प्रधानमंत्री खोद रहे 'मोदी से मोहभंग' की खाई, राहुल गांधी निराश न हों, मौका मिलेगा

By रोहित कुमार पोरवाल | Published: June 21, 2019 01:54 PM2019-06-21T13:54:48+5:302019-06-21T14:03:33+5:30

बिहार और पूर्वांचल में एक्यूट एन्सेफलाइटिस या जापानी बुखार या चमकी बुखार से रोज़ाना बच्चे मर रहे हैं। मरने वालों का आंकड़ा डेढ़ सौ पहुंच गया है। अस्पतालों के आईसीयू और वार्ड के बेड 2-2, 3-3 बच्चों से भरे पड़े हैं। जिगर के टुकड़ों को खोने वाली माँओं की हृदयविदारक चीखें थम नहीं रही हैं और प्रधान सेवक हैं कि एक सांत्वना संदेश तक नहीं दे पा रहे हैं, न बोलकर, न ही ट्वीट करके।

Not a single word from PM Narendra Modi on Children Death from Encephalitis may Tarnish his Image | प्रधानमंत्री खोद रहे 'मोदी से मोहभंग' की खाई, राहुल गांधी निराश न हों, मौका मिलेगा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। (फाइल फोटो)

Highlightsसोशल मीडिया पर कुछ लोग कहने लगे हैं कि बच्चे वोटर थोड़े ही हैं, मर रहे हैं तो मर जाएं, मोदी जी को इससे क्या?सांसदों के गेट टुगेदर और डिनर पार्टी के बारे में पीएम ने ट्वीट किया। और भी कई तरह के ट्वीट्स में सक्रियता दिख रही है लेकिन मुज़फ़्फ़रपुर में मर रहे बच्चों के लिए एक ट्वीट नहीं।

कुछ दिन पहले गुजरात के सूरत में एक इमारत में चल रहे कोचिंग सेंटर में आग लगी थी, 23 विद्यार्थी मर गए थे। उस घटना पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ट्वीट आया था और फिर जब वह लोकसभा चुनाव में जीत के बाद पहली बार गुजरात गए तो अहमदाबाद की सभा में भी बच्चों के मरने पर संवेदना व्यक्त की थी और सिस्टम में सुधार लाने की बात कही थी।

बिहार और पूर्वांचल में एक्यूट एन्सेफलाइटिस या जापानी बुखार या चमकी बुखार से रोज़ाना बच्चे मर रहे हैं। मरने वालों का आंकड़ा डेढ़ सौ पहुंच गया है। अस्पतालों के आईसीयू और वार्ड के बेड 2-2, 3-3 बच्चों से भरे पड़े हैं। जिगर के टुकड़ों को खोने वाली माँओं की हृदयविदारक चीखें थम नहीं रही हैं और प्रधान सेवक हैं कि एक सांत्वना संदेश तक नहीं दे पा रहे हैं, न बोलकर, न ही ट्वीट करके। हां, शिखर धवन के चोटिल होने के कारण विश्व कप में उनके न खेल पाने का अफसोस है उन्हें हैं जो ततपरता से रिट्वीट करने में देरी नहीं की।

सांसदों के गेट टुगेदर और डिनर पार्टी के बारे में ट्वीट कर दिया। और भी कई तरह के ट्वीट्स में सक्रियता दिख रही है लेकिन मुज़फ़्फ़रपुर में मर रहे बच्चों के लिए एक ट्वीट नहीं।

सोशल मीडिया पर कुछ लोग कहने लगे हैं कि बच्चे वोटर थोड़े ही हैं, मर रहे हैं तो मर जाएं, मोदी जी को इससे क्या?

विडंबना है कि बच्चों के मरने ने कई बड़े समाचार चैनलों को सीधे आईसीयू में ही डॉक्टरों से पत्रकारों को भिड़ने का मौका दिया। अस्पताल से ही लाइव बहस करने का मौका दिया लेकिन मज़ाल कोई पीएम से सवाल कर दे।

देखा जाए तो मोदी जी 2014 के बाद से जब से केंद्र की सत्ता पर काबिज हुए, उन्होंने वो एक काम नहीं किया जिसके दम पर वह उन्हें यह उपलब्धि हासिल हुई थी और उनके वोट बैंक करोड़ों हिन्दू मतदाताओं ने उनसे उम्मीदें बांध ली थीं।

ताजा उदाहरण लें तो मालदीव में मोदी जी ने मस्ज़िद बनवाने में आर्थिक सहायता देने का एलान कर दिया लेकिन वर्षों से पार्टी के एजेंडे में रहे अयोध्या के राम मंदिर के लिए अध्यादेश लाने से इनकार करते हैं। 

अध्यादेश छोड़िए, 5 साल तमाम संत समाज मोदी जी को अयोध्या बुलाते-बुलाते थक गया लेकिन वह गए तो गए ही नहीं, चुनाव प्रचार में गए भी तो राम जन्मभूमि से कई किलोमीटर दूर से ही भाषण देकर वापस हो लिए और पूरा संत समाज और मंदिर देखने के दर्शनाभिलाषी हिन्दू ठगे रह गए।

हो सकता है कि यह बात महज़ मज़ाक लगे लेकिन आप देखिए कि मोदी जी भोलेनाथ के भक्त हैं। बनारस जब जाते हैं तो बाबा विश्वनाथ के दर्शन ज़रूर करते हैं। जगह कंजस्टेड थी। आने-जाने में दिक्कत होती थी तो एक पूरा हिस्सा साफ ही करवा दिया। हज़ारों वर्षों की विरासत सहेजे महादेव की नगरी की एतिहासिक गलियों-मकानों और मंदिरों पर बुलडोज़र चलाकर गलियारा बना रहे हैं ताकि क्योटो ख्वाब की इतिश्री हो जाए। शक होता है कि मोदी जी बाबा भोलेनाथ के भक्त है, शिव उनके आराध्य हैं तो उन्हें विष्णु के अवतार राम की क्या पड़ी। मंदिर बने या न बने, भोलेनाथ को लेकर तो कहीं विवाद नहीं है न।

और फिर चश्मा लगाकर केदारनाथ की गुफा में बैठकर ध्यान साधने से ही वोट सध जाए तो क्यों अयोध्या जैसी विवादित जगह जाने की जहमत उठाई जाए।

देश का एक बड़ा सवर्ण वर्ग उस वक्त बहुत चैन की सांस ले रहा था जब सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट में संशोधन का आदेश दिया कि आरोपी की गिरफ्तारी बिना जांच नहीं होगी, वगैरह।

मोदी जी को सर्वोच्च अदालत का फैसला सियासत के विरुद्ध लगा और उसे पलट दिया। कोई कह सकता है कि एससी/एसटी भी हिन्दू हैं तो यह बात भी किसी से छिपी नहीं है कि हिंदुओं के बीच वे कितने हिन्दू ही बचे रह गए हैं।

नोटबन्दी से टैक्सपेयर्स की संख्या बढ़ी, अच्छी बात है लेकिन कालेधन वाला एक भी जेल नहीं गया, यह अच्छी बात नहीं क्योंकि मोदी जी आरोपियों को कड़ी सज़ा दिलाने के हिमायती रहे हैं। स्विस बैंकों ने भी कालाधन वालों की लिस्ट मुहैया कराई लेकिन कोई बता दो जेल गया हो।

मुलायम और मायावती के पास आय से अधिक संपत्ति नहीं है, इस बात पर पूरे विश्व का अंक गणित माथा पीट रहा है लेकिन मोदी जी के लिए वे पाक साफ हैं। और मुलायम ने तो सद्भावना भी जाहिर की थी कि मोदी जी प्रधानमंत्री बनें।

वो बात अलग है कि चुनाव के वक्त नेहरू, राजीव गांधी से लेकर राहुल गांधी तक कि ईमानदारी कठघरे में खड़ी कर दी जाए और और चौकीदार मोदी जी द्वारा पुराने मीडिया आर्टिकल्स के जरिये कायदे से उघाड़ी लेकिन मज़ाल कि मोदी जी के होते हुए कोई राहुल या उनके परिवार के किसी सदस्य को जेल भेजकर दिखा दे।

चुनाव का रिजल्ट क्या आया कि प्रोफाइल से चौकीदार कब फुर्र हो गया पता नहीं। मोदी जी शायद इस बात को लेकर श्योर हो चुके हैं कि जब वह खुद को चौकीदार या सेवक कहते हैं तो जनता यह समझ नहीं पाती है कि वे यह पांच साल के लिए कह रहे या महज चुनाव प्रचार के दौरान। अब जब जनता इतनी मूर्ख हो तो राजा होशियारी दिखाए तो हर्ज़ भी क्या है। 

कश्मीर न हो गया, सियासत का खाद पानी हो गया, उस पर अब बात करना बेकार है।

हां चुनाव हैं तो पहली बार वोट डालने जा रहे मतदाताओं से मोदी दी हक से कह सकते है कि क्या आपका वोट पुलवामा के शहीदों के नाम मिल सकता है? क्या आपका वोट पीओके में भारतीय वायुसेना की स्ट्राइक के नाम मिल सकता है?

मुजफ्फरपुर के बच्चे या गोरखपुर के बच्चे पहली बार वाले मतदाता भी नहीं हैं जो मोदी जी उनपर आंसू बहाने, गला रुंधने में समय खर्च करें। प्रधानमंत्री हैं आखिर, बड़े-बड़े काम करने होते हैं। 

चुनाव के वक्त उन्होंने के महान काम किया कि गोडसे को देशभक्त कहने पर प्रज्ञा ठाकुर के खिलाफ अफसोस जाहिर कर दिया कि उनका दिल उन्हें कभी माफ नहीं कर सकेगा। अब उन्हीं प्रज्ञा ठाकुर को सही तरीके से शपथ दिलाने में स्पीकर को पसीने में तर होना पड़ता है। तीसरी बार में वह अपनी हठधर्मिता छोड़ संविधान के हिसाब से शपथ लेती हैं और फिर भारत माता की जय.. 

नारे और लगते हैं, जय श्री राम, वन्दे मातरम, जय भीम, अल्लाह अकबर.. और लोकतंत्र का मंदिर और उसके बाहर का लोकतंत्र  यह तमाशा देखकर सब झेल जाता है, देखते-देखते आदत जो पड़ रही है। कभी उसी लोकतंत्र के मंदिर की सीढ़ियों पर मोदी जी ने माथा टेका था। तब शायद मन में यह न रहा होगा कि उसकी गरिमा कुपित होने का ठीकरा उनके सिर भी फूट सकता है।

मज़े की बात यह भी है कि मोदी जी के द्वारा इतने मौके दिए जाने पर भी विपक्ष के नेता लोकसभा की हार से कुपित होने के कारण उन्हें लपक नहीं पा रहे हैं। केंद्र में राहुल गांधी तो बिहार में लालू के बेटे। सुन्न पड़े है एकदम। चमकी बुखार पर न तो घेर पा रहे है और न ही मरने वाले बच्चों के घरवालों को नैतिक तौर पर ढांढस बंधा पा रहे हैं। वो बात अलग है कि एक दिन मोदी जी की स्वार्थ की राजनीति से ऊबकर वोटर राहुल गांधी को जिताकर नहीं, बल्कि मोदी जी को हराकर मौका दे देंगे।

अब देखते हैं कि 'मोदी है तो मुमकिन है' बरकरार रहता है या 'मोदी से मोहभंग' ज़ोर पकड़ता है। वैसे मोदी जी बुरा मत मानिए, आप दूसरे वाले का मौका बना रहे हैं।

Web Title: Not a single word from PM Narendra Modi on Children Death from Encephalitis may Tarnish his Image

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे