असमथ कई किसानों ने अपनी उपज को गड्ढों में डालना शुरू कर दिया है. पिछले रविवार को चिकबल्लापुर के एक किसान मुनीषमप्पा ने अंगूर के चार ट्रक गांव के तालाब में फेंक दिए. इस फसल का सबसे बड़ा संकट यह है कि यदि सूख कर अंगूर जमीन पर गिर गया तो मिट्टी की उर्वरा शक्ति समाप्त हो जाती है.
इस बार पिछले साल की तुलना में आलू का उत्पादन 3.49 फीसदी बढ़ने का अनुमान था. दिसंबर-19 में कृषि मंत्रलय का आरंभिक अनुमान था कि फसल सीजन 2019-20 में 519़ 4 लाख टन आलू पैदा होगा, जबकि पिछले साल 2018-19 में 510़ 9 लाख टन का उत्पादन हुआ था. दुर्भाग्य से इस बार जब फसल तैयार हुई तभी मार्च में पानी बरसा और चार-पांच दिनों तक खेत में पानी भरा रहा. इससे एक तो फसल को नुकसान हुआ, फिर बंदी के चलते आलू खोदने वाला मजदूर ही नहीं मिल रहा. जिनका माल निकल रहा है तो मंडी तक जाने का रास्ता नहीं मिल रहा. जो मंडी तक जा रहे हैं उन्हें अपनी मेहनत-लागत निकालने लायक दाम नहीं मिल रहा.
किसान मेहनत कर सकता है, अच्छी फसल दे सकता है, लेकिन सरकार में बैठे लोगों को भी उसके परिश्रम के माकूल दाम, अधिक माल के सुरक्षित भंडारण के बारे में सोचना चाहिए. खासकर आपदा के समय तो इस तरह की फसलों के लिए खास इंतजाम होना ही चाहिए. शायद इस छोटी सी जरूरत को मुनाफाखोरों और बिचौलियों के हितों के लिए दरकिनार किया जाता है. तीन साल पहले सरकार ने अपने बजट में रिटेल में विदेशी निवेश की योजना में सब्जी-फलों के संरक्षण के लिए ज्यादा जगह बनाने का उल्लेख किया था लेकिन वह अभी तक जमीन पर उतरता दिखा नहीं.
इस बार तो बेमौसम बरसात और कोरोना के कारण किसान रो रहा है लेकिन हकीकत तो यह है कि कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था वाले देश में कृषि उत्पाद के न्यूनतम मूल्य, उत्पाद खरीदी, बिचौलियों की भूमिका, किसान को भंडारण का हक, फसल-प्रबंधन जैसे मुद्दे गौण दिखते हैं. सब्जी, फल और दूसरी कैश-क्रॉप को बगैर सोचे-समझे प्रोत्साहित करने के दुष्परिणाम दाल, तेल-बीजों (तिलहनों) और अन्य खाद्य पदार्थो के उत्पादन संकट की सीमा तक कमी के रूप में सामने आ रहे हैं.