ब्लॉग: नए आपराधिक कानून न्यायतंत्र में नए युग के सूत्रधार बनेंगे
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: July 2, 2024 10:10 IST2024-07-02T10:08:53+5:302024-07-02T10:10:36+5:30
कानून 1866 में बनी भारतीय दंड संहिता, 1898 में बनी आपराधिक प्रक्रिया संहिता और 1872 में बने भारतीय साक्ष्य अधिनियम का स्थान लेंगे। इन कानूनों के लागू हो जाने से विभिन्न अपराधों के लिए लागू होने वाली धाराओं का नंबर भी बदल जाएगा।

फाइल फोटो
देश के विधि और न्याय क्षेत्र में एक जुलाई से नए युग की शुरुआत हो गई। देश में अंग्रेजी शासनकाल के तीन आपराधिक कानूनों की जगह तीन नए कानूनों ने ले ली। इसी के साथ औपनिवेशिक काल का एक और चिह्न समाप्त हो गया। ये नए कानून देश में अपराध के बदलते परिवेश को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं और मुकदमों की प्रक्रिया को जल्द निपटाकर अपराधियों को यथाशीघ्र सजा देने का मार्ग प्रशस्त करते हैं। गत वर्ष दिसंबर में इन तीन नए कानूनों को संसद ने मंजूरी प्रदान की थी।ये नए कानून भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम कहलाएंगे।
ये कानून 1866 में बनी भारतीय दंड संहिता, 1898 में बनी आपराधिक प्रक्रिया संहिता और 1872 में बने भारतीय साक्ष्य अधिनियम का स्थान लेंगे। इन कानूनों के लागू हो जाने से विभिन्न अपराधों के लिए लागू होने वाली धाराओं का नंबर भी बदल जाएगा। उदाहरण के लिए हत्या के आरोप पर अब भारतीय न्याय संहिता की धारा 101 के तहत मुकदमा चलेगा और ठगी के लिए 402 की जगह धारा 316 लागू होगी। निषेधाज्ञा लागू करने पर कहा जाता था कि धारा 144 लगा दी गई है।उसे अब धारा 187 कहा जाएगा।
नए कानून में राजद्रोह की जगह अब देशद्रोह शब्द इस्तेमाल किया गया है।भारतीय दंड संहिता अर्थात आईपीसी में 511 धाराएं थीं जिसे नए कानून में घटाकर 358 कर दिया गया है। 33 अपराधों में सजा की अवधि और 83 अपराधों में जुर्माने की राशि बढ़ाई गई है।20 नए अपराधों की नए कानून में व्याख्या कर उनके लिए सख्त सजा का प्रावधान किया गया है। भारत की सत्ता पर पकड़ मजबूत बनाने के बाद अंग्रेजों ने भारतीयों के विरुद्ध दमनचक्र चलाने के लिए कई कानून बनाए।राजा-महाराजाओं के जमाने में न तो विशिष्ट कानून थे और न ही उनकी कोई व्याख्या होती थी।
राजा के सामने मामला आता था और उसे जो उचित लगता था, वैसी सजा वह सुना देता था। इस तथ्य को स्वीकार करना होगा कि भारत में विधि एवं न्याय व्यवस्था को अंग्रेजी सत्ता ने एक स्पष्ट ढांचा उपलब्ध करवाया लेकिन अंग्रेजों की सारी कानूनी प्रक्रिया भारतीय समुदाय पर अत्याचार करने का वैधानिक हक ब्रिटिश सत्ता को प्रदान करती थी।अंग्रेजों ने इन कानूनों का उपयोग भारतीय नागरिकों से उनके मौलिक अधिकार छीन लेने तथा मानवाधिकारों का उल्लंघन करने के लिए किया।
अंग्रेजों की सत्ता स्थापित होने के पूर्व राजा-महाराजाओं का शासन था। उनकी रियासतों या साम्राज्य में आमतौर पर अलिखित कानून होते थे। कानून और व्यवस्था के लिए राजा-महाराजाओं ने जो व्यवस्था की थी, वह बेहद प्रभावशाली तथा सुसंगत थी। अपराधी बच नहीं पाते थे और न्याय त्वरित होता था। इसके कारण कानून व्यवस्था की स्थिति मजबूत हुआ करती थी। अंग्रेजों ने इस व्यवस्था को तोड़कर विधि तथा न्याय व्यवस्था का नया ढांचा बनाया जो बेहद व्यवस्थित था लेकिन साथ ही भारतीयों के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रसित भी रहा। देश आजाद हुआ, समय के साथ-साथ अपराधों के स्वरूप भी बदलते गए लेकिन अंग्रेजों द्वारा बनाए गए कानूनों में समय की जरूरत के हिसाब से फेरबदल नहीं किए गए।
उनमें संशोधन जरूर हुए।अंग्रेजों द्वारा बनाया गया न्यायिक ढांचा त्वरित न्याय को सुनिश्चित नहीं करता था।इस ढांचे का स्वरूप स्पष्ट लेकिन मामला दर्ज करने को लेकर उसे अंजाम तक ले जाने की प्रक्रिया बहुत लंबी तथा जटिल थी।इसके कारण मुकदमे दस-बीस नहीं पचास-पचास वर्षों तक चलते रहे हैं। पुराने कानूनों को समय के मुताबिक बदलने की जरूरत वर्षों से महसूस की जा रही थी लेकिन भारतीय राजनीति में लोक-लुभावन मसले केंद्र में आते चले गए तथा जनता से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दे पृष्ठभूमि में चले गए।
कानूनों में बदलाव कर उन्हें लोकहितैषी बनाने को कभी चुनावी मुद्दा बनाने की जरूरत किसी राजनीतिक दल ने महसूस नहीं की क्योंकि उससे कोई जाति, धर्म या समुदाय का वोट बैंक नहीं जुड़ा था।ये कानून समय के साथ अप्रासंगिक भी हो गए थे।तकनीक के विकास के साथ-साथ अपराधी भी ज्यादा शातिर हो गए हैं। अपराध करने के लिए तकनीक का जमकर इस्तेमाल हो रहा है।अब ठगने के लिए अपराधी आपसे मिलता भी नहीं।सैकड़ों मील दूर बैठकर वह आपको चपत लगा देता है। आपके खाते से कुछ सेकंड के भीतर रकम उड़ जाती है।साइबर क्राइम बहुत बड़ी चुनौती के रूप में उभरा है।ऐसे अपराधों से निपटने में अंग्रेजों के जमाने के कानून सक्षम नहीं थे।
इससे नए जमाने के अपराधियों पर हाथ डालना मुश्किल हो जाता।एक जुलाई से लागू हुए तीन नए कानूनों का स्वागत होना चाहिए।इससे अपराधियों को सख्त सजा तो मिलेगी ही, मुकदमों का निपटारा भी शीघ्र होगा और न्याय के लिए बहुत लंबी प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी। पुलिस की जवाबदेही भी नए कानूनों में तय की गई है।इससे पुलिस महकमे को चुस्त बनाने में मदद मिलेगी।ये कानून देश में कानून और व्यवस्था की खामियों को दूर करने में भी मददगार साबित होंगे।