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निरंकार सिंह का ब्लॉग: आत्मनिर्भर बनने का जापानी मंत्र अपनाएं

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: July 21, 2020 10:18 IST

जापान में प्रोफेशनल ट्रेनिंग स्कूल और कॉलेजों में अभ्यास कर विद्यार्थी बाजार में मांग के अनुरूप तैयार होकर व प्रशिक्षित होकर निकलता है पर इसके लिए हमें योजना की बुनियाद को बदलना होगा. 

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आजकल सरकार देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है. लेकिन कोई भी देश सिर्फ सरकार के सहारे आत्मनिर्भर नहीं हो सकता है. इसके लिए देश के समस्त नागरिकों का योगदान जरूरी है.

यदि हम दुनिया के विकसित देशों पर नजर डालें तो यह पता चलता है कि वहां के नागरिकों का अपने देश को आत्मनिर्भर बनाने में बहुत बड़ा योगदान है. यदि भारत को आत्मनिर्भर देश बनना है तो उसे जापान और इजराइल से सबक सीखना होगा.

दूसरे विश्वयुद्ध का अंत एक तरह से 1945 में जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराने के बाद ही हुआ था, फिर भी आज जापान दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में चौथे नंबर पर है. जापान का क्षेत्रफल और जनसंख्या अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में काफी कम है.

इसलिए इसके मायने और बढ़ जाते हैं. अब ये बात समझना जरूरी है कि जापान ने ऐसा क्या किया जिससे 1945 में बुरी तरह से टूट चुका यह देश आज दुनिया में विकास की ऊंचाई पर है.

एक प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ के अनुसार-दुनिया जानती है कि ‘‘जापानी जितने स्वदेश भक्त होते हैं, उतने कोई दूसरे लोग नहीं होते. परंतु अपने देश में रहते हुए मैंने उनकी देशभक्ति को जितना आश्चर्यजनक समझा था, वह उससे भी आगे बढ़ी हुई है. अपनी आजादी के बाद जापान ने राष्ट्रीय जागृति के साथ-साथ पहाड़ों और नदियों तक के नाम बदल दिए.

जापान में कोई सांप्रदायिक या मजहबी संस्था राजनीति में हस्तक्षेप नहीं करती,  यहां पर लगभग 500 सम्प्रदाय हैं. मजहबी बातें राजनीति से अलग रखी जाती हैं और सरकार से सहायता पाने वाले अथवा सरकार द्वारा संचालित शिक्षा संस्थानों से मजहब का कोई संबंध नहीं हैं.

जापानियों में इज्जत का बड़ा ख्याल रहता है और  उनके हृदय में देश के प्रति प्रगाढ़ भक्ति रहती है जो विभिन्न रूपों में दिखाई पड़ती है, जिनमें कुछ को देखकर तो विदेशियों को भी बहुत आश्चर्य होता है. यही कारण है कि जापान की प्रत्येक नीति अत्यधिक राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत रहती है.

आत्मसम्मान की गहरी भावना, आत्मत्याग, आत्मनियंत्रण और वास्तविक देशभक्ति यही बातें आज के जापान के गौरव का आधार हैं. ये व्यक्तिगत गुण उन देशों के लोगों के लिए भी आवश्यक हैं जो उन्नति चाहते हैं.

हम भारतीयों को इसकी बड़ी आवश्यकता है. यदि हम इन्हें अपना सकें और अपने अन्य गुण भी बनाए रख सकें तो इनसे हम बलवान और बड़े हो सकेंगे अन्यथा हमारा भविष्य अंधकारमय ही बने रहने की संभावना है.

कोई देश अपने बलबूते पर कैसे आत्मनिर्भर बन सकता है, इसका सबसे बड़ा उदाहरण जापान है. 1945 में परमाणु बम के हमले से जापान लगभग नेस्तनाबूत हो गया था. लेकिन कुछ ही वर्षों में वह फिर से उठ खड़ा हुआ.

वैसे भी उसे हर चौथे-पांचवे साल भंयकर सुनामी, भूकंपों तूफानों का कहर झेलना पड़ता है. लेकिन हर संकट और चुनौती का वह डटकर मुकाबला करता है.

भारत जैसे देश के लोगों के लिए जापान एक प्रेरक शक्ति बन सकता है. दरअसल जापान ने भी जो उन्नति की है, कुटीर उद्योगों के माध्यम से की है. उन्होंने गांव-गांव, घर-घर और मोहल्ले-मोहल्ले में इस तरह का प्रयत्न किया है कि हर व्यक्ति का जो श्रम बच जाता है, जो समय बच जाता है, उसका उपयोग किया जा सके.

जापान में पढ़ने के बाद में स्कूली बच्चे भी कुछ काम कर लेते हैं, अपने घर में लगी हुई मशीनों के द्वारा. जो महिलाएं घर में रहती हैं, उनके लिए भी ऐसे गृह उद्योग मिल जाते हैं जिसमें वे कई घंटे काम करके जीविका कमा सकें.

हमारे यहां भी प्रत्येक व्यक्ति को अपने श्रम का उपयोग करने के लायक कुछ काम मिल सके, इसकी बहुत सख्तजरूरत है.

हमारे शिक्षण का उद्देश्य स्वावलंबन होना चाहिए. शिक्षा का उद्देश्य मानव जीवन की हर समस्या के बारे में व्यक्ति को जानकारी कराना है.

इन समस्याओं का समाधान क्या हो सकता है और क्या होना चाहिए और दुनिया के लोगों ने किस तरीके से अपने-अपने देशों की आवश्यकता को पूरा किया, कठिनाइयों का समाधान किया.

इसकी जानकारी देना शिक्षा का काम है, लेकिन हमारे यहां निरर्थक बातें बच्चों के दिमाग में ठंूसी जाती हैं, उसको जुबानी याद करने के लिए मजबूर किया जाता है. इसका क्या मतलब है?  हम भी जापान की तरह बच्चों को देश की ताकत बना सकते हैं.

1947 में जापान ने शिक्षा सुधार की दिशा में एक बड़ा कदम ‘शिक्षा का मूल अधिकार’ कानून के रूप में बनाकर उठाया. यह कानून देश के हर नागरिक को शिक्षा का मूल अधिकार देता था और इसके तहत ‘संपूर्ण व्यक्ति’ के विकास की रूपरेखा तय की गई थी.

इसी कानून के आर्टिकल-6 में कहा गया कि टीचर्स को पूरे समुदाय के लिए एक सेवक के रूप में देखा जाए. इसी कानून के तहत हर नागरिक को 6 से 9 सालों तक पूर्ण रूप से मुफ्त शिक्षा देने की व्यवस्था थी.

इस फॉर्मूला को 6-3-3-4 के नाम से जाना जाता है, यानी कि 6 साल प्राथमिक शिक्षा, 3 साल छोटी द्वितीयक शिक्षा, 3 साल बड़ी द्वितीयक शिक्षा और आखिर के 4 साल बड़ी पूर्व स्नातक शिक्षा.

जापान में प्रोफेशनल ट्रेनिंग स्कूल और कॉलेजों में अभ्यास कर विद्यार्थी बाजार में मांग के अनुरूप तैयार शिक्षित होकर निकलता है पर इसके लिए हमें योजना की बुनियाद को बदलना होगा. 

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