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विजय दर्डा का ब्लॉग: इमरान को हमें एक मौका तो देना ही चाहिए

By विजय दर्डा | Updated: December 3, 2018 05:57 IST

दुर्भाग्य से दोस्ती की डगर पर हम आगे नहीं बढ़ सके। लेकिन एक मौका फिर आया है। इमरान खान ने अपनी चाहत का इजहार किया है तो भारत को भी आगे बढ़कर पहल करनी चाहिए।

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पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लिए हुए इमरान खान को महज साढ़े तीन महीने हुए हैं लेकिन उन्होंने जिस तरह का जज्बा दिखाया है, वह काबिले तारीफ है। खासकर भारत के साथ संबंधों के मामले में वे खास रुचि ले रहे हैं और अपनी चाहत का इजहार उन्होंने कई बार किया भी है। प्रधानमंत्री बनने के ठीक बाद उन्होंने कहा था कि वे भारत के साथ अच्छे संबंध चाहते हैं। पिछले सप्ताह पाकिस्तानी क्षेत्र में करतारपुर साहिब गलियारे की आधारशिला रखते हुए उन्होंने फिर पहल की और कहा कि अच्छे रिश्ते के लिए भारत एक कदम उठाएगा तो वे दो कदम उठाएंगे। 

इमरान खान के इस बयान को लेकर भारत में तीखी टीका-टिप्पणी शुरू गई है। खास तौर पर यह कहा जा रहा है कि पाकिस्तान के पहले के हुक्मरानों ने भारत के साथ हमेशा छल किया है। इमरान पर भरोसा कैसे करें। पाकिस्तान को पहले अपने यहां से उस आतंकवाद को समाप्त करना चाहिए जिसने भारत को परेशान कर रखा है। इसके बाद ही आगे की बातचीत हो सकती है।

मेरा मानना है कि पहले के पाकिस्तानी हुक्मरानों के साथ इमरान की तुलना ठीक नहीं है। इमरान के क्रिकेट करियर को देखें या फिर राजनीतिक करियर को, तो एक भी ऐसा उदाहरण नजर नहीं आता है जब उन्होंने किसी के साथ धोखा किया हो। उनका करियर पाक-साफ नजर आता है। वे अपने दौर के शानदार क्रिकेटर रहे हैं और पूरी दुनिया में उनका सम्मान है। राजनीति के पचड़े में पड़ने की उन्हें जरूरत नहीं थी लेकिन अपने मुल्क के हालात सुधारने के लिए उन्होंने राजनीति में आने का फैसला किया। 

राजनीति में आने के बाद उन्होंने हालांकि कश्मीर मुद्दे की चर्चा कई बार की है लेकिन कभी भी भारत के खिलाफ नफरत का इजहार नहीं किया है। दूसरे हुक्मरान ऐसा करते रहे हैं। इमरान को यह पता है कि दो पड़ोसियों के बीच यदि दोस्ती हो जाए तो दोनों का ही भला है। उन्हें जो पाकिस्तान विरासत में मिला है, उसकी हालत बहुत ही नाजुक है। खजाना खाली है और रुपया हर रोज नीचे लुढ़कता जा रहा है। उन्हें पता है कि वे एक खस्ताहाल मुल्क के प्रधानमंत्री हैं। भारत से दोस्ती उनके लिए फायदेमंद ही रहने वाली है। 

दिक्कत  यह है कि भारत में एक खास विचारधारा के लोग यह बात फैलाने की कोशिश करते रहे हैं कि इमरान का झुकाव कट्टरपंथियों की तरफ है। हकीकत यह है कि इमरान खान पकिस्तान में कट्टरपंथियों से लगातार लोहा ले रहे हैं। कट्टरपंथी तो चाहते ही नहीं थे कि वे चुनाव जीतें। अभी तीन दिन पहले ही इमरान ने साफ तौर पर कहा कि किसी और मुल्क में आतंकवाद फैलाने के लिए पाकिस्तान की सरजमीं का उपयोग पाकिस्तान के हक में नहीं है।

जाहिर सी बात है कि वे आतंक के आकाओं को दरकिनार कर देना चाह रहे हैं। इतना ही नहीं इमरान ने भ्रष्टाचार के खिलाफ भी सघन मोर्चा खोल रखा है। वे खुलकर बोल रहे हैं। हां, यह बात सही है कि उन्होंने पाकिस्तानी सेना के खिलाफ कुछ नहीं बोला है। इसका कारण समझना कठिन नहीं है।

वहां सेना इतनी सशक्त है और पाकिस्तानी जनजीवन में उसकी इतनी पैठ है कि उसके खिलाफ लोहा लेने के लिए बड़ी ताकत  चाहिए जिसे प्राप्त करने में इमरान को अभी वक्त लगेगा। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि करीब 30 प्रतिशत उद्योग जगत पर सेना का कब्जा है। खास तौर पर सीमेंट और स्टील उद्योग तो सेना के अधिकारियों के कब्जे में ही हैं। व्यवस्थागत दृष्टि से भी सेना का प्रभाव है। चुनी हुई सत्ता पर हमेशा ही संकट बरकरार रहता है। 

इस सबके बावजूद इमरान ने भारत के साथ दोस्ती की ईमानदार पहल की है। समस्या यह है कि हिंदुस्तान में इस पहल को अलग नजरिये से देखने की कोशिश की जा रही है। जिस तरह से भारत का विरोध पाकिस्तानी चुनाव में जीत की गारंटी माना जाता है उसी तरह का वातावरण भारत में भी बनाने की कोशिश की जा रही है। हमारे यहां 2019 में लोकसभा के चुनाव होने हैं और पाकिस्तान के खिलाफ माहौल कुछ लोगों को फायदा पहुंचा सकता है।

मेरा मानना है कि ऐसे तत्वों से देश को बचना चाहिए। पाकिस्तान के साथ दोस्ती की पहल न केवल अटल बिहारी वाजपेयी ने की थी और शांति की बस लेकर पाकिस्तान गए थे बल्कि तत्कालीन पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के घर पर बिन बुलाए, पहुंचकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी एक अच्छी पहल की थी।

दुर्भाग्य से दोस्ती की डगर पर हम आगे नहीं बढ़ सके। लेकिन एक मौका फिर आया है। इमरान खान ने अपनी चाहत का इजहार किया है तो भारत को भी आगे बढ़कर पहल करनी चाहिए। पहले की असफलता से भयभीत होते रहना और नई पहल को दरकिनार कर देना किसी भी सूरत में बुद्धिमानी नहीं कही जा सकती! 

टॅग्स :पाकिस्तानइमरान खान
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