नीट: बहुत ही दुःखद है यह घोटाला
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: June 28, 2024 10:08 IST2024-06-28T10:06:46+5:302024-06-28T10:08:15+5:30
एक क्षेत्र को साफ करके एक उदाहरण स्थापित कर सकती थी. पेपर लीक एक अपेक्षाकृत नया अपराध है। सभी राज्यों में संगठित गिरोह सक्रिय हैं।

नीट: बहुत ही दुःखद है यह घोटाला
‘नीट’ (राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा) ने पूरे भारत को झकझोर दिया है। अभिभावकों और छात्रों की रातों की नींद उड़ी हुई है; शीर्ष शिक्षाविदों को कुछ भी पता नहीं है और राजनीतिक किरदार हमेशा की तरह इस व्यवस्था के दोषियों का बेशर्मी से बचाव करने की कोशिश कर रहे हैं।
‘नीट’ परीक्षा के घृणित कारोबार के पर्दाफाश ने भारत की शिक्षा व्यवस्था में जनता के विश्वास को हिलाकर रख दिया है। इसके जल्द ही बहाल होने की संभावना नहीं है। इसके लिए असाधारण रूप से मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है जो कल्पना में भी नजर नहीं आती। विचार केवल युवा पीढ़ी के सपनों के बारे में होना चाहिए जिनकी आंखों में सुंदर सपने हैं।
स्तब्ध करने वाली बात यह है कि सपने राजनेताओं और सर्वव्यापी शिक्षा माफिया द्वारा कुचल दिए जा रहे हैं। कल्पना कीजिए कि इस सड़ी हुई व्यवस्था ने छात्रों को किस हद तक हताश कर दिया है: एक लाख सीटों के लिए लगभग 25 लाख छात्र परीक्षा में शामिल हुए और भ्रष्टाचार के कारण मेधावी पीछे रह गए तथा अन्य छात्र आगे निकल गए।
कौन जिम्मेदार है?
क्या केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान दोषी नहीं? वे चार साल से मंत्रालय का नेतृत्व कर रहे हैं और शायद इस सारे मामलों के बारे में अच्छी तरह जानते हैं। राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (एनटीए) के अध्यक्ष प्रदीप कुमार जोशी को संदिग्ध पृष्ठभूमि के बावजूद छुआ तक नहीं गया है। मध्य प्रदेश में पीएससी प्रमुख (2006-2011) के रूप में जोशी के कार्यकाल के दौरान कई अनियमितताओं की सूचना मिली थी; 2009-10 में इसकी जांच के लिए एक समिति नियुक्त की गई थी, लेकिन जांच रिपोर्ट कभी सार्वजनिक नहीं की गई।
क्यों? और फिर जांचकर्ता आईएएस अधिकारी उमाकांत उमराव को उच्च शिक्षा आयुक्त के पद से तुरंत हटा दिया गया था. मध्य प्रदेश में अपना कार्यकाल समाप्त होने के बाद उत्तराखंड के जोशी आराम से छत्तीसगढ़ चले गए, जहां रमन सिंह के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने उनके भाजपा-आरएसएस से मजबूत संबंधों के कारण खुले दिल से स्वागत किया व अध्यक्ष बना दिया. क्या मध्य प्रदेश या छत्तीसगढ़ के पास अपने साफ-सुथरे व प्रतिभाशाली लोग नहीं थे? अब नीट की परीक्षाओं में संदिग्ध व्यवहार के कारण जोशी राष्ट्रीय खलनायक हैं।
उनका तेजी से उदय आश्चर्यजनक है, लेकिन प्रदर्शन? क्या उस संघ को दागी लोगों को बढ़ावा देना चाहिए, जो जीवन के हर क्षेत्र में शुचिता के लिए जाना जाता है? इनके आशीर्वाद से बने एक बड़ी यूनिवर्सिटी के कुलपति को इसी साल मध्य प्रदेश में वित्तीय अनियमितताओं के लिए जेल की हवा खानी पड़ी है।
निस्संदेह, ‘नीट’ घोटाले ने विदेशों में भारत की छवि को खराब किया है, जहां शिक्षा के क्षेत्र में इस तरह के घोटाले शायद ही सुनने को मिलते है।अन्यथा येल, हार्वर्ड, कैम्ब्रिज, स्टैनफोर्ड, नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर या ऑक्सफोर्ड जैसे नामी विश्वविद्यालय इतने लंबे समय तक नहीं टिक पाते, जहां वे बिना किसी समझौते के गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करते हैं। यह उनका वैश्विक सम्मान ही है जो दशकों से भारत सहित दुनिया भर के छात्रों को आकर्षित करता है।
मानविकी से लेकर चिकित्सा और इंजीनियरिंग से लेकर परमाणु विज्ञान तक के विभिन्न विषयों को लेकर यूक्रेन या ब्रिटेन और अमेरिका से लेकर जापानी विश्वविद्यालयों तक में भारतीय छात्र पढ़ रहे हैं और उनके सहपाठियों और दोस्तों द्वारा उनसे पूछा जा रहा है कि उच्च (मेडिकल) परीक्षा जैसे कथित रूप से पवित्र क्षेत्र में बार-बार घोटाले भारत में क्यों होते हैं? बेचारे हमारे छात्रों के पास इसका कोई जवाब नहीं है।
शायद इसका जवाब इसी तथ्य में छिपा है कि भ्रष्टाचार के कारण भारत के शिक्षा तंत्र में लगातार गिरावट के कारण अधिक से अधिक भारतीय छात्र विदेश में अध्ययन करने जा रहे हैं। बेशक, आर्थिक रूप से पिछड़े छात्र या पारिवारिक जिम्मेदारियों के बोझ तले दबे छात्र नहीं जा सकते, लेकिन अगर उन्हें मौका मिले तो वे भी यही विकल्प चुनेंगे। क्या ‘विश्व-गुरु’ देश अपनी नई पीढ़ी से इस तरह का ब्रेन-ड्रेन चाहेगा? अभी तो यही चित्र दिख रहा हैं।
भारत सदियों से बेहतरीन शिक्षा के लिए जाना जाता रहा है। नालंदा विश्वविद्यालय में हालिया हुए समारोह और प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए वक्तव्यों ने वास्तव में एक आदर्श भारतीय शिक्षा प्रणाली की उम्मीद जगाई थी, लेकिन जल्द ही ‘नीट’ ने सबको झकझोर दिया। ऐसा नहीं है कि सरकार को इस बात की जानकारी नहीं थी कि क्या हो रहा है।
पिछले साल ‘एआईसीटीई’ के चेयरमैन डॉ. अनिल सहस्त्रबुद्धे ने सिस्टम में अनियमितताओं को दूर करने में विफल रहने के कारण गुस्से में इस्तीफा दे दिया था।
वे ईमानदार थे इसलिए उन्होंने इस्तीफा दे दिया। क्या जोशी भी ऐसा ही करेंगे? भारत की शिक्षा व्यवस्था एक दिन में खराब नहीं हुई. व्यवस्था को खराब होने में दशकों लग गए, लेकिन फिर भी, भाजपा, जिसके पास हर समस्या का समाधान था और जो हमेशा कांग्रेस सरकार पर सभी गलतियों का आरोप मढ़ती रही थी, वह 10 साल में कम-से-कम
एक क्षेत्र को साफ करके एक उदाहरण स्थापित कर सकती थी. पेपर लीक एक अपेक्षाकृत नया अपराध है। सभी राज्यों में संगठित गिरोह सक्रिय हैं। पहले की पीएमटी या आईआईटी और यूपीएससी परीक्षाओं में इस चुनौती का सामना नहीं करना पड़ता था।
क्यों? शायद वह व्यवस्था बेहतर थी। उम्मीद है कि नया कानून माफिया को कुचलकर भारत की शिक्षा को बचाएगा। इस बीच, प्रधान और जोशी को उनकी जिम्मेदारियों से तुरंत मुक्त कर दिया जाना चाहिए। तभी कड़क मोदी जी का डंका बजेगा।