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One Nation One Election: एक कदम आगे बढ़ी सरकार?, अमेरिका, जर्मनी, जापान, इंडोनेशिया, स्वीडन, बेल्जियम...

By प्रमोद भार्गव | Updated: December 17, 2024 05:18 IST

One Nation One Election: निर्वाचन प्रक्रिया राष्ट्र को एक ऐसी संवैधानिक व्यवस्था देती है, जिससे भिन्न स्वभाव वाली राजनीतिक शक्तियों को केंद्रीय व प्रांतीय सत्ताओं में भागीदारी का अवसर मिलता है.

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ठळक मुद्देअमेरिका, जर्मनी, जापान, इंडोनेशिया, स्वीडन, बेल्जियम ऐसे देश हैं, जहां एक साथ चुनाव संपन्न होते हैं.चुनावों के साथ निकाय व पंचायत चुनाव भी एक साथ कराने की दिशा में केंद्र सरकार एक-एक कदम आगे बढ़ रही है. साफ है सरकार अपने इस महत्वाकांक्षी वादे को क्रियान्वित करने के प्रति संकल्पवद्ध है.

One Nation One Election: नरेंद्र मोदी सरकार ने एक देश एक चुनाव को संवैधानिक रूप देने की दृष्टि से एक कदम और आगे बढ़ा दिया है. मंत्रिमंडल ने इससे संबंधित विधेयक के प्रारूप को हरी झंडी दे दी है. विधेयक को एक़-दो  दिन में लोकसभा में पेश किया जा सकता है. एक साथ चुनाव की दिशा तय करने के लिए सरकार पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में उच्चस्तरीय समिति का गठन किया था. समिति ने मार्च 2024 में अपनी विस्तृत रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी. इसी साल सितंबर में हुई कैबिनेट की बैठक में इसे स्वीकार कर लिया था.

2029 में ‘एक देश एक चुनाव’ यानी देश में लोकसभा और विधानसभा चुनावों के साथ निकाय व पंचायत चुनाव भी एक साथ कराने की दिशा में केंद्र सरकार एक-एक कदम आगे बढ़ रही है. गृहमंत्री अमित शाह पहले ही कह चुके हैं कि 2029 के पहले एक साथ चुनाव का प्रबंध कर दिया जाएगा. साफ है सरकार अपने इस महत्वाकांक्षी वादे को क्रियान्वित करने के प्रति संकल्पवद्ध है.

एक साथ चुनाव कराए जाते हैं तो इस समय तक जिन राज्य सरकारों का कार्यकाल बचा होगा, वह लोकसभा चुनाव तक ही पूरा मान लिया जाएगा. वैसे भी आजादी के बाद 1952ए 1957ए 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ साथ होते रहे हैं लेकिन 1968 और 1969 में समय के पहले ही कुछ राज्य सरकारें भंग कर दिए जाने से यह परंपरा टूट गई.

अब इस व्यवस्था को लागू करने के लिए संविधान में करीब 18 संशोधन करने होंगे. इनमें से कुछ बदलावों के लिए राज्यों की भी अनुमति जरूरी होगी. यदि स्थानीय निकाय और पंचायत चुनाव भी साथ-साथ होते हैं तो फिर मतदाता सूची तैयार निर्वाचन आयोग कराएगा. इस हेतु अनुच्छेद 325 में परिवर्तन करना होगा.

साथ ही अनुच्छेद 324 ए में संशोधन करते हुए निगमों और पंचायतों के चुनाव भी लोकसभा चुनाव के साथ करा लिए जाएंगे. संविधान के अनुच्छेद 368 ए के तहत इस संशोधन विधेयक को आधे राज्यों से भी पास करना जरूरी होगा. इसी अनुरूप केंद्र शासित प्रदेशों के लिए भी अलग से संविधान संशोधन की आवश्यकता पड़ेगी.

चूंकि संविधान के मुताबिक केंद्र और राज्य सरकारें अलग-अलग इकाइयां हैं. इस परिप्रेक्ष्य में संविधान में समानांतर किंतु भिन्न-भिन्न अनुच्छेद हैं. इनमें स्पष्ट उल्लेख है कि इनके चुनाव प्रत्येक पांच वर्ष के भीतर होने चाहिए. लोकसभा या विधानसभा जिस दिन से गठित होती है, उसी दिन से पांच साल के कार्यकाल की गिनती शुरू हो जाती है.

इस लिहाज से संविधान विशेषज्ञों का मानना है कि एक साथ चुनाव के लिए कम से कम 18 अनुच्छेदों में संशोधन किया जाना जरूरी होगा. विधि आयोग, निर्वाचन आयोग, नीति आयोग और संविधान समीक्षा आयोग तक इस मुद्दे के पक्ष में अपनी राय दे चुके हैं. ये सभी संवैधानिक संस्थाएं हैं. यदि विपक्षी दल सहमत हो जाते हैं तो दो तिहाई बहुमत से होने वाले ये संशोधन कठिन कार्य नहीं है.

क्योंकि राजग के सहयोगी दल जदयू और तेलुगु देशम एक साथ चुनाव के पक्ष में हैं. बीजू जनता दल भी राजग के साथ खड़ा दिखाई दे सकता है. यदि संसद के अन्य विपक्षी दल, दलगत राजनीति से ऊपर उठकर देशहित में निर्णय लें तो यह विधेयक आसानी से दोनों सदनों से पारित हो जाएगा. अनेक असमानताओं, विसंगतियों और विरोधाभासों के बावजूद भारत एक सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के सूत्र से बंधा है.

निर्वाचन प्रक्रिया राष्ट्र को एक ऐसी संवैधानिक व्यवस्था देती है, जिससे भिन्न स्वभाव वाली राजनीतिक शक्तियों को केंद्रीय व प्रांतीय सत्ताओं में भागीदारी का अवसर मिलता है. नतीजतन लोकतांत्रिक प्रक्रिया गतिशील रहती है, जो देश की अखंडता व संप्रभुता के प्रति जवाबदेह है. देश में मानव संसाधन सबसे बड़ी पूंजी है.

गोया, यदि बार-बार चुनाव की स्थितियां बनती हैं तो मनुष्य का ध्यान बंटता है और समय व पूंजी का क्षरण होता है. इस दौरान आदर्श आचार संहिता लागू हो जाने के कारण प्रशासनिक शिथिलता दो-ढाई महीने तक बनी रहती है, फलतः विकास कार्य और जन-कल्याणकारी योजनाएं प्रभावित होती हैं.

एक साथ चुनाव के चलते सरकारी कर्मचारियों और सुरक्षा बलों को बार-बार चुनाव ड्यूटी का मानसिक तनाव नहीं झेलना पड़ेगा. ऐसा नहीं है कि एक साथ चुनाव का विचार कोई नया है. 1952 से लेकर 1967 तक चार बार लोकसभा व विधानसभा चुनाव पूरे देश में एक साथ ही हुए हैं.

बार-बार चुनाव की स्थितियां निर्मित होने के कारण सत्ताधारी राजनीतिक दल को यह भय बना रहता है कि उसका कोई नीतिगत फैसला ऐसा न हो जाए कि दल के समर्थक मतदाता नाराज हो जाएं. लिहाजा सरकारों को लोक-लुभावन फैसले लेने पड़ते हैं. वर्तमान में अमेरिका, जर्मनी, जापान, इंडोनेशिया, स्वीडन, बेल्जियम, दक्षिण अफ्रीका और फिलीपींस ऐसे देश हैं.

, जहां एक साथ चुनाव बिना किसी बाधा के संपन्न होते हैं. गोया, भारत में भी यदि एक साथ चुनाव की प्रक्रिया 2029 में होती है तो केंद्र व राज्य सरकारें बिना किसी दबाव के देश व लोकहित में फैसले ले सकेंगी. सरकारों को पूरे पांच साल विकास व सुशासन को सुचारू रूप से लागू करने का अवसर मिलेगा.

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